संवैधानिक गणतंत्र
एस. एल. शकधर
डा. बी. आर. आंबेडकर का संविधान सभा और संसद में योगदान
सं नेहरू ने 13 दिसंबर 1946 को अपना
विधान सभा की पहली बैठक 9 सितंबर 1946 को हुई । पंडित जवाहरलाल
उद्ेशय संकलप रखा । इसे 22 जनवरी 1947 को संविधान सभा द्ारा सर्वसममवत से सवीकार कर लिया गया । इसने 29 अगसत 1947 को संवैधानिक सलाहकार द्ारा तैयार किए गए मूल-संविधान के प्रारूप की संविक्षा करने और समिति द्ारा संशोधित संविधान प्रारूप को संविधान सभा के समक्ष विचारार्थ पेश करने के लिए एक प्रारूप समिति नियु्त की ।
पकशचम बंगाल विधान सभा के सदसयों ने डा. आंबेडकर को संविधान सभा के सदसय के रूप में निर्वाचित किया । उनहें प्रारूप समिति के सदसय के रूप में निर्वाचित किया गया और बाद में वह उसके सभापति नियु्त किए गए । प्रमुख देशों के संविधानों और भारत सरकार अधिनियम-1935 के कार्यकरण के बाद में उनकी पूर्ण जानकारी ने संविधान का प्रारूप तैयार करने में उनकी भूमिका में उनहें काफी सहायता प्रदान की । उनके द्ारा प्रारूप में विशिषट प्रावधानों पर आधारित सिद्धानत का प्रतिपादन सुविधाजनक और युक्त-यु्त संविधान ढंग से सभा में किसी ओर से भी की गई आलोचना का सामना कर सकता था । सुप्रसिद्ध संवैधानिक इतिहासज्ञ और लेखक श्ी एम वी पायली का हमारे संविधान के निर्माण में डा. आंबेडकर के योगदान के बारे में कहना है कि-
संविधान सभा में एकमात्र डा. आंबेडकर ही तर्क में अतयनत प्रभावशाली और विशवासोतपािक,
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