July 2025_DA | Page 13

संविधान की वयाखया के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करती है और उस स्ोत को इंगित करती है, जहां से संविधान अपना अधिकार प्रापत करता है-अर्थात, भारत के लोग ।
उपराषट्रपति एन्लेव में गत 28 जून को लेखक और कर्नाटक के पूर्व एमएलसी डी. एस. वीरैया द्ारा संकलित‘ आंबेडकर के संदेश’ की पहली प्रति प्रसतुत करने के अवसर पर दिए गए अपने समबोधन में उपराषट्रपति धनखड़ ने जोर दिया कि हमें चिंतन करना चाहिए । डा. आंबेडकर ने कड़ी मेहनत की । उनहोंने वनकशचत रूप से इस पर धयान केंद्रित किया होगा । संसथापक पिताओं ने हमें वह प्रसतावना देना उचित समझा । भारत को छोड़कर किसी भी देश की प्रसतावना में बदलाव नहीं हुआ है । लेकिन विनाशकारी रूप से, भारत के लिए यह परिवर्तन उस समय किया गया जब लोग वसतुतः गुलाम थे । हम लोग, शक्त के अंतिम स्ोत- उनमें से
डा. आंबेडकर के संदेशों की समकालीन प्रासंगिकता पर प्रकाश डालते हुए उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि डा. अंबेडकर हमारे दिलों में रहते हैं । वह हमारे दिमाग पर हावी हैं और हमारी आतमा को छूते हैं । उनके संदेश हमारे लिए बहुत समकालीन प्रासंगिकता रखते हैं । उनके संदेशों को परिवार के सतर तक ले जाने की जरूरत है । बच्ों को इन संदेशों के बारे में पता होना चाहिए ।
सर्वश्ेषठ जेलों में सड़ रहे थे । उनहें नयावयक प्रणाली की पहुंच से वंचित रखा गया था । वह 25 जून 1975 को घोषित 22 महीने के क्रूर आपातकाल की बात कर रहे हैं । तो, नयाय का कैसा मजाक! सबसे पहले, हम कुछ ऐसा बदलते हैं जो बदलने योगय नहीं है, परिवर्तनीय नहीं है- कुछ ऐसा जो हम लोगों से निकलता है- और फिर, आप इसे आपातकाल के दौरान बदलते हैं । जब हम लोग खून से लथपथ थे-हृदय से, आतमा से- अंधकार में थे ।
उनहोंने कहा कि हम संविधान की आतमा को बदल रहे हैं । वासतव में, आपातकाल के सबसे काले दौर में जोड़े गए इन शबिों की चमक से हम संविधान की आतमा को बदल रहे हैं । इस प्रवरिया में, यदि आप गहराई से सोचें, तो हम अकसततवगत चुनौतियों को पंख दे रहे हैं । इन शबिों को नासूर( घाव) के रूप में जोड़ा गया है । यह शबि उथल-पुथल मचाएंगे । आपातकाल के दौरान प्रसतावना में इन शबिों को जोड़ना संविधान के निर्माताओं की मानसिकता के साथ विशवासघात का संकेत है । यह हजारों वरषों से इस देश की सभयतागत संपदा और ज्ञान को कमतर आंकने के अलावा और कुछ नहीं है । यह सनातन की भावना का अपमान है ।
डा. आंबेडकर के संदेशों की समकालीन प्रासंगिकता पर प्रकाश डालते हुए उपराषट्रपति धनखड़ ने कहा कि डा. अंबेडकर हमारे दिलों में रहते हैं । वह हमारे दिमाग पर हावी हैं और हमारी आतमा को छूते हैं । उनके संदेश हमारे लिए बहुत समकालीन प्रासंगिकता रखते हैं । उनके संदेशों को परिवार के सतर तक ले जाने की जरूरत है । बच्चों को इन संदेशों के बारे में पता होना चाहिए । देश के उपराषट्रपति और राजयसभा के सभापति होने के नाते संसद से जुड़े वयक्त के रूप में उनहें ' आंबेडकर के संदेश ' प्रापत करने में अतयवधक संतुकषट होती है, जिसका सबसे पहले देश भर के सांसदों और विधायकों द्ारा, फिर नीति निर्माताओं द्ारा सममान किया जाना चाहिए । साथ ही यह विचार करना चाहिए कि हमारे लोकतंत्र के मंदिरों का अपमान ्यों किया जाता है? हमारे लोकतंत्र के मंदिरों को
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