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की योजना के बारे में कोई जानकारी नहीं थी और जब उनिें जिन्ना के मंसूबों का पता चला , तब तक देर हो चुकी थी ।
पाकिसतान बनने के बाद जो दलित इस आशा में पाकिसतान ( जिसमें वर्तमान बांगिादेश शामिल है ) चले गए थे कि उनिें अपने साथ होने वाले अत्ािारों से मुसकत मिलेगी और वह भी समाज की मुख् धारा में शामिल होकर जी सकेंगे , उन दलितों को या तो बर्बर मौत मिली या फिर उनको हिनदू धर्म छोड़कर मुससिम धर्म अपनाने के लिए बाध् कर दिया गया । पाकिसतान बनने के दौरान दलित जाति के लोगों का जिस तरह से कतिेआम हुआ , उससे मंडल बेहद आह़त हुए और फिर पाकिसतान छोड़कर वापस चले आये । मंडल अपनी पूरी जिंदगी तक अफ़सोस करते रहे कि आखिर उनिोंने एक गैर धर्म के व्सकत जिन्ना पर भरोसा क्ों किया था ? पर मंडल का अफ़सोस उनके संगीन अपराध को भी भुला सकता है और न ही जिन्ना द्ारा की गयी धोखाधड़ी को । ऐसे में अगर जिन्ना और मंडल को सवतंत् भारत के पहले देशद्ोिी की संज्ा दी जाए तो कही से भी गलत प्रतीत नहीं होता है ।
सत्ा के लिए कांग्ेस की जनविरोधी रणनीति
एक ही परिवार के तीन वरिष्ठ कांग्ेसी नेता राहुल , प्रियंका एवं सोनिया गांधी लगातार भ्रम पैदा कर रहे हैं , जबकि यह सभी दो देशों के नागरिक है । इटली के वेटिकन का नियम है कि इटली के नागरिक कहीं भी जाएं या उनके जितने बच्े भी हो , सबकी इटालियन नागरिकता सदैव बरकरार रहेगी । काश ! उनहें एहसास होता कि भारत में जो पाकिसतान से या बांगिादेश के हिनदू नागरिक भारत आये हैं , यह किस परिससथलत में शोषण , उतपीड़न एवं दोयम दजवे की नागरिकता के कारण एक मुससिम देश को छोड़कर आये है । ऐसे में नागरिकता कानून के प्रति भ्रम उतपन्न करके देश को एक बार फिर नफरत की आग में झोंककर कांग्ेस अपनी खोई हुई जमीन पाना चाहती है । वैसे कांग्ेस का इतिहास ही इस बात
का गवाह है कि सत्ा के लिए कांग्ेस ने भारत की जनता की अससमता के साथ खिलवाड़ करने में कभी परहेज नहीं किया ।
हिन्ू समाज को बांटकर हित साधना चाहता हरै विपषि
देश के अंदर अगर सत्ा समबनधी रणनीति पर राजनीतिक दलों , विशेष रूप से कांग्ेस , वामपंथी और कुछ क्ेत्ी् दलों पर अगर दृष्टि जाए तो कहना अनुचित नहीं लगता कि वरगों से एक षड्ंत् के रूप में हिनदू समाज को बांटकर , उसका उपयोग सत्ा हथियाने के लिए किया गया । वर्तमान कांग्ेस पारटी को जिस कालखंड में बनाया गया था , उस समय देश परतंत् था और अंग्ेज इस देश की पावन भूमि को रौंदते हुए अपनी सत्ा के माध्म से देश को बुरे ढंग से लूटने में लगे थे । ततकािीन समय में पूरे देश ने जब अंग्ेजों की सत्ा और देश विरोधी का्गों का विरोध शुरू किया तो बड़ी सफाई के साथ , ततकािीन दौर के चंद कुलीन वगगों के लोगों को साथ में लेकर 28 दिसंबर 1885 को अखिल भारतीय कांग्ेस नामक एक संगठन खड़ा किया गया । अंग्ेज शासकों के हितों और उनकी आकांक्ाओं की पूर्ति के लिए बनाए गए कांग्ेस संगठन में एक विदेशी तथाकथित नेता ए ओ ह्ूम की महतवपूर्ण भूमिका रही । प्रारंभिक दौर में कांग्ेस विदेशी लुटेरे अंग्ेजी हितों के लिए काम करती रही । लेकिन कांग्ेस संगठन में सदस्ों की संख्ा जब बढ़ने लगी तो संगठन को चलाने वालों पर यह प्रश्न भी उठने लगे कि आखिर कांग्ेस खुल कर अंग्ेजों के विरोध में क्ों नहीं उतरती है ? नतीजा यह रहा कि कांग्ेस के अंदर " नरम " और गरम " नाम से दो दल बन गए । गरम दल के नेता पूर्ण सवराज की मांग उठाकर संघर्ष छेड़ना चाहते थे , जबकि नरम दल वाले नेता अंग्ेजों की सत्ा के अधीन रहते हुए , अपने हितों के अनुरूप देश में सिर्फ सवशासन की व्वसथा चाहते थे । वरगों तक नरम-गरम दलों के बीच झूलती रही कांग्ेस , प्रथम विशव युद्ध लछड़ने के बाद 1916 की लखनऊ में हुई बैठक में फिर एकजुट तो हो
गयी और फिर सवतंत् संग्ाम में हिससा भी लिया ।
सवतंत्ता के उपरांत कांग्ेसी प्रधानमंत्ी जवाहर लाल नेहरू ने अंग्ेजों के सत्ा अनुभव से सबक लेते हुए जाति व्वसथा को इस तरह से भारत में पुष्ट किया कि जातिगत आधार पर देश के हर राज् में नए-नए संघठन खड़े होते चले गए । इन जाति आधारित संगठनों के कथित नेताओं का लक्् अपनी जाति का समपूण्ग विकास और कल्ाण कभी नहीं रहा और वो केवल कांग्ेस की कठपुतली बनकर सत्ा की मलाई चाटते हुए बस सवलित में ही लगे रहे । नेहरू ने जाति को सत्ा से जिस तरह जोड़ दिया था , उस रणनीति का अनुसरण नेहरू के बाद श्रीमती इंदिरा गांधी ने भी किया । आखिर क्ा कारण है कि वरगों तक " गरीबी हटाओ " का नारा देने के
18 ekpZ 2024