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मन से श्ीिाम की छवि को बिगाड़ा गया ।
वेदों के सम्बन्ध में भ्रामक प्चार
इस चरण का आरमभ तो बहुत पहले यूरोप में ही हो गया था । इस चरण में वेदों के प्रति भारतीयों के मन में बसी आसथा और विशवास को भ्राकनत में बदलकर उसके सथान पर बाइबिल को बसाना था । इस चरण में मुखय लक्य दलितों को रखकर निर्धारित किया गया । ईसाई मिशनरी भली प्रकार से जानते है कि गोरक्ा एक ऐसा लवर्य है जिस से हर भारतीय एकमत है । इस एक लवर्य को समपूण्य भारत ने एक सूत् में उग्र रूप से पिरोया हुआ हैं । इसलिए गोरक्ा को विशेर् रूप से लक्य बनाया गया । हर भारतीय गोरक्ा के लिए अपने आपको बलिदान तक करने के तैयार रहता है । उसकी इसी भावना को मिटाने के लिए वेद मनत्ों के भ्रामक अर्थ किए गए । वेदों में मनुषय से लेकर हर प्राणिमात् को लमत् के रूप में देखने का सनदेश मिलता है । इस महान सनदेश के विपरीत वेदों में पशुबलि , मांसाहार आदि जबरदसती शोध के
नाम पर प्रचारित किए गए । इस प्रचार का नतीजा यह हुआ कि अनेक भारतीय आज गो के प्रति ऐसी भावना नहीं रखते जैसी पहले उनके पूर्वज रखते थे । दलितों के मन में भी यह जहर घोला गया । पुरुर् सू्त को लेकर भी इसी प्रकार से वेदों को जातिवादी घोलर्त किया गया । जिससे दलितों को यह प्रतीत हो कि वेदों में शुद्र को नीचा दिखाया गया है । वेदों के प्रति अनासथा को बढ़ाने के लिए वेदों के उलटे सीधे अर्थ निकाले गए , जिससे वह वेद धर्मग्रंथ न होकर जादू-टोने की पुसतक , अनधलवशवास को बढ़ावा देने वाली पुसतक लगे । यह सब योजनाबद्ध रूप में किया गया । इसी समबनध में वेदों में आर्य- द्रविड़ युद्ध की कलपना करके यह सिद्ध करने का प्रयास किया गया कि आर्य लोग विदेशी थे ।
बौद्ध मत को बढ़ावा
वेदों के लवर्य में भ्राकनत फैलाने के पशचात ईसाईयों ने सोचा कि दलित समाज से वेदों को तो छीनकर उनके हाथों में बाइबिल पकड़ाना इतना सरल नहीं है । उनकी इस मानयता का
आधार उनके पिछले चार सौ वर्षों के इस देश में अनुभव था । इसलिए उनहोंने इतिहास के पुराने पाठ को समिण किया । 1200 वर्षों में इसलालमक आक्रानतों के समक् धर्म परिवर्तन हिनदू समाज में उतना नहीं हुआ , जितना बौद्ध मतावली में हुआ । अफगानिसतान , पाकिसतान , बांगलादेश इंडोनेशिया , जावा , सुमात्ा तक फैला बुद्ध मत तेजी से लोप होकर इसलाम में परिवर्तित हो गया । जबकि इसलाम की चोट से बुद्ध मत भारत भूमि से भी लोप हुआ I मगर हिनदू धर्म बलिदान देकर , अपमान सहकर किसी प्रकार से अपने आपको सुिलक्त रखने में सफल रहा I ईसाई मिशनरी ने इस इतिहास से यह निष्कर्ष निकाला कि दलितों को पहले बुद्ध बनाया जाए और फिर ईसाई बनाना उनके लिए सरल होगा । इसी कड़ी में डा . आंबेडकर द्ािा बुद्ध धर्म ग्रहण करना ईसाईयों के लिए वरदान सिद्ध हुआ । डा . आंबेडकर के नाम के प्रभाव से दलितों को बुद्ध बनाने का कार्य आज ईसाई करते है । इस कार्य को सरल बनाने के लिए विदेशी लवकशवद्ालयों में महातमा बुद्ध और बुद्ध मत पर अनेक पीठ
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