संवैधानिक गणतंत्
आंबेडकर
और अनुसूचित जातियों के राजनीतिक अधिकार
मुरलीधर सी भंडारे
डता.
आंबेडकर एक महतान सफल कहतानरी के प्रतरीक हैं । उनकता जरी्वन दशता्णतता है क्क दरीन-हरीन वयसकत भरी भतारत के ऊूंचे पदों में से भरी सर्वोच् पद पर पहतुंच सकतता है । उनकता जन्म एक गररीब महतार परर्वतार में अछूत क्हन्दू के रूप में हतुआ थता । अपने जरी्वन के प्रतारसमभक कताल और बताद में भरी उन्हें उपेक्षाएं और अपमतान सहनं करनता पड़ा, जो क्क अछूतों के क्लए अक्भशताप थता । असपृशयतता ने एक हरिजन को सतामताक्जक, धताक्म्णक और रताजनरीक्तक अक्धकतारों से ्वंक्चत कर क्दयता थता । स्वतंत्तता पू्व्ण के क्दनों में उन्हें इस प्रकतार करी दतासतता से मतुकत होने करी कोई संभता्वनता नहीं थरी । भतारत में असपृशयतता, प्रजताक्त प्रताथ्णकय कता बदतर रूप थता, भेदभता्व रंग के आधतार पर नहीं बसलक जताक्त के आधतार पर क्कयता जतातता थता । जबक्क गररीबरी ्वंक्चत करतरी है, असपृशयतता मूल मतान्वरीय अक्धकतारों तथता मलौक्लक स्वतंत्तता को समतापत कर देतरी है ।
डता. आंबेडकर क्नध्णनतता और असपृशयतता करी रताख से उठे । ्वह भतारत के रताजनरीक्तक दृशय पर एक असताधतारण प्रक्तभता ्वताले वयसकत थे क्जन्होंने दक्लत वर्गों कता, उन दक्लतों कता प्रक्तक्नक्धत्व क्कयता, जो भूखों मरते थे, ्वंक्चत थे और दतासतता
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