July 2024_DA | Page 22

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डा . आंबेडकर की विचारधारा और उनके नाम का सहारा लेकर अनेकों दलित नेतृतवकर्ता उभर कर सामने आए , लेकिन ऐसे तमाम दलित नेतृतवकर्ताओं का कांग्रेस और उनके सहयोगी दलों ने मानसिक अपहरण कर लिया । ऐसे अनेकों दलित वर्ग के लिए काम करने वाले तमाम दलित नेतृतवकर्ता कांग्रेस और उसके सहयोगी वामदलों के चेहरे बन कर ही रह गए ।
यह सिलसिला सत्ि के दशक तक चलता रहा । इस दौरान दलित नेता और दलित समाज के कलयाण के नाम पर अकसततव में आए राजनीतिक दलों ने दलित हितों की बजाए वयक्तगत लाभ तो उठाये पर वयापक दलित समुदाय को इसका कोई विशेर् लाभ नहीं मिला । कांग्रेस ने सुनियोजित रणनीति के तहत अपने दलित और मुकसलम वोट बैंक के लिए लगभग हर राजय में दलितों के ऐसे छोटे-छोटे संगठन खड़े करा दिए , जो कहने के लिए दलितों एवं मुकसलमों के उतथान के लिए काम करते थे , पर उनकी भूमिका इन समाजों को जातिगत शिकंजे में बांधे रखने और समाज में जातिगत तनाव एवं सामप्रदायिकता को बढ़ाने में जयादा रही । दलक्ण भारत में वोट बैंक की राजनीति के कारण द्रविड़ पार्टियों के इशारे पर जातिगत मुद्ों पर अपनी आवाज नरम करने वाले कई संगठन भी पैदा हुए , जो सवर्ण और दलित , यानी दोनों वोट बैंक को साधने का काम करने लगे । यदि जातिगत समीकरण के तथाकथित इस खेल को देखा जाए तो तमिलनाडु , कर्नाटक , आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना जैसे दलक्णी राजयों की राजनीति में पिछड़ों की राजनीति का दबदबा रहा है । जब कभी चुनाव आता है , इनसे जुड़ी पार्टियां दलित-मुकसलम गठजोड़ के राजनीतिक समीकरणों को दुरुसत करने की कोशिश में जुट जाती हैं । पर चुनाव के बाद जब सत्ा मिल जाति है तो दलित एवं मुकसलम हितों को किनारे रख दिया जाता है ।
दलित-मुस्लिम गठजोड़ की आड़ में धममान्तरण का बाजार
देश का शायद ही कोई ऐसा राजय होगा ,
जहां दलितों कलयाण के नाम पर संगठन नहीं बनाये गए होंगे । लेकिन ऐसे तमाम संगठन सिर्फ हिनदू धर्म को जातिगत आधार पर कमजोर करते रहे और जो नेता राजनीति में आकर सफल भी हुए , उनके लिए दलित हित और दलित कलयाण सिर्फ चुनावी चर्चा और मुद्ा बन कर रह गया । ऐसे अनेकानेक नेता और संगठन अपने हित के लिए उन विदेशी शक्तयों के मोहरे भी बन गए जो हिनदू समाज को कमजोर करके देश की सत्ा को अकसथि एवं भौगोलिक सीमा को कमजोर करने की साजिश रचती आ रही हैं । केवल सवलहत एवं लाभ की भावना पर केंद्रित नेताओं की वजह से देश में धर्मानतिण का बाजार भी गर्म हो गया और इसका सबसे नकारातमक परिणाम केवल दलित समाज को ही उठाना पड़ा । देश में पिछड़ी और दलित जातियों को भ्रमित करके धर्मानतिण करने में मुकसलम समुदाय और ईसाई मिशनरियां सालों से सक्रिय हैं । देश के ग्रामीण क्ेत्ों में मुकसलम की बढ़ती संखया दलित और पिछड़ी जातियों के कराए जा रहे धर्मानतिण का परिणाम कही जा सकती है । उत्ि और दलक्ण भारत में रहने वाले दलित समाज की त्ासदी यह भी रही कि पेरियार , करूणानिधि , कांशी राम , मायावती जैसे दलित वर्ग के नेताओं ने दलित समाज को एकजुट तो किया , पर यह एकजुटता केवल वोट और सत्ा हासिल करने का एक माधयम बन गयी । वोट और सत्ा की भूख ने दलित और मुकसलमों को एक पाले में लेकर खड़ा कर दिया गया ।
मोदी विरोध में दलित-मुस्लिम गठजोड़ की कोशिश
दलित-मुकसलम गठजोड़ के नकारातमक परिणाम देख चुके भारत में तीसरी बार पुनः दलित-मुकसलम गठजोड़ के नाम पर एकता की कोशिश जोरों पर है । जय भीम-जय मीम के नारे के साथ अबकी बार दलित-मुकसलम गठजोड़ की पूरी कोशिश प्रधानमंत्ी नरेंद्र मोदी एवं भाजपा को सत्ा से हटाने के लिए की जा रही है । कांग्रेस और वामपंथी दलों के साथ ही दलित-मुकसलम गठजोड़ के लिए भाजपा विरोधी सभी राजनीतिक
पार्टियां और संगठन , एकजुट होकर बड़ी तेजी से सक्रिय हैं । यहां यह प्रश्न उठता है कि ्या एक बार फिर भारत की बर्बादी के लिए दलित- मुकसलम गठजोड़ का सहारा लिया जा रहा है ? दलित-मुकसलम गठजोड़ का उद्ेशय सिर्फ राजनीतिक सत्ा प्रापत करना है या फिर छदम एकता की आड़ में एक बार फिर देशविरोधी शक्तयां भारत को कमजोर करने के लिए उठ खड़ी हुई हैं ?
2014 में केंद्र में प्रधानमंत्ी नरेंद्र मोदी के नेतृतव में भाजपा की सरकार जब बनी तो कांग्रेस और उनके सहयोगियों को यह कलपना एवं विशवास ही नहीं था कि प्रधानमंत्ी मोदी को लोकसभा चुनाव में बहुमत मिलेगा और वह सरकार बनाने की हालत में होंगे । पर ऐसा हुआ । परिणाम यह निकला कि भारत की राजनीति में राषट्रवादी शक्तयों का उदय हुआ और पहली बार देश की जनता को ऐसी सरकार मिली , जो जाति-धर्म , सवाथ्य और हित से ऊपर उठकर ,
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