July 2025_DA | Page 15

खोलने की कुंजी है, जो उन सामानय उद्ेशयों को इंगित करती है जिसके लिए लोगों ने संविधान का निर्माण किया था । एक बहुत ही गंभीर कार्य, जिसे बदला नहीं जा सकता, को लापरवाही से, हासयासपि तरीके से और औचितय की भावना के बिना बदल दिया गया है ।
डा. आंबेडकर के ज्ञानपूर्ण शबिों को याद करते हुए उपराषट्रपति धनखड़ ने कहा कि डा. आंबेडकर एक दूरिशसी थे । वह एक राजनेता थे । हमें डा. आंबेडकर को कभी भी एक राजनेता के रूप में नहीं देखना चाहिए । यदि आप उनकी यात्रा से गुजरेंगे, तो आप पाएंगे कि इसे सामानय रूप से दूर नहीं किया जा सकता है । उस यात्रा को तय करने के लिए असाधारण मानवीय प्रयास, रीढ़ की हड्ी की ताकत की आवशयकता होती है, जिस तरह की पीड़ा उनहोंने झेली । ्या आप कभी सोच सकते हैं कि डा. आंबेडकर को मरणोपरांत भारत रत् दिया जाएगा? 1989 में संसद का सदसय और मंत्री होना मेरा सौभागय था, जब इस महानतम धरती पुत्र को मरणोपरांत भारत रत् दिया गया था, लेकिन मेरा दिल रोया था । इतनी देर ्यों? मरणोपरांत ्यों? और
इसलिए मैं गहरी चिंता के साथ उद्धृत करता हूं, देश में हर किसी से अपनी आतमा की खोज करने और राषट्र के लिए सोचने का अनुरोध करता हूं ।
उनहोंने कहा कि वह नहीं चाहते हैं कि भारतीयों के रूप में हमारी वफादारी हमारी प्रतिसपधसी वफादारी से थोड़ी सी भी तरह से प्रभावित हो, चाहे वह वफादारी हमारे धर्म से उतपन् हो, हमारी संसकृवत से या हमारी भाषा से । यह संविधान सभा में 25 नवंबर 1949 उनका आखिरी संबोधन था, संविधान सभा के सदसयों द्ारा संविधान पर हसताक्षर किए जाने से एक दिन पहले और उनहोंने जो कहा- वह अद्भुत था । मैं देश के सभी लोगों से आग्ह करूंगा कि वह इसे एक फ्ेम में रखें और हर दिन इसे पढ़ें ।
उनहोंने कहा कि मुझे इस बात से बहुत परेशानी होती है कि भारत ने न केवल एक बार अपनी सवतंत्रता खोई है, बकलक उसने इसे अपने ही कुछ लोगों की ग़लती और विशवासघात के कारण खो दिया है । ्या इतिहास खुद को दोहराएगा? यही विचार मुझे चिंता से भर देता है । यह चिंता इस
तथय के अहसास से और भी गहरी हो जाती है कि जातियों और पंथों के रूप में हमारे पुराने शत्रुओं के अलावा, हमारे पास कई राजनीतिक दल होंगे जिनके राजनीतिक पंथ अलग-अलग और विरोधी होंगे । ्या भारतीय देश को अपने पंथ से ऊपर रखेंगे? या वह पंथ को देश से ऊपर रखेंगे । मुझे नहीं पता, लेकिन इतना तो तय है कि अगर पार्टियां पंथ को देश से ऊपर रखती हैं, तो हमारी सवतंत्रता दूसरी बार ख़तरे में पड़ जाएगी और शायद हमेशा के लिए खो जाएगी । इस संभावना से हम सभी को नियमित रूप से सावधान रहना चाहिए । हमें अपने खून की आखिरी बूंद तक अपनी सवतंत्रता की रक्षा करने के लिए दृढ़ संककलपत होना चाहिए ।
पुसतक की चर्चा करते हुए उनहोंने कहा कि पुसतक के लेखक श्ी डी. एस. वीरयया जी दो बार कर्नाटक विधान परिषद के सदसय रह चुके हैं और उनहोंने प्रतिककूल पररकसथवतयों में जीवन की कठिनाइयों का सामना करते हुए उतकृषटता हासिल की । उनका यह कार्य अतयंत प्रेरणादायक और प्रशंसनीय है । यह एक महतवपूर्ण कार्य है, और अतयंत सामयिक भी । डा. अंबेडकर के संदेश आज अतयंत प्रासंगिक हैं । यह संदेश जन-जन तक, परिवार सतर तक पहुंचने चाहिए । बच्चों को इनसे परिचित कराना आवशयक है ।
वह इस पुसतक विमोचन से जुड़कर सवयं को गौरवाकनवत अनुभव कर रहे हैं । यह एक ऐसा ग्ंथ है, जो पीवढ़यों के बीच की दूरी मिटाता है । यह प्रतयेक के सिरहाने रखने योगय ग्ंथ है, जिसे पढ़ते-पढ़ते नींद सुककून से आए । यह पुसतक जीवन की सहचर बननी चाहिए । श्ी वीरयया जी ने इसे अतयंत कुशलता और समर्पण से संकलित किया है । वह एक सिद्ध लेखक और कवि हैं । गुलबर्गा विशवविद्ालय ने उनहें‘ आंबेडकर अवार्ड’ से सममावनत किया हैं । इन दो पुसतकों के माधयम से डा. आंबेडकर का चिंतन हमें समरण कराता है कि उनके विचार केवल अकादमिक विमर्श तक सीमित न रह जाएं, बकलक समाज में समानता, समरसता और समावेशी विकास के लक्य की दिशा में हमें प्रेरित करें ।
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