Mai aur Tum मैं और तुम | Page 15

बोली बेटा आज कफ़र पापा त म् हे लेकर परे शान थे , माूँ हर बात जानती थी किर भी मेरे सामने बने अंजान थे । माूँ मुझे समझा रही थी और मैने उल्टा मां को ही डांट ददया , माूँ पर क्या बीतेगी बबना सोचे मैने झट से फ़ोन काट ददया । गुस्से में फ़ोन रख कर मैं वहाूँ से हट गया , मां ने िोन करके कहा बेटा गलती से िोन कट गया । इस बारी माूँ की भारी आवाज़ उनकी हालात कह गयी , वो माूँ ही थी जो आज मेरी वज़ह से इतना कुछ सह गयी । मां दे खो ना मैं अब बबना बबस्तर के कही भी सो लेता ह ं , याद आती है त म् हारी तो सबसे छुपके रो लेता ह ं । मां मैं अब खाने की जरा भी बुराई नही करता , नहीं खाऊंगा कहकर ककसी से लड़ाई भी नही करता । माूँ जैसा भी बनाता ह ूँ च प चाप खा लेता ह ं , भ ख नहीं है कहकर कभी कभी भ ख भी छुपा लेता ह ं । पता है माूँ कल एक दोस्त की माूँ उससे समलने आयी थी, वो साथ मे अपने हाथों का बना हुआ खीर भी लायी थी । माूँ तुम्हे तो पता है ना कक म झ े खीर ककतना पसंद है , माूँ आपके हाथों के बने खीर में एक अलग ही आनंद है । माूँ आप म झ से समलने क्य ूँ नही आते है , माूँ आप पापा को क्य ूँ नही समझाते है ? कम से कम महीने दो महीने में भी एक दफ़ा आया ना करो ना , माूँ त म भी मेरे सलए खीर बनाके लाया करो ना ।