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ईसाई मिशनरियों के निशाने पर हरै दलित एवं वनवासी समाज
डया . विवेक आर्य
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रत के दलित कठपुतली के समान नाच रहे है , विदेशी ताकतें विशेष रूप से ईसाई विचारक , अपने अरबों डॉलर के धन-समपदा , हज़ारों कार्यकर्ता , राजनीतिक शसकत , अंतराष्ट्रीय सतर की ताकत , दूरदृष्टि , एनजीओ के बड़े तंत् , विशवलवद्याि्ों में बैठे शिक्ालवदों आदि के दम पर दलितों को नचा रहे हैं । इसका तातकालिक लाभ भारत के कुछ राजनेताओं को मिल रहा है और हानि हर उस देशवासी की की हो रही हैं जिसने भारत देश की पलवत् मिटटी में जनम लिया है ।
1947 में ग्ेजों द्ारा भारत छोड़ने पर अंग्ेज पादरियों ने अपना बिसतर-बोरी समेटना आरमभ ही कर दिया था क्ोंकि उनका अनुमान था कि भारत अब एक हिनदू देश घोषित होने वाला है । तभी भारत सरकार द्ारा घोषणा हुई कि भारत अब एक सेक्ुिर देश कहलायेगा । मुरझायें हुए पादरियों के चेहरे पर ख़ुशी कि लहर दौड़ गई क्ोंकि सेक्ुिर राज में उनिें कोई रोकने वाला नहीं था । लद्तीय विशव युद्ध के पशिात संसार में शसकत का केंद् यूरोप से हटकर अमेरिका में सथालपत हो गया । ऐसे में ईसाईयों ने भी अपने केंद् अमेरिका में सथालपत कर लिए । उनिीं केंद्ों में बैठकर यह विचार किया गया कि भारत में ईसाइयत का कार्य कैसे किया जाए । भारत में
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