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लेकिन मंडल का संपर्क जिन्ना से लगाकर बढ़ता जा रहा था और मंडल जिन्ना के दिखाए उन कुटिल और भ्रमित करने वाले उन सपनों में खोते जा रहे थे जो सपने उनको नए देश पाकिसतान के रूप में दिख रहे थे । पाकिसतान बनने के बाद दलितों को उनकी समस्ाओं से मुसकत मिलने का सपना देखने वाले जोगेंद् नाथ मंडल का भरपूर इसतेमाल जिन्ना ने किया । 15 अगसत 1947 को लब्लरश भारत के विभाजन के बाद , मंडल नए देश पाकिसतान में बनी संविधान सभा के सदस् और असथा्ी अध्क् बने और फिर कानून एवं श्रम मंत्ाि् के पहले मंत्ी के रूप में सेवा करने पर सहमत हो गए । वह 1950 तक पाकिसतान की सत्ा संभालते रहे । तब तक जिन्ना की सच्ाई उनके सामने आने लगी थी । दलित कल्ाण की बात करने वाले जिन्ना भी पाकिसतान में दलितों पर शुरू हुए नए अत्ािारों को न तो रोक सका और न ही उसने ऐसी कोई कोशिश की । पाकिसतान बनने के बाद वहां
मौजूद हिनदुओं यानी आर्थिक एवं सामाजिक रूप से निर्बल दलितों का जिस तरह से मुससिमों ने नरसंहार किया , मंडल उसे भुला नहीं पाए और उनिें दलित-मुससिम गठजोड़ की वासतलवक हकीकत का अहसास भी हो गए था । इसके विरोध में उनकी आवाज इसिालमक हुकरूमत ने कभी नहीं सुनीI आखिर उनिें समझ आ गया कि उनिोंने किस पर भरोसा करने की मूर्खता कर दी । अंत में हर प्रकार से हारकर हताश और निराश जोगेंद् नाथ मंडल 1950 में भारत लौट आये और पसशिम बंगाल के बनगांव में वह गुमनामी की जिनदगी जीते रहे । अपने किये पर 18 साल पछताते हुए आखिर 5 अकरूबर 1968 को उनिोंने गुमनामी में ही उनकी मौत हो गयी ।
अपने अंतिम समय में जोगेंद् नाथ मंडल को समझ में आ गया था कि मुससिम राजनीतिक गठबंधन के माध्म से मुसलमानों पर भरोसा करना उनके जीवन की सबसे बड़ी भूल थी । गैर दलित एवं धनवान तथा तथाकथित उच्
जातियों के हिनदू तो पूवटी पाकिसतान से पसशिम बंगाल यानी भारत में तो भाग आये किनतु 32 प्रतिशत लोग 1950 तक वही थे , जिनमें दलित हिनदुओं की संख्ा 90 प्रतिशत थी । वर्तमान बांगिादेश में आज उनिी 32 प्रतिशत हिनदुओं की संख्ा को 8.5 प्रतिशत हिनदुओं के रूप में देखा जा सकता है , जिसमें आज भी 90 प्रतिशत दलित ही हैं । दलितों को तो पाकिसतान से भागने ही नहीं दिया गया । उनिें दास बनाकर वही पाकिसतान में रोक लिया गया और ज्ादातर को धर्मानतरित करके मुसलमान बनाया गया । अंत में मंडल भी इसी निष्कर्ष पर पहुंचे कि दलितों एवं अन्ान् हिनदुओं की ससथलत तो संतोषजनक भी नहीं , बसलक निराशाजनक हैI करोड़ों हिनदुओं का भविष्य उनके दलित-मुससिम राजनीतिक गठजोड़ के कारण पूरी तरह अंधकारमय हो गया I
वर्तमान दौर में '' जय भीम और जय मीम '' का नारा देकर सत्ा को हथियाने की चेष्टा करने वालों को राजनीति के इस खतरनाक खेल के दूरगामी परिणाम का आभास होगा या नहीं , किनतु दलित-मुससिम गठजोड़ की शिकार यदि भारतीय राजनीति हुई तो इसका सबसे बड़ा नुकसान दलित समाज को ही उठाना पड़ेगा । यह एक कटु सत् है कि मुससिम संसकृलत में मुसलमान को छोड़कर उनका किसी अन् संसकृलत से वासतलवक भाईचारा नहीं हो सकता है । इसका भयानक एवं कटु अनुभव डॉ आंबेडकर और जोगेंद् नाथ मंडल जैसे दलित नेताओं का रहा है । अगर वर्तमान दौर के दलित नेताओं पर निगाह डाली जाये तो अधिकतर नेता दलित-मुससिम राजनीतिक गठबंधन के नाम पर " जय भीम-जय मीम " के नारे को लगते हुए दिखाई देते हैं । कहना गलत नहीं होगा कि दलित-मुससिम गठजोड़ के नाम पर इन अभी का एकमात् लक्् केंद् की उनसे भिन्न विचारधारा की सरकार को गिराना और येन-केन प्रकारेण अपनी विचारधारा यानी वामपंथी विचारधारा की सत्ा पुनः सथालपत करके देश में लूटपाट करने की आजादी हासिल करना हैI
30 ekpZ 2024