July 2024_DA | Page 33

दर्शन अपने आप में सामाजिक संगठन का कारक और कारण , दोनों है ।
सामाजिक समरसता दर्शन की अवधारणा एक भेदभावमु्त समाज की निर्मात्ी है । सामाजिक लवर्मता , कृलत्म भेदभावपूर्ण जातीयता , रंगभेद अथवा प्रजाति भेद और आर्थिक भेदभाव पर आधारित दूलर्त मानसिकता एवं अनैतिकतायु्त वयवहार की समाकपत हेतु संसार में सामाजिक समरसता दर्शन की अवधारणा एक अचूक और्लध है । यह एक ऐसी सामाजिक दशा है , जिसमें भेदभावरहित मानव समाज एक साथ आचार-वयवहार करता हुआ जीवनयापन करता है और उसमें किसी भी प्रकार की आपस में दीवार नहीं होती है । मानव समाज के सभी वगषों की आपस में एकता एवं समबद्धता को सथालपत करके उनको सुख-शाकनत प्रदान करने में सहायक होने के कारण सामाजिक समरसता की अवधारणा में किसी भी प्रकार की लवर्मता के लक्ण नहीं पाए जाते हैं । मानव
समाज के संयु्त परिवार , जो आज आर्थिक भेद पर आधारित सतिीकरण के कारण दूलर्त हुआ , उसे सुधारकर पुनजजीवित करने हेतु सामाजिक समरसता सुख-समृद्धि , शाकनत एवं कलयाण की एक परिणति है ।
धार्मिक आधार पर सामाजिक समरसता को धर्माद्रित करते हुए भारतीय समाजशाकसत्यों ने कहा है कि पुरुर्ार्थ का प्रथम साधन ‘ धर्म ’ समाज से अलग नहीं है , इसलिए ‘ धार्मिक मानव समाज ’ कहा जाए अथवा ‘ सामाजिक धर्म ’ कहा जाए , सामाजिक समरसता दोनों ही सनदभ्य से जुड़ी हुई है । संसार में सामाजिक समरसता धर्म को सर्वग्राह्य बनाने की मीठी टिकिया है । धर्म के सभी दसों लक्ण सामाजिक समरसता से अभिपूर्ण होने पर ही मर्यादित होते हैं । आश्म- धर्म की रीढ़ सामाजिक समरसता है । यह लोगों को धर्माेनमुख बनाए रखने की एक सक्म प्रेरणा है ।
सामाजिक समरसता का अभिप्राय
आधयाकतमक दर्शन से भी जुड़ा हुआ है । यह मूलयवान दार्शनिक शासत् की कड़ी है । भारतीय दर्शन पर आधारित सामाजिक समरसता एक सामानय प्राकृतिक प्रक्रिया है । यह मन , आदर्श , सहृदयता से समबकनधत भावनातमक अभिवयक्त अथवा प्रक्रिया है , जिसे संसार में अवतारवाद का कारण भी माना जाता है । दार्शनिक चिनतन के परिप्रेक्य में यह सपषट रूप से कहा गया है कि सामाजिक नियमों एवं मानदणडों के प्राकृतिक सवरूप को बनाए रखने तथा मानव समाज में समरसता को सुदृढ़ करने के उद्ेशय से ही समय-समय पर भारतीय एवं अनयानय समाजों में ईशविीय ततवों को धारण करने वाले साधकों का जनम हुआ है , और उनके प्रतिपादित नियम भी सार्वभौमिक होते हुए समरसतापूर्ण रहे हैं । भारतीय दर्शन इसी को उद्घोषित करते हुए कहता है कि लोगों के वयवहार यदि आपस में समरसतापूर्ण रहे तो भाईचारा एवं बनधुतव का भाव उतपन् होगा । �
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