March 2024_DA | Page 25

कहा कि अब दोनों समुदायों का एक राष्ट्र के अंदर शांति के साथ रह पाना समबव नहीं दीखता और इसी कारण डा . आंबेडकर ने जनसंख्ा की पूर्ण अदला-बदली के विचार का समर्थन किया । देश विभाजन का दुर्भाग् त्ासदी लेकर आया । पूरे देश में भीषण माककेट मच गयी । लाखों लोग मार दिए गए , जबकि लाखों घायल होकर बिसतर पर पहुंच गए । डा . आंबेडकर यह देखकर काफी दुखी थे । उनिोंने अपने लमत् कमलाकांत चित्े को एक पत् में लिखा कि इनको दंगे नहीं कहा जा सकता है । इसको तो सशसत् विद्ोि ही कहना चाहिए । एक बड़ी संख्ा में लोग मारे गए हैं तथा उसी प्रकार घायल भी हुए हैं । दिलिी जैसे शहर के लिए तो यह बहुत भयंकर हैं । वहां तो कई दिन से जनजीवन ठहर गया है । डा . आंबेडकर ने देश विभाजन के साथ ही जनसंख्ा का पूर्ण सथानांतरण का प्रसताव रखा था । उनका कहना था कि मुससिम और हिनदू आबादी अपने- अपने देशों को चली जाये , उसी ससथलत में गृह युद्ध तथा भयंकर नरसंहार से बचा जा सकता है ।
डा . आंबेडकर का कहना था कि वह मुससिम
भारत और गैर मुससिम भारत में विभाजन को बेहतर समझते हैं , जो कि दोनों की सुरक्ा प्रदान करने का सबसे पकका और सुरलक्त तरीका हैI अवश् ही अन् विकलपों में से यह अधिक सुरलक्त है अर्थात देश भर के मुससिम को पाकिसतान भेजने और वह मौजूद हिनदुओं को भारत बुलाने की अनिवार्य योजना बनायीं जानी चाहिए । यह कोई ऐसचछक विषय नहीं है । फरवरी ' 1942 में बमबई के वांगले हाल में थॉटस ऑन पाकिसतान पर बोलते हुए डा . आंबेडकरने कहा कि जो लोग पाकिसतान के बारे में चर्चा ही नहीं करना चाहते , ऐसे लोगों के साथ वाद-विवाद करने से कोई लाभ नहीं है । उनिें यदि पाकिसतान का निर्माण अन्ा् प्रतीत हो रहा होगा तो पाकिसतान बनना , उनके लिए भयंकर सिद्ध होगा । लोगों को इतिहास भुला देने के लिए कहना एक भारी भूल होगी क्ोंकि इतिहास को भुलाने वाले इतिहास का निर्माण नहीं कर सकते । भारतीय सेना को मुसलमानों के प्रभाव से मुकत करके सेना को एकरस और राष्ट्रभकत बनाना ही बुद्धिमानी होगी , अपनी मातृभूमि की रखा हम सव्ं करेंगे ।
डा . आंबेडकर ने जनसंख्ा सथानांतरण के लिए एक विसतृत कार्य योजना भी बनाई थी , जो उनिोंने अपनी पुसतक " पाकिसतान और द पारटीशन ऑफ इंडिया " के माध्म से 1940 में ही सबके सामने रख दी थी । डा . आंबेडकर की योजना थी कि ऑटोमन साम्ाज् के पशिात जिस प्रकार से ग्ीक , रकटी और बुलगारिया के मध् जनसंख्ा का जिस प्रकार सथानांतरण हुआ , उसी प्रकार भारत में भी यह संभव हो सकता है । अपनी योजना में डा . आंबेडकर ने समपलत् तथा पेंशन आदि के अधिकारों की अदला-बदली के समबनध में भी कार्ययोजना बना कर सामने रखी थीI लेकिन कांग्ेस , जो अपनी नीति के अनुसार हिनदू-मुससिम एकता में विशवास करती थी , ने इस योजना को असंभव कहकर ठुकरा दिया । कांग्ेस के नेता हिनदू- मुससिम एकता की झूठी कलपनाओं में भटक रहे थे ।
विख्ात लेखक कोनराड एसर ( Kocnraad Eist ) ने अपनी पुसतक में उस समय की कांग्ेसी मानसिकता का वर्णन करते हुए लिखा कि विभाजन के समबनध में कांग्ेसी नेतृतव और
ekpZ 2024 25