July 2024_DA | Page 47

लिए श्म करते थे । उनका हिंदुतव की मुखय विचारधारा से अलग होने का कोई उद्ेशय नहीं था । जबकि वर्तमान में दलितों के लिए कलयाण कि बात करने वाली ईसाई मिशनरी उनके भड़का कर हिनदू समाज से अलग करने के लिए सारा श्म कर रही है । उनका उद्ेशय जोड़ना नहीं तोड़ना है ।
डा . आंबेडकर और दलित समाज
ईसाई मिशनरी ने अगर किसी के चिंतन का सबसे अधिक दुरूपयोग किया तो वह संभवत डा . आंबेडकर ही थे । जब तक डा . आंबेडकर जीवित थे , ईसाई मिशनरी उनहें बड़े से बड़ा प्रलोभन देती रही कि किसी प्रकार से ईसाई मत ग्रहण कर ले ्योंकि डा . आंबेडकर के ईसाई बनते ही करोड़ों दलितों के ईसाई बनने का रासता सदा के लिए खुल जाता । लेकिन डा . आंबेडकर ने खुले शबदों के ईसाइयों द्ािा साम , दाम , दंड और भेद की नीति से धर्मानतिण करने को अनुचित कहा । डा . आंबेडकर ने ईसाई धर्मानतिण को राषट्र के लिए घातक बताया था । उनहें ज्ात था कि इसे धर्मानतिण करने के बाद भी दलितों के साथ भेदभाव होगा । उनहें ज्ात था कि ईसाई
समाज में भी अंग्रेज ईसाई , गैर अंग्रेज ईसाई , सवर्ण ईसाई , दलित ईसाई जैसे भेदभाव हैं । यहां तक कि इन सभी गुटों में आपस में विवाह आदि के समबनध नहीं होते है । इनके गिरिजाघर , पादरी से लेकर कब्रिसतान भी अलग होते हैं । अगर सथानीय सति पर ( विशेर् रूप से दलक्ण भारत ) में दलित ईसाईयों के साथ दूसरे ईसाई भेदभाव करते है । तो विशव सति पर गोरे ईसाई ( यूरोप ) काले ईसाईयों ( अफ्ीका ) के साथ भेदभाव करते हैं । इसलिए केवल नाम से ईसाई बनने से डा . आंबेडकर ने सपषट इंकार कर दिया । जबकि उनके ऊपर अंग्रेजों का भारी दबाव भी था । डा . आंबेडकर के अनुसार ईसाई बनते ही हर भारतीय भारतीय नहीं रहता । वह विदेशियों का आर्थिक , मानसिक और धार्मिक रूप से गुलाम बन जाता है । इतने सपषट रूप से लनदचेश देने के बाद भी भारत में दलितों के उतथान के लिए चलने वाली सभी संसथाएं ईसाईयों के हाथों में है । उनका संचालन चर्च द्ािा होता है और उनहें दिशा लनदचेश विदेशों से मिलते है ।
सेवा के नाम पर धममांतरण
ईसाई मिशनरी दलितों को हिंदुओं के अलग करने के लिए पुरजोर प्रयास कर रही हैं । इनका
प्रयास इतना सुनियोजित है कि साधारण भारतीयों को इनके र्ड़यंत् का आभास तक नहीं होता । अपने आपको ईसाई समाज मधुर भार्ी , गरीबों के लिए दया एवं सेवा की भावना रखने वाला , विद्ालय , अनाथालय , चिकितसालय आदि के माधयम से गरीबों की सहायता करने वाला दिखाता है । मगर सतय यह है कि ईसाई यह सब कार्य मानवता की सेवा के लिए नहीं , अपितु इसे अपनी संखया बढ़ाने के लिए करता है । विशव इतिहास से लेकर वर्तमान में देख लीजिये पूरे विशव में कोई भी ईसाई मिशन मानव सेवा के लिए केवल धर्मानतिण के लिए कार्य कर रहा हैं । भारत में यही खेल उनहोंने दलितों के साथ खेला है । दलितों को ईसाईयों की कठपुतली बनने के सथान पर उन हिंदुओं का साथ देना चाहिए जो जातिवाद का समर्थन नहीं करते है । डा . आंबेडकर ईसाईयों के कारनामों से भली भांति परिचित थे । इसीलिए उनहोंने ईसाई बनना सवीकार नहीं किया था । भारत के दलितों का कलयाण हिनदू समाज के साथ मिलकर रहने में ही है । इसके लिए हिनदू समाज को जातिवादरूपी सांप का फन कुचलकर अपने ही भाइयों को बिना भेदभाव के सवीकार करना होगा ।
( साभार )
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