बोली बेटा आज कफ़र पापा त म्
हे लेकर परे शान थे ,
माूँ हर बात जानती थी किर भी मेरे सामने बने अंजान थे ।
माूँ मुझे समझा रही थी और मैने उल्टा मां को ही डांट ददया ,
माूँ पर क्या बीतेगी बबना सोचे मैने झट से फ़ोन काट ददया ।
गुस्से में फ़ोन रख कर मैं वहाूँ से हट गया ,
मां ने िोन करके कहा बेटा गलती से िोन कट गया ।
इस बारी माूँ की भारी आवाज़ उनकी हालात कह गयी ,
वो माूँ ही थी जो आज मेरी वज़ह से इतना कुछ सह गयी ।
मां दे खो ना मैं अब बबना बबस्तर के कही भी सो लेता ह ं ,
याद आती है त म्
हारी तो सबसे छुपके रो लेता ह ं ।
मां मैं अब खाने की जरा भी बुराई नही करता ,
नहीं खाऊंगा कहकर ककसी से लड़ाई भी नही करता ।
माूँ जैसा भी बनाता ह ूँ च प
चाप खा लेता ह ं ,
भ ख नहीं है कहकर कभी कभी भ ख भी छुपा लेता ह ं ।
पता है माूँ कल एक दोस्त की माूँ उससे समलने आयी थी,
वो साथ मे अपने हाथों का बना हुआ खीर भी लायी थी ।
माूँ तुम्हे तो पता है ना कक म झ
े खीर ककतना पसंद है ,
माूँ आपके हाथों के बने खीर में एक अलग ही आनंद है ।
माूँ आप म झ
से समलने क्य ूँ नही आते है ,
माूँ आप पापा को क्य ूँ नही समझाते है ?
कम से कम महीने दो महीने में भी एक दफ़ा आया ना करो ना ,
माूँ त म
भी मेरे सलए खीर बनाके लाया करो ना ।