July 2024_DA | Page 46

fjiksVZ

हिन्ू त्ोहारों और देवी- देवताओं के नाम पर भ्रामक प्चार
ईसाई मिशनरी ने हिनदू समाज से समबंलधत तयोहारों को भी नकारातमक प्रकार से प्रचारित करने का एक नया प्रपंच किया । इस खेल के पीछे का इतिहास भी जानिए । जो दलित ईसाई बन जाते थे , वह अपने रीति-रिवाज , अपने तयोहार मनाना नहीं छोड़ते थे । उनके मन में प्राचीन धर्म के लवर्य में आसथा और श्द्धा धर्म परिवर्तन करने के बाद भी जीवित रहती थी । अब उनको कट्टर बनाने के लिए उनको भड़काना आवशयक था । इसलिए ईसाई मिशनरियों ने विशवलवद्ालयों में हिनदू तयोहारों और उनसे समबंलधत देवी-देवतों के लवर्य में अनर्गल प्रलाप आरमभ किया । इस र्ड़यंत् का एक उदाहरण यह भी है कि मलहर्ासुर दिवस का आयोजन दलितों के माधयम से कुछ लवकशवद्ालयों में ईसाईयों ने आरमभ कराया । इसमें शोध के नाम पर यह प्रलसद् किया गया कि काली देवी द्ािा अपने से अधिक शक्तशाली मूलनिवासी राजा के साथ नौ दिन तक पहले शयन किया गया । अंतिम दिन मदिरा के नशे में देवी ने शुद्र राजा मलहर्ासुर का सर काट दिया । ऐसी बेहूदी , बचकाना बातों को शौध का नाम देने वाले ईसाईयों का उद्ेशय दशहरा , दीवाली , होली , ओणम , श्ावणी आदि पवषों को पाखंड और ईसटि , गुड फ्ाइडे आदि को पलवत् और पावन सिद्ध करना था । दलित समाज के कुछ युवा भी ईसाईयों के बहकावें में आकर मूर्खता पूर्ण हरकते कर अपने आपको उनका मानसिक गुलाम सिद्ध कर देते है ।
हिंदुत्व से अलग करने का प्यास
ईसाई मिशनरियों ने एक बड़ा सुनियोजित धीमा जहर खोला । उनहोंने इतिहास में जितने भी कार्य हिनदू समाज द्ािा जातिवाद को मिटाने के लिए किए गए । उन सभी को छिपा दिया । जैसे भक्त आंदोलन के सभी संत कबीर , गुरु
नानक , नामदेव , दादूदयाल , बसवा लिंगायत , रविदास आदि ने उस काल में प्रचलित धार्मिक अंधविशवासों पर निषपक् होकर अपने विचार कहे थे । समग्र रूप से पढ़े तो हर समाज सुधारक का उद्ेशय समाज सुधार करना था । जहां कबीर हिनदू पंडितों के पाखंडों पर जमकर प्रहार करते है , वहीं मुसलमानों के रोजे , नमाज़ और क़ुरबानी पर भी भारी भरकम प्रतिक्रिया करते है । गुरु नानक जहां हिनदू समाज में प्रचलित अंधविशवासों की समीक्ा करते है , वहीं इसलालमक आक्रांता बाबर को साक्ात शैतान की उपमा देते है । इतना ही नहीं सभी समाज सुधारक वेद , हिनदू देवी- देवता , तीर्थ , ईशवि आराधना , आकसतकता , गोरक्ा सभी में अपना विशवास और समर्थन प्रदर्शित करते हैं । ईसाई मिशनरियों ने भक्त
आंदोलन पर शोध के नाम पर सुनियोजित र्ड़यंत् किया । एक ओर उनहोंने समाज सुधारकों द्ािा हिनदू समाज में प्रचलित अंधविशवासों को तो बढ़ा-चढ़ा कर प्रचारित किया , वहींइसलाम आदि पर उनके द्ािा कहे गए विचारों को छुपा दिया । इससे दलितों को यह दिखाया गया कि जैसे भक्त काल में संत समाज ब्राह्मणों का विरोध करता था और दलितों के हित की बात करता था , वैसे ही आज ईसाई मिशनरी भी ब्राह्मणों के पाखंड का विरोध करती है और दलितों के हक की बात करती है । ईसाई मिशनरी के इन प्रयासों में भक्त काल में संतों के प्रयासों में एक बहुत महतवपूर्ण अंतर है । भक्त काल के सभी हिनदू समाज के महतवपूर्ण अंग बनकर समाज में आई हुई बुराइयों को ठीक करने के
46 tqykbZ 2024