अभिवयक्त में सपषट और सुबुद्ध तथा वाद-विवाद में कुशाग् और रूचिकर थे और इसके बावजूद उनहोंने किसी आलोचक को मुद्ा उठाने दिया है, उस प्रकार कोई नहीं कर सकता था । हमने डा. आंबेडकर को प्रारूप समिति का सदसय चुनने और बाद में उनहें इसका सभापति बनाने से बढ़कर कभी कोई इतना सही निर्णय नहीं लिया । उनहोंने अपने चयन को नयायसंगत ही नहीं ठहराया बकलक जो कार्य किया उसमें भी
चार-चांद लगा दिए । अपनी पर्यापत बौद्धिक ईमानदारी से आंबेडकर ने संविधान का प्रारूप तैयार करने का श्ेय संवैधानिक सलाहकार, अपने प्रारूप समिति के सहयोगियों श्ी एस०एन० मुखजसी, जिनहें वह ' संविधान का मुखय प्रारूपकार ' कहा करते थे और अपने सटाफ के सदसयों को दिया । उनहोंने कांग्ेस पाटसी को भी बधाई दी और कहा कि प्रारूप समिति, कांग्ेस पाटसी के अनुशासन के कारण ही प्रतयेक अनुचछेि
और संशोधन के संबंध में वनकशचत जानकरी के साथ संविधान सभा में संविधान तैयार करने में सक्षम रहीं । इसीलिए, कांग्ेस पाटसी को सभा में संविधान के प्रारूप को निर्बाध रूप से तैयार करने का पूरा श्ेय मिलना चाहिए ।
संविधान के भावी कार्य का देखते हुए, आंबेडकर ने अपना निषपक्ष विचार वय्त किया था कि संविधान का कार्य पूर्णतः संविधान की प्रकृति पर निर्भर नहीं करता है । उनहोंने आगे कहा कि संविधान केवल विधायिका, कार्यपालिका और नयायपालिका जैसे राजय के अंग दे सकता है । जिन कारकों पर राजय के इन अंगों का कार्य निर्भर करता है, वह हैं जनता और उसके द्ारा अपनी इचछाओं और नीतियों के वरियानवयन के लिए उपकरण के रूप में गठित किए गए राजनीतिक दल ।
डा. आंबेडकर सितमबर 1951 में तयाग पत्र देने तक, नेहरू मंत्रिमणडल में विधि मंत्री थे । वह मार्च 1952 में राजय परिषद के सदसय के रूप में चुने गए । उनका अकसमात 6 दिसमबर 1956 को निधन हो गया । प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के शबिों में ' डा. आंबेडकर ने भारत के संविधान के निर्माण में, ततपशचात संविधान सभा के विधायी भाग में और उसके बाद अनतरिम संसद में बहुत महतवपूर्ण भूमिका निभाई ।
डा. आंबेडकर को हिनिू विधि सुधार के संबंध में संसद में उनके प्रयनों के लिए भी याद किया जाएगा । उनहोंने हिनिू कोड बिल को 5 फरवरी 1951 को संसद में प्रसतुत किया । वह 1952 के प्रथम आम चुनावों से पहले विषेयक को संसद की सवीकृति दिलाना चाहते थे । अतः विधेयक उनके जीवनकाल के दौरान केवल आंशिक रूप से ही पारित हो सका । उनके समकालीन वयक्तयों में से कुछ लोग ऐसे भी थे जो यह महसूस करते थे कि डा. आंबेडकर ने जिन सिद्धानतों को संविधान के मूल प्रारूप में आधार बनाया है, वह कई अथषों में बेहतर थे । यहां मैं इस महान प्रतिभा को अपनी विशेष श्द्धांजलि अर्पित करता हूं ।
मैं उनके वयक्तगत संपर्क में श्ी एम. एन. कौल, जो उस समय केनद्रीय विधान सभा के
tqykbZ 2025 47