मेर किरद र
मुझमे ख़ुद को इस क़दर ढ ं ढते है ,
मेरी कहानी का ही कक़रदार हो जैसे ।
बातें में अब उसके पहले वाली बात नहीं ,
दीमक लगी कोई पुरानी अख़बार हो जैसे ।
मुकर तो आजकल वो य ूँ जाते है वादों स
,
कोई बबकाऊ सरकार हो जैसे ।
वो आज़कल बड़ा अनसुना करते है ,
मेरी बातें ही बेकार हो जैसे ।
उसने मेरे तोहिों को घर के कोने में रखा है ,
तोहफ़े नही कोई कबाड़ हो जैसे ।
हर बात पर काटने को दौड़ते है अब ,
जंग से लौटी हुई कोई तलवार हो जैसे।
उसने लबों को छ ने से इस क़दर मना कर ददया ,
हमारे बीच ये सब पहली बार हो जैसे ।