लिए यह विश्लेषण मार्गदर्शक है । देश की सुरक्ा को खतरे में डालकर यह जोखिम उठाया जा सकता है ।
डा . भीम राव आंबेडकर गैर मुकसलम नेताओं में ऐसे पहले नेता थे , जिनहोंने पाकिसतान की मांग को 1940 में ही सवीकार कर लिया था । उनहोंने दृढ़ता के साथ कहा था कि अब इन दोनों समुदायों यानी हिनदू और मुसलमान , का एक राषट्र के अंदर शांति के साथ रह पाना संभव नहीं दीखता और इसी कारण डा . आंबेडकर ने जनसंखया की पूर्णरूपेण अदलाबदली के विचार का समर्थन किया । देश विभाजन का दुर्भागय भयंकर त्ासदी लेकर आया । सारे देश में भीर्ण मार-काट मच गयी । लाखों लोग मार दिए गए और लाखों घयाल होकर कराह रहे थे । डा . आंबेडकर इन सबसे काफी दुखी थे । उनहोंने अपने लमत् कमलाकांत चित्े को पत् में लिखा था कि इनको दंगे नहीं कहा जा सकता है । इसको तो सशसत् विद्रोह ही कहना चाहिए । दिलली जैसे शहर के लिए तो यह बहुत भयंकर है । वहां तो कई दिनों से जान-जीवन ठहर सा गया है ।
देश विभाजन तय होने के बाद डा . आंबेडकर
ने जनसंखया का पूरी तरह सथानांतरण करने का प्रसताव रखा था । उनका कहना था कि मुकसलम और हिनदू आबादी अपने-अपने देशों को चली जाए , उसी कसथलत में गृह युद्ध तथा भयंकर नरसंहार से बचा जा सकता है । डा . अमबेडकर के अनुसार वह मुकसलम भारत और गैर मुकसलम भारत का विभाजन बेहतर समझते हैं , जो दोनों को सुरक्ा प्रदान करने का सबसे प्का और सुिलक्त तरीका हैं । अवशय ही अनय विकलपों में से यह अधिक सुिलक्त है अर्थात देश भर के सभी मुसलमानों को पाकिसतान भेजने की तथा हिनदुओं को भारत बुलाने कि अनिवार्य योजना बनाई जानी चाहिए । यह कोई ऐकचछक लवर्य नहीं है । अपनी इसी आक्रामक वृलत् के कारण मुसलमान , हिनदू समाज कि दुर्बलता का लाभ उठाने के लिए गुंडागदजी का रासता अपनाते हैं । मुसलमानों की प्रतिगामी तथा अराषट्रीय वृलत् के समबनध में बाबा साहब ने बड़े ही कड़े शबदों में बहुत कुछ लिखा था , पर मित्ों ने उसे प्रकाशित नहीं होने दिया । डा . आंबेडकर का सपषट मत था कि मुसलमान जब तक अपने आप को मुसलमान समझता रहेगा , उसे हिनदुसथान के राषट्र देश में आतमसात नहीं किया जा सकेगा
और न ही हिनदुसथान का समाज जीवन का रासले सकेगा । उनका यह सपषट मत था कि मुसलमान जब तक भारत में रहेंगे , तब तक केंद्र में प्रभावी सरकार का निर्माण संभव नहीं है ।
डा . आंबेडकर बार-बार यह दोहराया करते थे कि मुसलमानों को आतमसात नहीं किया जा सकता । किसी विदेशी ततव को राषट्र के शरीर में रखने कि अपेक्ा उसे निकल देना ही उचित है । इसी विचार को लेकर उनहोंने जनसंखया के पूर्णरूपेण सथानांतरण करने की बात कही । डा . आंबेडकर जानते थे कि इतनी बड़ी जनसंखया का एक सथान से दूसरे सथान को सथानांतरित होना कठिनाइयों से भरा काम है । उनका मानना था कि यदि इसको ऐकचछक रखा गया तो पाकिसतान भी बनेगा और समसया का समाधान भी नहीं होगा ्योंकि मुकसलम लीग ने भी कहना प्रारमभ कर दिया था कि सभी मुसलमानों को पाकिसतान नहीं जाना होगा । डा . आंबेडकर का कहना था कि जनसंखया के इस सथानांतरण के लिए एक आयोग आएगा जो कि लोगों कि चल- अचल समपलत , पेंशन , नौकरी आदि सभी बातों कि विसतृत योजना बनाकर लोगों को सथानांतरित करने में सहयोग करेगा । डा . आंबेडकर ने जनसंखया सथानांतरण के समबनध में एक विसतृत कार्य योजना भी बनाई थी , जिसका विसताि से उललेख उनहोंने अपनी पुसतक ' पाकिसतान ऒर द पाटजीशन ऑफ इकणडया ' में किया था । डा . आंबेडकर का कहना था कि जनसंखया कि पूर्ण रूप से अदला बदली ही भारत को एक राषट्र बना सकती है , जब तक यह नहीं होता , तब तक पाकिसतान बना देने से अलपसंखयक और बहुसंखयक की समसया का कोई समाधान नहीं निकलेगा और यह समसया भारत में वैसी ही बनी रहेगी तथा यहां कि राजनीति में आपसी दुराव और भेदभाव को जनम देती रहेगी । लेकिन ततकालीन दौर में डा . अमबेडकर के प्रसताव पर कांग्रेस के नेताओं ने धयान नहीं दिया और धर्मनिरपेक्ता के मोहजाल में अतिउतसाही बने रहे और देश विभाजन के समय लाखों लोगों का नरसंहार देखते रहे । �
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