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हूल दिवस( 30 जून)

संथाल परगना में दहकी थी स्ाधीनता

की आग

अजीत कुमार सिंह

सवाधीनता संग्ाम में जनजातीय समाज की अग्णी भूमिका रही है । भारतीय

जनजातीय नायकों ने अपनी मातृभूमि को विदेशी दासता से मु्त कराने के लिए अपना संपूर्ण नयोछावर कर दिया । सवतंत्रता संग्ाम में संथाल हूल का विशिषट सथान है । 170 वर्ष पहले 30 जून 1855 में ततकालीन बंगाल प्रेसीडेंसी वर्तमान में झारखंड के संथाल परगना में सिदो-कानहू के नेतृतव में किया गया हूल ने 1857 के सवतंत्रता संग्ाम की पीठिका तैयार की थी । हूल का अर्थ होता है अनयाय के विरूद्ध रिांवत का आह्ान यानी उलगुलान, विद्रोह का आह्ान, आंदोलन का शंखनाद । 1857 के सवाधीनता संग्ाम को इतिहासकारों ने सिपाही विद्रोह तक सीमित करने का प्रयास किया ताकि इस अखिल भारतीय आंदोलन की जवाला को
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