Mai aur Tum मैं और तुम | Page 7

मेर किरद र मुझमे ख़ुद को इस क़दर ढ ं ढते है , मेरी कहानी का ही कक़रदार हो जैसे । बातें में अब उसके पहले वाली बात नहीं , दीमक लगी कोई पुरानी अख़बार हो जैसे । मुकर तो आजकल वो य ूँ जाते है वादों स , कोई बबकाऊ सरकार हो जैसे । वो आज़कल बड़ा अनसुना करते है , मेरी बातें ही बेकार हो जैसे । उसने मेरे तोहिों को घर के कोने में रखा है , तोहफ़े नही कोई कबाड़ हो जैसे । हर बात पर काटने को दौड़ते है अब , जंग से लौटी हुई कोई तलवार हो जैसे। उसने लबों को छ ने से इस क़दर मना कर ददया , हमारे बीच ये सब पहली बार हो जैसे ।