को अपने अधिकारों की रक्ा के लिए एक अलग देश मिलना ही चाहिये बिना इसके काम नहीं बनेगा । आगे चलकर जिन्ना का यह विचार बिलकुि पकका हो गया कि हिनदू और मुसलमान दोनों अलग-अलग देश के नागरिक हैं , अत : उनिें अलग कर दिया जाना चाहिए । उनका यही विचार बाद में जाकर जिन्ना के लद्राष्ट्रवाद का सिद्धानत कहलाया ।
1940 के लाहौर अधिवेशन में एक प्रसताव पारित कर यह कहा गया कि मुससिम लीग का मुख् उद्ेश् पाकिसतान का निर्माण है । कांग्ेस ने इस प्रसताव को असवीकार कर दिया और मौलाना अ्बुि कलाम आजाद जैसे नेताओं ने इसकी कड़ी निनदा की । लेकिन जिन्ना नहीं माना और पाकिसतान बनाने के लिए सलरिय हो गया । अपने सपने को पूरा करने के लिए उसने लद्तीय विशव युद्ध के दौरान लब्रेन की मदद की और 1942 में भारत छोड़ो आनदोिन का विरोध
किया । जिन्ना ने ततकािीन समय के दिगगज और बड़े नेता जोगेंद् नाथ मंडल को बड़ी कुटिलता के साथ पाकिसतान बनाने की मुहिम में भ्रमित कर शामिल कर लिया और मंडल के जरिए देश के दलितों को पाकिसतान में ले जाकर बसाने के लिए सलरिय हो गए । ऐसा करने के पीछे केवल एक ही उद्ेश् था कि उनिें दलितों के शामिल होने पर अधिक भू-भाग मिल सकेगा और बंटवारे में दलित और मुससिम के नाम पर पाकिसतान को मुसलमानों की जनसंख्ा में अधिक भू-भाग मिल सका ।
सवतंत्ता मिलने से पहले मंडल को डा . आंबेडकर की तरह दलित आंदोलन का प्रमुख चेहरा माना जाता था और बंगाल से लेकर ततकािीन बांगिादेश में रहने वाले दलित समाज के लोगों के बीच वह काफी लोकप्रिय भी थे । इनिी मंडल को अपनी कुटिलता भरी चालों से अपने झांसे में लेकर जिन्ना ने पाकिसतान बनाने के लिए दलितों को बरगलाने एवं भ्रमित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । कहना गलत नहीं होगा कि देश की राजनीति में पहली बार जोगेंद् नाथ मंडल ने दलित-मुससिम गठबंधन का प्रयोग किया था , पर यह प्रयोग उनकी जिंदगी की सबसे बड़ी भूल बन गया । उनके कहने पर पाकिसतान जाने वाले दलितों को मुससिम समुदाय के अत्ािारों को तब तक झेलना पड़ा , जब तक उनिोंने मुससिम धर्म नहीं अपना लिया या अपनी जान की बलि िढ़ा दी । विभाजन के बाद मंडल न सिर्फ पाकिसतान के पहले कानून मंत्ी बने , बसलक पाकिसतान के संविधान लिखने वाली कमेटी के अध्क् भी रहे थे । लेकिन , 1950 में मंडल ने पाकिसतान सरकार से इसतीफा दिया और वापस कलकत्ा आ गए और फिर लौट कर कभी पाकिसतान नहीं गये ।
इतिहास को देखा जाए तो पूवटी भारत में रहने वाले दलित समुदाय के लिए जोगेंद् नाथ मंडल एक नयी उममीद के रूप में राजनीतिक रंगमंच पर उभरे थे । बंगाल के नमोशुद्ा समाज में पैदा होने वाले जोगेंद्नाथ मंडल का जनम 29 जनवरी 1904 को हुआ था । मंडल अपने छह भाई-बहनों में सबसे छोटे थे । प्रारंभिक शिक्ा के बाद उनिोंने
कलकत्ा विशव-विद्यालय से अपनी शिक्ा पूरी की । दलित समाज से होने के कारण मंडल को अपने समाज की चिंता थी और इसीलिए उनिोंने सरकारी नौकरी करने की बजाय 1935 में कलकत्ा हाईकोर्ट में वकालत करनी शुरू की । वकालत करते हुए उनिें अहसास हुआ कि बिना सत्ा हासिल किए वह अपने दलित समाज के लिए कुछ नहीं कर सकते । फिर वह राजनीति में आ गए एवं कांग्ेस में शामिल हो गए । 1937 में उनिें जिला काउसनसि के लिए मनोनीत किया गया और फिर वह बंगाल लेजिसिेलरव काउसनसि के सदस् भी चुन लिए गए ।
जोगेंद् नाथ मंडल को यह 1940 तक एहसास हो गया कि कांग्ेस के एजेंडे में उसके अपने दलित समाज के लिए ज्ादा कुछ करने की इचछा नहीं है । इसी बीच मंडल का संपर्क डा . आंबेडकर से हुआ और फिर 19 जुलाई 1942 को वह अपने साथियों के साथ डा . आंबेडकर के ' अखिल भारतीय शेड्ूलड कासर फेडरेशन ' में शामिल हो गए । उनिोंने बंगाल में शेड्ूलड कासर फेडरेशन की सथापना कर डा . आंबेडकर के कार्य को वहां अपने हाथ में लिया ।
इसी बीच कांग्ेस से मिली निराशा और अपने दलित समाज के लिए कुछ करने के जूनून में जोगेंद् नाथ मंडल का संपर्क मोहममद अली जिन्ना से हुआ और फिर वह मुससिम लीग में शामिल हो गएI यह वह दौर था जब डॉ आंबेडकर इसलिए काफी परेशान थे कि देश के संविधान-निर्माण में दलितों का प्रतिनिधितव होना चाहिए । उधर , दलित समाज का कोई सदस् चुनाव जीत न पाए , इसका कांग्ेस कमेटी एवं नेहरू जी ने पूरी व्वसथा कर ली थी । ससथलत ऐसी हो गयी थी कि डा . आंबेडकर की भी चुन कर आने की समभावना नहीं थी । ऐसे में मंडल ने उनिें बंगाल से नामांकन-पत् भरने का न्ौता दिया और फिर बंगाल के सभी अनुसूचित जातियों के विधायकों की बैठक बुलाकर उनिें समझाया कि डा . आंबेडकर का जीतना क्ों जरुरी है ? मंडल ने अपनी पूरी शसकत लगा दी और उनके अथक प्रयास से अंतत : डा . आंबेडकर चुनाव जीत गए ।
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