July 2024_DA | Page 42

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दशकों से दलितों का धममांतरण करा रहा है चर्च

डा . विवेक आर्य
रत के दलित कठपुतली के समान

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नाच रहे है , विदेशी ताकतें विशेर्
रूप से ईसाई विचारक , अपने अरबों डलॉलर के धन-समपदा , हज़ारों कार्यकर्ता , राजनीतिक शक्त , अंतराषट्रीय सति की ताकत , दूरदृकषट , एनजीओ के बड़े तंत् , विशवलवद्ालयों में बैठे शिक्ालवदों आदि के दम पर दलितों को नचा रहे हैं I इसका तातकालिक लाभ भारत के कुछ राजनेताओं को मिल रहा है और हानि हर उस देशवासी की की हो रही है , जिसने भारत देश की पलवत् मिटटी में जनम लिया है । अंग्रेजों द्ािा भारत छोड़ने पर अंग्रेज पादरियों ने अपना बिसति-बोरी समेटना आरमभ ही कर दिया था ्योंकि उनका अनुमान था कि भारत अब एक हिनदू देश घोलर्त होने वाला है । तभी भारत सरकार द्ािा घोर्णा हुई कि भारत अब एक धर्मनिरपेक् देश कहलायेगा । मुरझायें हुए पादरियों के चेहरे पर ख़ुशी कि लहर दौड़ गई ्योंकि से्युलर यानी धर्मनिरपेक् राज में उनहें कोई रोकने वाला नहीं था ।
वैचारिक प्दूषण
ईसाई पादरियों ने सोचा कि सबसे पहले दलितों के मन से उनके इषट देवता विशेर् रूप से श्ीिाम और रामायण को दूर किया जाए ्योंकि जब तक भगवान श्ीिाम भारतियों के दिलों में जीवित रहेंगे तब तक ईसा मसीह अपना घर नहीं बना पाएंगे । इसके लिए उनहोंने सुनियोजित तरीके से शैलक्क प्रदूर्ण का सहारा लिया । विदेश में अनेक विशवलवद्ालयों में शोध के नाम पर श्ीिाम और रामायण को दलित-नारी विरोधी सिद्ध करने का शोध आरमभ किया गया ।
विदेशी विशवलवद्ालयों में उन भारतीय छात्ों को प्रवेश दिया गया जो इस कार्य में उनका साथ दे । रोमिला थापर , इरफ़ान हबीब , कांचा इलैयह आदि इसी रणनीति के पात् हैं । कुछ उदाहरण देखिए , जिससे पता चलता है किकिस प्रकार श्ीिामजी को दलित विरोधी , नारी विरोधी , अतयाचारी आदि सिद्ध किया गया । शमबूक वध की कालपलनक और मिलावटी घटना को उछाला गया और श्ीिाम जी के शबरी भीलनी और लनर्ाद राजा केवट से समबनध को अनदेखी जानकर की गई । श्ीिाम को नारी विरोधी सिद्ध करने के लिए सीता की अलनिपरीक्ा और अहिलया उद्धार जैसे कालपलनक प्रसंगों को
उछाला गया I वीर हनुमान और जामवंत को बनदि और भालू कहकर उनका उपहास किया गया जबकि वह दोनों महान विद्ान् , रणनीतिकार और मनुषय थे । इन तथ्यों की अनदेखी की गई । रावण को अपनी बहन शूर्पनखा के लिए प्राण देने वाला भाई कह कर महिमामंडित किया गया I श्ीिाम और उनके भाइयों को राजगद्ी से बढ़कर परसपि प्रेम को वरीयता देने की अनदेखी की गई । श्ीकृषण जी के महान चरित् के साथ भी इसी प्रकार से बेईमानी हुई । उनहें भी चरित्हीन , कामुक आदि कहकर उपहास का पात् बनाया गया । इस प्रकार से नकारातमक खेल खेलकर भारतीय विशेर् रूप से दलितों के
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