कांग्ेस
राहु ल गांधी का दलित प्रेम या राजनीतिक मजबूरी?
श्रवण शु्िा
नेता राहुल गांधी लगातार बिहार कांग्ेस राजनीतिक दौरा कर रहे हैं ।
इसी कड़ी में वह गत 6 जून को गया पहुंचे । वहां से वह दशरथ मांझी के गांव गए, उनकी मूर्ति पर माला चढ़ाई, परिवार से मिले और पूरे तामझाम के साथ दलित प्रेम का ढोंग रचाया । इस पूरे तामझाम का उद्ेशय केवल एक ही था, वह था‘ दलित प्रेम’ का प्रदर्शन । लेकिन जो हुआ, उसने राहुल गांधी की राजनीति की पोल सभी के सामने खुल गई ।
दरअसल, गयाजी जिले के गहलौर गांव में राहुल गांधी अपने राजनीतिक दौरे में दशरथ मांझी मेमोरियल पहुंचे । वहां माउंटेन मैन की मूर्ति पर माला चढ़ाई । लेकिन जिस तरह से उनहोंने यह किया, वह देखकर किसी का भी मन खट्ा हो जाए । राहुल गांधी ने मूर्ति पर दो बार माला चढ़ाई, लेकिन नजरें मूर्ति की तरफ उठी तक नहीं । राहुल गांधी ने एक हाथ से, तिरछे होकर जैसे जबरदसती कोई काम कर रहा हो, इसी तरह से इस‘ काम’ को निपटाया । चेहरे के हाव-भाव, मूर्ति की ओर नजरें और माला पहनाने का अंदाज-सब कुछ साफ बता रहा था कि राहुल गांधी के लिए यह श्द्धा नहीं, मजबूरी थी । एक हाथ से तिरछी माला, बिना नजरें मिलाए जलिी-जलिी दो बार माला चढ़ाना और आगे बढ़ जाना । इस घटना के बाद सथानीय लोग भी तंज कस रहे हैं कि राहुल को माला चढ़ाने में भी मेहनत नहीं करनी । शायद सोच रहे होंगे कि बस फोटो खिंच जाए, बाकी तो जनता वैसे ही वोट दे देगी ।
गया जिले में दशरथ मांझी का नाम बहुत ही श्द्धा के साथ लिया जाता है, जिनहें माउंटेन
मैन कहा जाता है । उनहोंने 22 साल तक पहाड़ काटकर रासता बनाया । आज दशरथ मांझी का नाम है, तो वह राहुल गांधी के ही परिवार, खानदान, पाटसी की वजह से । कारण यह है कि दशरथ मांझी की पत्ी फालगुनी की मौत, जिस अवयवसथा के कारण 1959 में हुई, वह उस समय की कांग्ेस सरकार की देन थी । 1960 से 1982 तक मांझी ने अकेले और अपनी दम पर पहाड़ काट कर रासता बना दिया, लेकिन कांग्ेस की सरकारें सोती रहीं ।
इससे पहले भी देश और बिहार की राजनीति पर कांग्ेस का ही वर्चसव था और उसके बाद भी कांग्ेस का लंबे समय तक राज रहा, लेकिन विकास कायषों की जगह कांग्ेस पाटसी ने आम जनता की तकलीफों और परेशानियों के प्रति मुंह मोड़े रखा । न तो कोई सड़क बनी, न असपताल और न ही कोई मदद मिली । मांझी ने अपनी मेहनत से जो रासता बनाया, उसकी सुध लेने में कांग्ेस को 22 साल लगे नहीं, बकलक कभी सुध ली ही नहीं । अब राहुल गांधी उनहीं दशरथ मांझी के परिवार से मिल रहे हैं और महानता का बखान कर रहे हैं ।
वैसे कांग्ेस का इतिहास दलितों और गरीबों की अनदेखी की कहानियों से भरा हुआ है । दशरथ मांझी के समय से लेकर बाद तक, कांग्ेस ने बिहार में लंबा राज किया । लेकिन ्या बदला? आज भी गांवों में सड़कें नहीं, असपताल नहीं, स्कूल नहीं । ऐसे में मांझी जैसे लोग अपनी जान जोखिम में डालकर पहाड़ काटते रहे और कांग्ेस की सरकारें कुससी की राजनीति में मसत रहीं । बाद में जब लालू यादव और राबड़ी देवी की सरकारें आईं, जो कांग्ेस की सहयोगी थीं, तब भी मांझी की कोई सुध नहीं ली गई । पंद्रह वर्ष तक लालू-राबड़ी ने
बिहार को जंगलराज में धकेला, लेकिन मांझी जैसे लोगों के लिए कुछ नहीं किया ।
वह तो भला हो नीतीश कुमार और बीजेपी की जोड़ी का, जिनहोंने मांझी के बनाए रासते को प्का करवाया । नीतीश ने मांझी को सममान दिया, उनके नाम पर सड़क बनवाई और पद्मश्ी के लिए उनका नाम भेजा । यही नहीं, मृतयु के बाद राजकीय सममान के साथ विदाई भी दी । लेकिन राहुल गांधी अब मांझी के गांव में जाकर उनकी महानता का बखान कर रहे हैं । उनहें यह भी समझ नहीं आ रहा है कि अगर उनकी पाटसी
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