पाकिस्ान-बांग्ादेश जाने वाले दलितों ने भोगे अत्ाचार
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द् सरकार द्ारा लागू किए गए नागरिकता संशोधन कानून के माध्म से पाकिसतान , बांगिादेश और अफगानिसतान के अलपसंख्क समुदाय , जिनमें हिनदू , सिख , जैन , पारसी और ईसाई धर्म के लोग शामिल हैं , को भारत में नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है । इस कानून का लाभ इन तीन देशों से भारत में शरण लेने आये लोगों को मिलेगा । केंद् सरकार द्ारा लाए गए इस कानून का वही कांग्ेस और उसके सहयोगी विरोध कर रहे हैं , जो संसद में इस कानून पर हुई बहस और फिर मतदान के दौरान पराजित
हुए । संसद में मिली पराजय के बाद अब कांग्ेस और उसके सहयोगी , जिनमें वामदल और उनके संगठन भी शामिल हैं , जिस तरह से विरोध पर उतारू है , उससे यह कहना गलत नहीं लगता कि यह सभी कही न कही मोदी सरकार के राष्ट्र एवं जनउपयोगी का्गों से इतना घबरा चुके हैं कि अब उनके सामने अपने वजूद को बचाने की समस्ा आ खड़ी हुई है । अपने वजूद को बचाने के लिए कांग्ेस और उसके सहयोगी यह भी भूल गए हैं कि भारत की बहुसंख्क आबादी के विरोध के बाद भी राष्ट्र का बंटवारा कर दिया गया था । उस ततकािीन समय में बंटवारे का
बीज जिस नेता ने बोया था , वह भी कांग्ेस का ही नेता था और उसका नाम था मोहममद अली जिन्ना उर्फ़ महमदअली झीणाभाई ।
आधुनिक सिंध प्रानत के कराची लजिे में एक गुजराती परिवार में पैदा होने वाले जिन्ना के पूर्वज हिनदू राजपूत थे , जिनिोंने बाद में इसिाम क़बूल कर लिया । बमबई विशवलवद्याि् से मैट्रिक पास करने के बाद इंगिैंड चले गए और कानून की पढ़ाई की । उन्नीस साल की छोटी उम् में वकालत शुरू करने वाले जिन्ना लब्रेन से वापस बमबई आ गया और वकालत शुरू कर दी । 1896 में जिन्ना जिस समय भारतीय
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