की भी रिशतेिार थीं जो बाद में देश के राषट्रपति बने ।
कट्र गांधीवादी दक्षयानी ने संविधान सभा की बहसों के दौरान अनुसूचित जातियों से संबंधित कई मुद्ों पर डा. बी. आर. आंबेडकर का साथ दिया । वह डा. आंबेडकर से सहमत थीं कि उनहोंने अलग निर्वाचन क्षेत्रों की मांग छोड़ दी और इसके बजाए नैतिक सुरक्षा और उनकी सामाजिक अक्षमताओं को तुरंत हटाने का तर्क दिया । 8 नवंबर 1948 को, जब डा. आंबेडकर ने चर्चा के लिए संविधान का मसौदा पेश किया, तो उनहोंने मसौदे की सराहना की और अधिक विकेंद्रीकरण का आह्ान किया । उनहोंने यह भी सुझाव दिया कि संविधान के अंतिम मसौदे को आम चुनाव के माधयम से अनुसमर्थन के बाद अपनाया जाना चाहिए ।
उनहोंने 29 नवंबर 1948 को फिर से हसतक्षेप किया, जब मसौदा अनुचछेि 11 पर चर्चा हो रही थी, जिसका उद्ेशय जाति के आधार पर भेदभाव को रोकना था और संविधान सभा के उपाधयक्ष ने उनहें समय सीमा पार करने की अनुमति दी, जिनहोंने कहा कि यह केवल इसलिए है ्योंकि आप एक महिला हैं, मैं आपको अनुमति दे रहा हूं । वेलायुधन ने सार्वजनिक शिक्षा के माधयम से गैर-भेदभाव प्रावधानों को लागू करने का आह्ान किया और बताया कि अगर संविधान सभा जाति भेदभाव की निंदा करने वाले प्रसताव का समर्थन करती है, तो यह एक बड़ा सार्वजनिक संकेत भेजेगा । उनहोंने कहा कि संविधान का काम करना इस बात पर निर्भर करेगा कि लोग भविषय में खुद को कैसे संचालित करते हैं, न कि कानून के वासतविक निषपािन पर । आरक्षण के मुद्े पर वेलायुदन का कहना था कि वयक्तगत तौर पर कहूं तो वह किसी भी सथान पर किसी भी प्रकार के आरक्षण के पक्ष में नहीं हैं । दुर्भागयवश, हमें ये सब बातें सवीकार करनी पड़ीं ्योंकि वरिटिश साम्राजयवाद ने हम पर कुछ निशान छोड़े हैं और हम हमेशा एक-दूसरे से डरते रहते हैं । इसलिए, हम पृथक निर्वाचन क्षेत्रों को खतम नहीं कर सकते । सीटों का
1945 में दवषिणायनी को राजय सरकार द्ारा कोचीन विधान परिषद में नामित किया गया था । बाद में उनको 1946 में परिषद द्ारा भारत की संविधान सभा के लिए चुना गया । वह संविधान सभा के लिए चुनी जाने वाली पहली और एकमात्र अनुसूचित जाति की महिला थीं । 1946-1952 तक उन्होंने संविधान सभा और भारत की अनंतिम संसद के सदसय के रूप में कार्य किया । संसद में उन्होंने वशषिा के मामलों में विशेष रूप से अनुसूचित जातियों के मामलों में विशेष रुचि ली । वह के. आर. नारायणन की भी रिशतेदार थीं जो बाद में देश के राष्ट्रपति बने ।
आरक्षण भी एक प्रकार का Separate Electorates ही है । लेकिन हमें इस बुराई को सहना होगा ्योंकि हम सोचते हैं कि यह एक आवशयक बुराई है ।
उनहोंने 1971 के आम चुनावों में अदूर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से भी चुनाव लड़ा
लेकिन पांच उममीिवारों के बीच चौथे सथान पर रहीं । दक्षिणायनी डिप्रेसड ्लासेज यूथस फाइन आरस्म ्लब की अधयक्ष थीं और 1946-49 तक मद्रास में द कलॉमन मैन की प्रबंध संपादक रहीं । बाद में वह महिला जागृति परिषद की संसथापक अधयक्ष बनीं । हालांकि दक्षिणायनी के जनम के समय जाति वयवसथा का विरोध केरल में शुरू हो चुका था । कई समाज सुधारकों ने पुलाया समुदाय के उतथान की दिशा में महतवपूर्ण कदम उठाने शुरू किए थे, जिसका हिससा दक्षिणायनी के माता-पिता भी रहें । दक्षिणायनी को हर अनयाय के विरुद्ध सवाल उठाने का पाठ उनके माता-पिता से ही मिला । अपनी आतमकथा में उनहोंने लिखा कि वह पांच- भाई बहन थी, जिसमें सबसे जयािा पयार पिता उनहें ही करते थे । उनके पयार और समर्थन से ही उनहोंने अपने समुदाय में सबसे कई ऐसे काम किए जो सबसे हुए । इनमें ऊपरी अंग वसत्र पहनने की शुरुआत भी शमिल है । दक्षिणायनी ने बरसों से चली आ रही इस कुप्रथा के विरुद्ध बदलाव किया और नयाय, समानता, समता, गरिमा जैसे संवैधानिक मूलयों की एक प्रतीक बनीं । 66 वर्ष की आयु में बीमारी के कारण 20 जुलाई 1978 को उनका निधन हो गया । ततकालीन समय में पहली और एकमात्र दलित महिला विधायक दक्षायनी वेलायुधन को सममावनत करते हुए केरल सरकार ने 2019 में ' दक्षिणायनी वेलायुधन पुरसकार ' की सथापना की है, जो राजय में अनय महिलाओं को सश्त बनाने में योगदान देने वाली महिलाओं को दिया जाता है ।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 26 नवंबर 2022 को संविधान दिवस के अवसर पर दक्षिणायनी वेलायुधन को याद किया था । उनहोंने कहा था कि हमारी संविधान सभा में 15 महिला सदसय थीं और उनमें एक दक्षिणायनी वह महिला थी जो एक प्रकार से वंचित समाज से निकल कर वहां तक पहुंची थीं । उनहोंने दलितों, मजदूरों से जुड़े कई विषयों पर महतवपूर्ण हसतक्षेप किए । लेकिन इनके योगदान की चर्चा कम ही हो पाती है ।
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