ने उस समय थोड़ा सा धयान दिया होता, तो शायद मांझी को बाईस वर्ष तक हथौड़े-छेनी से पहाड़ तोड़ने की जरूरत ही न पड़ती ।
फिलहाल दशरथ मांझी के बेटे भगीरथ मांझी कांग्ेस में शामिल हो चुके हैं । परिवार अब कांग्ेस से विधानसभा चुनाव के लिए टिकट की मांग कर
रहा है । यह वही परिवार है, जिसे कांग्ेस ने दशरथ मांझी के जीते-जी कभी पूछा तक नहीं । मांझी 2007 तक जिंदा रहे, लेकिन कांग्ेस ने उनकी सुध लेने की जहमत नहीं उठाई । लेकिन अब जब बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चूका है तो राहुल गांधी को मांझी का गांव याद आ गया । भगीरथ मांझी का हाथ पकड़कर फोटो खिंचवाए, वीडियो बनवाए और सोशल मीडिया पर वायरल करवाया । लेकिन सवाल यह है कि ्या यह सब दलितों के लिए सच्चा प्रेम है या फिर वोटों के लिए किया गया
नाटक? ऐसे में कांग्ेस की चाल समझने की जरूरत है । दरअसल, कांग्ेस ने बिहार में पूरी लीडरशिप ही दलितों के इर्द-गिर्द रखी है । प्रदेश में पाटसी की कमान राजेश राम को सौंपी है । वह जब दरभंगा पहुंचे, तो बिना अनुमति ही आंबेडकर हलॉसटल में घुस गए और दलित छात्रों से संवाद
करने लगे । पटना पहुंचे तो फुले फिलम देखने लगे । राजगीर पहुंचे, तो दलितों-आदिवासियों के साथ संवाद काय्मरिम किया । और अब माउंटेन मैन के घर जाकर, माला चढ़ाकर वो इसी कड़ी को आगे बढ़ा रहे हैं । शायद, वह मांझी के परिवार को विधानसभा चुनाव का टिकट भी दे दें, ताकि खुद को दलितों का मसीहा साबित कर सकें । लेकिन वह यह भूल गए हैं कि जनता सब समझती है । अगर कांग्ेस को दलितों की इतनी ही वफरि थी, तो 22 साल तक मांझी को ्यों भूल गए? 27 साल बाद उनकी मौत के बाद भी ्यों नहीं
सुध ली? अब जब वोटों की जरूरत पड़ी, तो माला चढ़ाने और फोटो खिंचवाने का ड्ामा शुरू हो गया ।
वैसे गांधी परिवार का दलितों के प्रति रवैया हमेशा से सवालों के घेरे में रहा है । इंदिरा गांधी के समय बाबू जगजीवन राम को प्रधानमंत्री बनने से रोका गया, सिर्फ इसलिए ्योंकि वह दलित थे । इतना ही नहीं, उनके बेटे का से्स सकैंडल इंदिरा ने अपनी बहू के अखबार में छपवाया, ताकि जगजीवन राम की छवि खराब हो । यह है गांधी परिवार का दलित प्रेम? अब राहुल गांधी बिहार में दलितों के घर जा रहे हैं, लेकिन उनका मन वहां है ही नहीं । माला चढ़ाते व्त उनका चेहरा देख लीजिए, लगता है जैसे कोई जबरदसती करवा रहा हो ।
राहुल गांधी का यह पांचवां बिहार दौरा था वह भी गत पांच माह में । पहले दरभंगा, पटना, समसतीपुर, पकशचम चंपारण और अब गया, राजगीर, बोधगया । हर जगह वही ड्ामा-माला चढ़ाओ, फोटो खिंचवाओ और सोशल मीडिया पर वायरल कराओ । राजगीर में जरासंध समारक गए, बाबासाहब आंबेडकर की मूर्ति पर माला चढ़ाई और फिर अति पिछड़े समाज के लोगों से मुलाकात की । लेकिन यह सब कितना सच्चा है? अगर दलितों और पिछड़ों की इतनी ही चिंता थी, तो कांग्ेस ने अपने 60 वर्ष के शासन में उनके लिए ्या किया? यह प्रश्न सभी के सामने हैI
राहुल गांधी का बिहार दौरा और दशरथ मांझी के गांव जाना, एक सोचा-समझा राजनीतिक ड्ामा कहा जा सकता है । माला चढ़ाने का ढोंग, परिवार से मिलने का नाटक और सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो- ये सब वोटों के लिए है । कांग्ेस का इतिहास गवाह है दलितों और गरीबों की अनदेखी का । कांग्ेस का इतिहास रहा है वादे करने का, नारे देने का, लेकिन काम करने का नहीं । आज राहुल गांधी मांझी के गांव जाकर उनकी महानता का बखान कर रहे हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि मांझी को वह सममान नहीं मिला, जो उनहें कांग्ेस के राज में मिलना चाहिए था ।
( साभार) tqykbZ 2025 35