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डा . आंबेडकर के विचारों में बड़ा मतभेद था । महातमा गांधी और जवाहरलाल नेहरू , दोनों ही अंत तक विभाजन के सथा्ी और अपवर्तनीय तात्ा को नकारने के लिए असामान् समझौते करते रहे तथा शर्मनाक छूट देने में ही व्सत रहे । गांधी जी और नेहरू ने अपने आप को मुससिम गुंडों के आगे विनय भाव से आतमसमर्पित ही कर दिया था । डा . आंबेडकर ने एक साफ़- सुथरे सथा्ी समझौते का सवरुप सामने रखा परनतु गांधी जी और नेहरू ने अपनी नष्ट हुई , परनतु सुनदर दिखने वाली हिनदू-मुससिम एकता को छोड़ने से मना कर दिया था । साथ ही भारत के विभाजन और लद्राष्ट्र के सिद्धांत को पूरी तरह सवीकारने के बाद भी जनसंख्ा के सथानांतरण के प्रसताव का पूरी ताकत से विरोध किया ।
डा . आंबेडकर का मानना था कि पाकिसतान बनने पर हिनदू लोग पाकिसतान के अंदर घिर जाएंगे , इसलिए विभाजन से पहले उनिें सुरलक्त निकलने की व्वसथा होनी चाहिए । तमाम
प्रयासों के बावजूद डा . आंबेडकर की योजना और प्रसताव को किसी ने भी सवीकार नहीं किया । डा . आंबेडकर की चेतावनी को गंभीरता से न लेते हुए 1947 में बंटवारे के बाद , पाकिसतान के अंदर बड़ी संख्ा में अनुसूचित जातियों के लोगों के अलावा अन् हिनदू आबादी वही रुक गयीI वह किनिीं कारणों की वजह से भारत नहीं आये । और फिर कथित हिनदू- मुससिम एकता की काली असलियत सामने आयीI हिनदुओं पर शुरू हुए जानलेवा हमलों और मुससिम धर्म सवीकार करने के लिए बनाये जाने वाले निर्दयी दबावों ने पाकिसतान में रहने वाले हिनदुओं की ससथलत को बदतर बना दिया । प्रतिकार या विरोध करने वाले लाखों हिनदुओं को मार दिया गया और उनकी समपलत््ों पर क्जे कर लिए गए , जबकि जान बचाने के लिए इसिाम सवीकार करने वाले हिनदुओं की संख्ा भी काफी रही ।
देश विभाजन के समय जनसंख्ा की पूर्ण अदला-बदली नहीं होने की वजह से आधे से
अधिक मुसिमान भारत में ही रुक गए थे , जिनकी संख्ा बढ़कर अब पंद्ि करोड़ से अधिक हो चुकी है , वही पाकिसतान में रहने वाले हिनदुओं की संख्ा एक करोड़ से घटकर महज चंद हजार रह गयीI यह उन गलत नीतियों का परिणाम भी कहा जा सकता है , जिसके बारे में डा . आंबेडकर ने विभाजन की प्रलरिया शुरू होने से पहले ही सचेत कर दिया था । लेकिन डा . आंबेडकरकी चिंताओं और मांगों को जिस तरह से अनसुना करके असवीकार कर दिया गया था , उसका दुखद परिणाम पाकिसतान और बांगिादेश में रहने वाले हिनदुओं को भोगना पड़ा । भारत की सवतंत्ता वरगों बाद प्रधानमंत्ी नरेंद् मोदी ने एक ऐतिहासिक निर्णय के माध्म से हिनदू अलपसंख्कों को भारत की नागरिकता देने का जो निर्णय लिया गया है , उससे लाखों हिनदुओं के चेहरे पर संतोष की एक नयी मुसकान पैदा हुई है और यह मुसकान प्रधानमंत्ी मोदी को भविष्य में ऐसे और निर्णय देने की ताकत देगी , इसमें कोई संदेह नहीं है ।
26 ekpZ 2024