July 2024_DA | Page 49

सवर्ण या शूद्र , उच् या निम्न माना जाने लगा । शूद्रों को असपृशय और अछूत माना जाने लगा । इतना ही नहीं उनहें वेदों के अधययन , पठन - पाठन , यज् आदि करने से वंचित कर दिया गया । उच् वर्ग ने समाज में अपना वर्चसव बनाये रखने के लिए बड़ी चालाकी यह की कि ज्ान व शिक्ा के अधिकार को उनसे ( निम्न वर्ग से ) छीन लिया और उनहें अज्ान के अंधकार में झोंक दिया । इससे वे आज तक जूझ रहे हैं और उबर नहीं पा रहे हैं ।
दलित शब्द का वास्तवक अर्थ
दलित शबद का उपयोग अलग-अलग संदभषों में अलग-अलग अथषों में किया जाता रहा है । अ्सि इस शबद का प्रयोग एससी के संदर्भ में किया जाता है । कभी-कभी इसमें एससी और
एसटी दोनों को सकममलित कर दिया जाता है । कुछ अनय मौकों पर और अनय संदभषों में , इस शबद का इसतेमाल एससी , एसटी व एसईडीबीसी तीनों के लिए संयु्त रूप से किया जाता है । कभी-कभी इन तीनों के लिए ' बहुजन ' शबद का इसतेमाल भी होता है । जैसा कि हम जानते हैं भारतीय समाज में दलित वर्ग के लिए अनेक शबद प्रयोग में लाये जाते रहे है , लेकिन अब दलित शबद सर्वसवीकार्य है । दलित का शाकबदक अर्थ है - मसला हुआ , रौंदा या कुचला हुआ , नषट किया हुआ , दरिद्र और पीलड़त दलित वर्ग का वयक्त । भारत में लवलभन् विद्ान विचारकों ने दलित समाज को अपने - अपने ढंग से संबोधित एवं परिभालर्त किया है । दलित पैंथर्स
के घोर्णा पत् में अनुसूचित जाति , बौद्ध , कामगार , भूमिहीन , मज़दूर , ग़िीब - किसान , खानाबदोश , आदिवासी और नारी समाज को दलित कहा गया है ।
' डिप्ेसड ' और ' सप्ेसड क्ासेज '
डलॉ . एनीबेसेंट ने दरिद्र और पीडितों के लिए ' डिप्रेसड ' शबद का प्रयोग किया है । सवामी विवेकानंद ने ' सप्रेसड ्लासेज ' शबद का प्रयोग उन समुदायों के लिए किया जो अछूत प्रथा के शिकार थे । गांधीजी ने भी इस शबद को सवीकार किया और यह कहा कि वे निःसंदेह ' सप्रेसड ' ( दमित ) हैं । आगे चलकर उनहोंने इन वगषों के लिए ' हरिजन ' शबद गढ़ा और उसका प्रयोग करना शुरू किया । सवामी विवेकानंद द्ािा इसतेमाल किए गए ' सप्रेसड ' शबद को सवामी श्द्धानंद ने हिनदी में ' दलित ' के रूप में अनुदित
दलित शब्द का उपयोग अलग-अलग संदभभों में अलग-अलग अथभों में किया जाता रहा है । अक्सर इस शब्द का प्रयोग एससी के संदर्भ में किया जाता है । कभी-कभी इसमें एससी और एसर्ी दोनों को सम्मिलित कर दिया जाता है । कु छ अन्य मौकों पर और अन्य संदभभों में , इस शब्द का इस्तेमाल एससी , एसर्ी व एसईडीबीसी तीनों के लिए संयुक्त रूप से किया जाता है ।
किया । सवामी श्द्धानंद के अछूत जातियों के प्रति दृकषटकोण और उनकी सेवा करने के प्रति उनकी सतयलनषठा को डॉक्टर आंबेडकर और गांधीजी दोनों ने सवीकार किया और उसकी प्रशंसा की । गांधीजी और आंबेडकर में कई मतभेद थे , परंतु सवामी श्द्धानंद के मामले में दोनों एकमत थे । बाबा साहेब आंबेडकर , महातमा फुले , रामासवामी पेरियार ने इस बृहत समाज के उतथान के लिए उनहें समाज में उचित सथान दिलाने के लिए बहुत संघर््य किया । आज अगर दलित वर्ग में अधिकार और नयाय चेतना का विकास हुआ है तो वह इनहीं महानुभावों के संघर््य का सुफल है । हमारे लेखकों , साहितयकारों ने दलित समाज के कषटों , अपमान और संघर्षों
को अपनी लेखनी के माधयम से पूरे विशव के सामने रखा । विशेर्कर दलित वर्ग के लेखकों ने अपनी आतमकथाओं के द्ािा दलित समाज के कषटकारक यथार्थ को बृहद जनमानस के सामने ईमानदारी से प्रसतुत किया ।
मराठी लेखकों की आत्मकथाएं
कुछ मराठी लेखकों की आतमकथाएँ सामाजिक-ऐतिहासिक दृकषट से अतयंत महतवपूर्ण हैं जिनकी चर्चा अतयंत आवशयक है । इनमें एक आतमकथा का शीर््यक है ' उपारा ' ( बाहरी वयक्त ) ( 1980 ) जो मराठी में लक्मण माने द्ािा लिखी गई थी । यह कृति केकाड़ी समुदाय के बारे में है । यह समुदाय महाराषट्र में एसईडीबीसी की सूची में शामिल है । यह एक ऐसा समुदाय है जिसे औपनिवेशिक काल में आपराधिक जनजाति अधिनियम 1871 के तहत आपराधिक जनजाति करार दिया गया था । केकाड़ी , आंध्र प्रदेश के येरूकुला के समकक् हैं , जिनहें पूर्व में ' दमित जातियों ' की सूची में शामिल किया गया था और बाद में एसटी का दर्जा दे दिया गया । ये दोनों कर्नाटक के कोराचा , जो एससी की सूची में हैं और तमिलनाडु के कोरावा के समकक् हैं । कोरावा के कुछ तबकों को एसटी और कुछ को पिछड़ी जातियों में शामिल किया गया है । अलग-अलग राजयों में उनहें जो भी दर्जा दिया गया हो । इसमें कोई संदेह नहीं कि केकाड़ी समुदाय , समाज के सबसे निचले पायदान पर है और उनके जीवन के बारे में लिखे गए साहितय को ' दलित साहितय ' कहा ही जाना चाहिए , लेकिन ऊपर बताए गए सपषटीकरण के साथ । प्रसिद्ध लेखिका महाशवेता देवी ने लोध और सबर नामक एसटी समुदायों पर केकनद्रत कृतियाँ रची हैं ।
दलित सादहत् में सामने आ रहा सच
सामानयतः दलित शबद का इसतेमाल अनुसूचित जाति के लिए किया जाता है अर्थात उन जातियों के लिए जो अछूत प्रथा की शिकार थीं । लेकिन समाज में आदिवासी और अनेक
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