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दलित विषयक लेखन इतिहास को देखने की एक नई दृष्टि दबा-ढ़ंका सत् खुलकर आ रहा सामने दलितों और स्त्रियों को इतिहास-हीन कहना गलत
शैलेन्द्र चौहान
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रतीय समाज आदिकाल से ही वर्ण वयवसथा द्ािा नियंलत्त रहा है । ऐसा माना जाता है कि जो वर्ण
वयवसथा प्रारंभ में कर्म पर आधारित थी ,
कालानति में जाति में परिवर्तित हो गई । वर्ण ने जाति का रूप कैसे धारण कर लिया , यह विचारणीय प्रश्न है । वर्ण वयवसथा में गुण व कर्म के आधार पर वर्ण परिवर्तन का प्रावधान था , किनतु जाति के बंधन ने उसे एक ही वर्ण
या वर्ग में रहने को मजबूर कर दिया । अब जनम से ही वयक्त जाति के नाम से पहचाना जाने लगा । उसके वयवसाय को भी जाति से जोड़ दिया गया । जाति वयक्त से हमेशा के लिए चिपक गई और उसी जाति के आधार पर उसे
48 tqykbZ 2024