बावजूद देश से गरीबी क्ों नहीं समापत हुई ? आखिर क्ा वजह रही कि संवैधानिक रूप से आरक्ण की सुविधा मिलने के बावजूद आज भी देश का दलित समाज सव्ं को अभावग्सत महसूस करता है ? वह कौन से कारण हैं , जिनकी वजह से दलितों और जातिगत हितों के लिए जो नेता सामने आये , वह अपने समाज का समपूण्ग विकास करने में असफल सिद्ध हुए ?
ऐसे अनेकानेक प्रश्नों का उत्र बहुत सपष्र है । सवतंत्ता के बाद से कांग्ेस ने सव्ं को सत्ा के केंद् में रखने के लिए हिनदू समाज को जहां उच्-निम्न जातियों में बांट दिया , वहीं विभिन्न पंथों एवं महजब की कट्टरता के आधार पर गैर हिनदू जनता को बांट कर कांग्ेस दलित , मुससिमों और ईसाई समूह की मसीहा भी बन गयी । कांग्ेस
की हिनदू विरोधी रणनीति में सिर्फ धर्म एवं संसकृलत के कट्टर विरोधी वामदलों ने उनका भरपूर साथ दिया । परिणामसवरुप देश के हर राज् में यानी उत्र से दलक्ण तक और पूरब से पसशिम राज्ों तक जातिगत मसीहा बनकर सत्ा का सुख लेने वाले विभिन्न राजनेता , राजनीतिक दल एवं संघठन का एक ऐसा जमावड़ा लग गया , जिसने जाति-पांति , पंथ , तुष्टिकरण , क्ेत्वाद एवं परिवारवाद के मुद्े से देश को बाहर निकलने नहीं दिया । दलितों के उतथान के नाम पर राजनीतिक दलों ने दलितों का इस कदर शोषण किया कि वह आज भी समपूण्ग दलित वर्ग के अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं , पर उनके अधिकार आज भी पूरी तरह उनिें नहीं मिल सके हैं ।
देश विरोधी शसकत्ों के साथ किया जाने वाला समझौता किसी भी राष्ट्र एवं संसकृलत पर आघात करने के लिए काफी है । सवतंत्ता मिलने से पहले महज अपने सवाथगों के मुससिम नेताओं ने अंग्ेजों के साथ समझौता किया और भारत को खंडित कर दिया । अब एक बार फिर सिर्फ सत्ा के लिए हिनदू विरोधी नेता विदेशी शसकत्ों के साथ खड़े होने में परहेज नहीं कर रहे हैंI कांग्ेस , वामपंथी , मुससिम और ईसाई धर्म से जुड़े हिनदू विरोधी नेता यह पूरी कोशिश कर रहे हैं कि भारतीय हिनदू समाज संघटित न होने पाए और इसी लिए दलितों को मोहरा बनाने के लिए प्रयास निरंतर किए जा रहे हैं ।
दलगत सवाथगों की पूर्ति के लिए हिनदू विरोधी नेता देश के व्ापक हितों को दांव पर लगाने
ekpZ 2024 19