अब
द ध
लेने
के
बहाने रोज त म्
हार
घर
मैं नही आऊंगा ।
सुनो अगर समलने का ददल करे और मौका भी समले तो ,
मेरे बगीचे में आ जाना प र ु ाने खंडहर के उधर मैं नही जाऊंगा ।
जजतनी बातें कहनी हो सलखकर सभजवा दे ना तुम छोटी से ,
म झ
े काम है गांव में सो इस बारी त म्
हारे साथ शहर मैं नही आऊूँगा ।
और हाूँ ये आखख़री मताबा है जो आ रहा ह ूँ तुम्हारे सलये ,
किर जब त म
गाूँव आओगी तो गाूँव मे नजर मैं नही आऊंगा ।
वो सच मे प गि होते ह
जाग जाए जो चचडड़यों के जागने से पहले ,
और तनशाचरों के सोने के बाद जो सोते है ।
वो सच मे पागल होते है ।
सबका ताना-बाना सुनकर भी ,
खुले होठों से मुस्कुरा दे ते है ।
वो सच मे पागल होते है ।
नशाख़ोरी पर भाषण सलखके अव्वल आने वाले ,
खुद नशे के आदी हो जाते है ।