खास बात यह है क 105 वष क ‘ज ोजहद’ (िजसक कहानी मेरे साथ आप भी ज र ढू ं ढ़) क बाद 18 फरवर 1997 को इस मृ त- तंभ
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को ‘ऐ तहा सक थल क रा
क यह एकमा क
य पंजी’ म अनुसू चत कया गया एवं इसे ‘रा
तान है िजसे यह दजा अब हा सल है।
य ऐ तहा सक थल’ का दजा हा सल हु आ। यह भी गौरतलब है
इस मृ त- तंभ क जो त वीर साथ म द गई है उसम नीचे आप गौर करगे। नीचे वह पंि त उकर गई ह जो, फाँसी दये जाने क पहले
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पाईस क मु ख से भ व य का उ घोष बनकर नकल थी, “वह समय आयेगा जब हमार खामोशी हमार इन आवाज से यादा ताकतवर ह गी
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िज हे तु म आज घ ट रहे हो”।
आज अमर का का एक बड़ा जनमत मानता है क उन दन क घटनाय मजदूर को दबाने क लये मा लक
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वारा रची गई सािजश क
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तहत घ टत हु ई थी और जो सु नवाई हु ई थी अदालत म वह अमर क इ तहास म पाये जाने वाले, याय को कचले जाने क गंभीरतम मसाल म से
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एक है।
पर कसे आया जनमत म यह बदलाव? मजदूर क संघष से। जनवाद ताकत क, अमर क सा ा यवाद क खलाफ खु द अमर का म ह
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उठती आवाज क लगातार ह त ेप से।
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आईये, क
तान क