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राष्ट्रीय कांग्ेस में शामिल हुए , उस वकत तक कांग्ेस भारतीय राजनीतिक का सबसे बड़ा संगठन बन चुका था । सामान् नरमपसनथ्ों की तरह जिन्ना ने भी उस समय भारत की सवतनत्ता के लिये कोई मांग नहीं की , बसलक वह अंग्ेजों से देश में अचछी शिक्ा , कानून , उद्योग , रोजगार आदि के बेहतर अवसर की मांग करते रहे ।
1906 में मुससिम लीग बन चुकी थी और धर्म के आधार पर भारत के अंदर एक नए राष्ट्र बनाने की परिकलपना पर लीग ने काम शुरू कर दिया था , लेकिन शुरु-शुरू में जिन्ना अखिल भारतीय मुससिम लीग में शामिल होने से बचते रहे , लेकिन बाद में उनिोंने अलपसंख्क मुसलमानों को नेतृतव देने का फैसला कर लिया । 1913 में जिन्ना मुससिम लीग में शामिल हो गये और 1916 के लखनऊ अधिवेशन की अध्क्ता की । 1916 के लखनऊ समझौते के कर्ताधर्ता जिन्ना ही थे । यह समझौता लीग और कांग्ेस
के बीच हुआ था । जिन्ना का कांग्ेस से मतभेद उसी समय शुरु हो गये थे जब 1918 में भारतीय राजनीति में गानधी जी का उदय हुआ । गानधी जी के अनुसार , सत् , अहिंसा और सविनय अवज्ा से सवतनत्ता और सवशासन पाया जा सकता है , जबकि जिन्ना का मत उनसे अलग था । जिन्ना का मानना था कि सिर्फ संवैधानिक संघर्ष से ही आजादी पाई जा सकती है । 1920 में जिन्ना ने कांग्ेस के इसतीफा दे दिया । उसके बाद मुससिम लीग के वह अध्क् बने और कांग्ेस और लब्लरश समर्थकों के बीच विभाजन रेखा खींच दी । कई सालों बाद वह फिर लनदन चले गए । इस बीच मुससिम लीग के नेता आगा खान , चौधरी रहमत अली और मोहममद अलिामा इकबाल ने जिन्ना से बार-बार आग्ि किया कि वह भारत वापस आकर मुससिम लीग का प्रभार संभाले । 1934 में जिन्ना भारत लौट आये और लीग का पुनर्गठन किया । उस दौरान
लियाकत अली खान उनके दाहिने हाथ की तरह काम करते थे । 1937 में हुए सेंट्रल लेजिसिेलरव असेमबिी के चुनाव में मुससिम लीग ने कांग्ेस को कड़ी टककर दी और मुससिम क्ेत्ों की ज्ादातर सीटों पर क्जा कर लिया । जिन्ना ने कांग्ेस को गठबनधन के लिए आमसनत्त किया । पहले तो दोनों ने फैसला किया कि वे अंग्ेजों से मिलकर मुकाबला करेंगे , लेकिन जिन्ना ने कुटिलतापूर्ण शर्त रखी कि कांग्ेस को मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचन क्ेत् और मुससिम लीग को भारत के मुसलमानों का प्रतिनिधि मानना होगा , जिन्ना की इस कुटिल शर्त को कांग्ेस ने असवीकार कर दिया । कांग्ेस में उस समय कई मुससिम नेता थे , इसलिए लीग को भारतीय मुसलमानों का प्रतिनिधि मानना उसके लिए आसान नहीं था ।
कांग्ेस के साथ वार्ता विफल होने के बाद जिन्ना को भी यह विचार आया कि मुसलमानों
28 ekpZ 2024