July 2024_DA | Page 26

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करके सेना को एकरस और राषट्रभ्त बनाना ही बुद्धिमानी होगी , अपनी मातृभूमि की रखा हम सवयं करेंगे ।
डा . आंबेडकर ने जनसंखया सथानांतरण के लिए एक विसतृत कार्य योजना भी बनाई थी , जो उनहोंने अपनी पुसतक " पाकिसतान और द पाटजीशन ऑफ इंडिया " के माधयम से 1940 में ही सबके सामने रख दी थी । डा . आंबेडकर की योजना थी कि ऑटोमन साम्राजय के पशचात जिस प्रकार से ग्रीक , टकजी और बुलगारिया के मधय जनसंखया का जिस प्रकार सथानांतरण हुआ , उसी प्रकार भारत में भी यह संभव हो सकता है । अपनी योजना में डा . आंबेडकर ने समपलत् तथा पेंशन आदि के अधिकारों की अदला-बदली के समबनध में भी कार्ययोजना बना कर सामने रखी थी । लेकिन कांग्रेस , जो अपनी नीति के अनुसार हिनदू-मुकसलम एकता में विशवास करती थी , ने इस योजना को असंभव कहकर ठुकरा दिया । कांग्रेस के नेता हिनदू- मुकसलम एकता की झूठी कलपनाओं में भटक रहे थे ।
विखयात लेखक कोनराड एसट ( Kocnraad Eist ) ने अपनी पुसतक में उस समय की कांग्रेसी मानसिकता का वर्णन करते हुए लिखा कि विभाजन के समबनध में कांग्रेसी नेतृतव और डा . आंबेडकर के विचारों में बड़ा मतभेद था । महातमा गांधी और जवाहरलाल नेहरू , दोनों ही अंत तक विभाजन के सथायी और अपवर्तनीय तातया को नकारने के लिए असामानय समझौते करते रहे तथा शर्मनाक छूट देने में ही वयसत रहे । गांधी जी और नेहरू ने अपने आप को मुकसलम गुंडों के आगे विनत भाव से आतमसमर्पित ही कर दिया था । डा . आंबेडकर ने एक साफ़- सुथरे सथायी समझौते का सवरुप सामने रखा परनतु गांधी जी और नेहरू ने अपनी नषट हुई , परनतु सुनदि दिखने वाली हिनदू-मुकसलम एकता को छोड़ने से मना कर दिया था । साथ ही भारत के विभाजन और लद्िाषट्र के सिद्धांत को पूरी तरह सवीकारने के बाद भी जनसंखया के सथानांतरण के प्रसताव का पूरी ताकत से विरोध किया ।
डा . आंबेडकर का मानना था कि पाकिसतान बनने पर हिनदू लोग पाकिसतान के अंदर घिर जाएंगे , इसलिए विभाजन से पहले उनहें सुिलक्त निकलने की वयवसथा होनी चाहिए । तमाम प्रयासों के बावजूद डा . आंबेडकर की योजना और प्रसताव को किसी ने भी सवीकार नहीं किया । डा . आंबेडकर की चेतावनी को गंभीरता से न लेते हुए 1947 में बंटवारे के बाद , पाकिसतान के अंदर बड़ी संखया में अनुसूचित जातियों के लोगों के अलावा अनय हिनदू जनसंखया वही रुक गई । वह किनहीं कारणों की वजह से भारत नहीं आए और फिर कथित हिनदू-मुकसलम एकता की काली असलियत सामने आई । हिनदुओं पर शुरू हुए जानलेवा हमलों और मुकसलम धर्म सवीकार करने के लिए बनाए जाने वाले निर्दयी दबावों ने पाकिसतान में रहने वाले हिनदुओं की कसथलत को बदतर बना दिया । देश विभाजन के समय जनसंखया की पूर्ण अदला-बदली नहीं होने की वजह से आधे से अधिक मुसलमान भारत में ही रुक गए थे , जिनकी संखया बढ़कर अब पंद्रह करोड़ से अधिक हो चुकी है , वही पाकिसतान में रहने वाले हिनदुओं की संखया एक करोड़ से घटकर महज चंद हजार रह गयी । यह उन गलत नीतियों का परिणाम भी कहा जा सकता है , जिसके बारे में डा . आंबेडकर ने विभाजन की प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही सचेत कर दिया था ।
सेना में मुकसलमों की बढ़ती संखया पर डा . आंबेडकर का कहना है कि अंग्रेजों ने मुसलमानों को सेना में इतना महतव ्यों दिया ्योंकि अंग्रेज चाहते थे कि इससे अंग्रेजों से सत्ा छीनने के लिए हिनदुओं के आंदोलन के खिलाफ अवरोध खड़ा कर दिया जाए । डा . आंबेडकर ने जब " पाकिसतान ऒर द पाटजीशन ऑफ इकणडया " नामक पुसतक लिखी , उन दिनों भारत की पकशचमी सीमा पर अफगानिसतान था , जहां से अनेकों आक्रमण भारत पहले ही झेल चुका था । डा . आंबेडकर की चिंता का मुखय कारण यही था कि ्या अफगानिसतान के आक्रमण के समय भारतीय सेना के अंदर मुकसलम सैनिक देशभक्त का परिचय देंगे या अफगानिसतान की मुकसलम
सेना से जाकर मिल जाएंगे ? डा . आंबेडकर ने लिखा कि हिनदू कहां तक , इन मुकसलम सीमा िक्कों पर देश की सुरक्ा और सवतंत्ता की रक्ा के लिए निर्भर रह सकते हैं ? डा . आंबेडकर कहते है कि पंजाबी और पकशचमी-उत्ि में रहने वाले मुसलमान अपने आपको इसलाम का धर्मावलमबी मानते हैं । ऐसे में ्या कोई साहसी हिनदू इस बात को सवीकार कर सकता है कि भारत पर मुकसलम देशों का आक्रमण होने पर वह मुकसलम सेनाएं देशभ्त रहेगी और भारत की रक्ा सच्े दिल से करेगी ? डा . आंबेडकर कहते है कि अब वासतलवक प्रश्न तो यह है कि भारतीय सरकार अफगानिसतान में विरुद्ध ऐसी सेना का उपयोग कर सकती है ? इस लवर्य में मुकसलम लीग के इस दृकषटकोण की तरफ भी धयान देना चाहिए , जिसने यह घोर्णा की है कि भारत की सेना किसी मुकसलम शक्त के विरुद्ध काम में नहीं लायी जाएगी । देखा जाए तो मुकसलम सैनिकों की मानसिकता का जो विश्लेषण डा . आंबेडकर ने लनभजीकता के साथ किया , वह बहुत कम ही लोग कर सकेंगे । जो लोग राजनीतिक सवाथ्यवश यह तर्क देते हैं कि सुरक्ा बलों से मुकसलमों के प्रतिशत को बढ़ाया जाए , उनके
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