विमर्श
संविधान की प्रस्ािना में बदलाव करके डा. आंबेडकर की भावना को रौंदा गया: उपराष्ट्पति
मूल प्रस्ािना में नहीं हैं समाजवादी, धर्मनिरपेषि और अखंडता शब्द 42वें संविधान संशोधन अधिनियम से किया गया संविधान की प्रस्ािना में बदलाव सनातन की भावना का अपमान है संविधान की प्रस्ािना में परिवर्तन
भी संविधान की प्रसतावना
किसी
उसकी आतमा होती है । भारतीय संविधान की प्रसतावना अवद्तीय
है । भारत को छोड़कर, किसी अनय देश के
संविधान की प्रसतावना में परिवर्तन नहीं हुआ है और ्यों? प्रसतावना परिवर्तनीय नहीं है । प्रसतावना में परिवर्तन नहीं किया जा सकता । प्रसतावना वह आधार है, जिस पर संविधान विकसित हुआ है । प्रसतावना संविधान का बीज है । यह संविधान की आतमा है, लेकिन भारत के लिए इस प्रसतावना को 1976 के 42वें संविधान संशोधन अधिनियम द्ारा बदल दिया गया, जिसमें समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता शबि जोड़े गए । यह कहना है उपराषट्रपति जगदीप धनखड़ का । वह कहते हैं
कि आपातकाल के दौरान, भारतीय लोकतंत्र के सबसे काले दौर में, जब लोग सलाखों के पीछे थे, मौलिक अधिकार निलंबित थे । उन लोगों के नाम पर-हम लोग-जो गुलाम थे, हम सिर्फ ्या चाहते हैं? सिर्फ शबिों का तड़का? इसे शबिों से परे निंदनीय है । केशवानंद भारती बनाम केरल राजय, 1973, एक 13 नयायाधीशों की पीठ- नयायाधीशों ने संविधान की प्रसतावना पर धयान केंद्रित किया और गहराई से विचार किया । प्रसिद्ध नयायाधीश, नयायमूर्ति एच. आर. खन्ा ने कहा कि, मैं उद्धृत करता हूं: प्रसतावना
12 tqykbZ 2025