July 2024_DA | Page 41

संघ की खुले दिल से सराहना
दलित राजनीति करने वाले तमाम दल और नेता सेवा-बकसतयों में सर्वाधिक सेवा-कार्य करने के बावजूद आज भी संघ को प्रायः असपृशय समझते हैं , परंतु उललेखनीय है कि डलॉ अंबेडकर संघ के कार्यक्रमों में तीन बार गए थे । विजयादशमी पर आहूत संघ के एक वालर््यक आयोजन में वे मुखय अतिथि की हैसियत से सकममलित हुए । उस कार्यक्रम में लगभग 610 सवयंसेवक थे । उनके द्ािा आग्रहपूर्वक पूछे जाने पर जब उनहें विदित हुआ कि उनमें से 103 वंचित-दलित समाज से हैं तो उनहें सुखद आशचय्य एवं संतोर् हुआ । सवयंसेवकों के बीच सहज आतमीय संबंध एवं समरस वयवहार देखकर उनहोंने संघ और डलॉ हेडगेवार की सार्वजनिक सराहना की थी ।
भारत की सनातन धारा के अनुगामी
ततकालीन हिंदू-समाज में वयापत छुआछूत एवं भेदभाव से क्ुबध एवं पीलड़त होकर उनहोंने अपने अनुयायियों समेत अपना धर्म अवशय परिवर्तित कर लिया , परंतु उनके धर्म-परिवर्तन में भी एक अंतदृ ्यकषट झलकती है और ऐसा भी नहीं है कि उनहोंने यह सब अकसमात एवं तवरित प्रतिक्रियावश किया । पहले उनहोंने निजी सति पर सामाजिक जागृलत् के तमाम कार्यक्रम चलाए , ततकालीन सामाजिक-राजनीतिक नेताओं से बार-बार वंचित-शोलर्त समाज के प्रति उत्म वयवहार , नयाय एवं समानता की अपील की । जब उन सबका वयापक प्रभाव नहीं पड़ा , तब कहीं जाकर अपनी मृतयु से दो वर््य पूर्व उनहोंने अपने अनुयायियों समेत धर्म परिवर्तन किया । पर धयातवय है कि उनहोंने भारतीय मूल के बौद्ध धर्म को अपनाया , जबकि उनहें और उनके अनुयायियों को लुभाने के लिए दूसरी ओर से तमाम पासे
फेंके जा रहे थे । पैसे और ताक़त का प्रलोभन दिया जा रहा था , पर वे भली-भांति जानते थे कि भारत की सनातन धारा आयातित धाराओं से अधिक सवीकार्य , वैज्ालनक एवं लोकतांलत्क है ।
राष्टट्रहित सववोपरि , समरसता की पैरोकारी
उनकी प्रगतिशील और सर्वसमावेशी सोच की झलक इस बात से भी मिलती है कि उनहोंने आिक्ण जैसी वयवसथा को जारी रखने के लिए हर दस वर््य बाद आकलन-विश्लेषण का प्रावधान रखा था । यह जाति-वर्ग-समुदाय से देशहित को ऊपर रखने वाला वयक्त ही कर सकता है । अचछा होता कि उनके नाम पर राजनीति करने वाले तमाम दल और नेता उनके विचारों को सही मायने में आतमसात करते और उनकी बौद्धिक- राजनीतिक दृकषट से सीख लेकर समरस समाज की संकलपना को साकार करते । �
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