July 2024_DA | Page 21

ही देशों में दलितों की घटती संखया इसका प्रतयक् प्रमाण है । ततकालीन दौर में पाकिसतान के लिए हुए दलित-मुकसलम राजनीतिक गठजोड़ का परिणाम दंगों के रूप में भी देखा गया । इसका दुषपरिणाम उन दलितों को भुगतना पड़ा , जो एक बड़ी आशा लेकर पाकिसतान या पूवजी पाकिसतान ( बांगलादेश ) इसलिए चले गए थे कि उनहें बराबरी का अधिकार , नयाय और सममान वहां मिल सकेगा । 1947 से लेकर अब तक देश से जाने वाले दलित समाज के लोग मुकसलम एकता के वासतलवक सच को झेलते आ रहे हैं । पाकिसतान और बांगलादेश में होने वाली हिनदुओं की हतयाऐं और बलपूर्वक कराए जाने
वाले धर्मपरिवर्तन का समाचार वर्तमान समय में भी लगातार आ रहे हैं ।
स्वतन्त्र भारत में दलित-मुस्लिम गठजोड़ के प्यास
भारत में दलित-मुकसलम राजनीतिक गठजोड़ के पहले मलॉडल का परिणाम पाकिसतान के रूप देख सकते हैं । दलित-मुकसलम एकता को एक ऐसे अवसरवाद के रूप में भी देखा जा सकता है , जिसमें दलितों के कंधे पर बंदूक रख कर चलायी जाती है और अपने हितों को पूरा किया जाता है । यही अवसरवादिता 1947 में मोहममद अली जिन्ा ने दिखाई थी । पर यह क्रम यही
पर नहीं थमा । सवतंत्ता के उपरांत सत्ा कांग्रेस को मिली और फिर कांग्रेस ने देश की राजनीति को जाति , धर्म और वर्ग के खांचे में बांट दिया । कांग्रेस के नेतृतवकर्ताओं के लिए यही सुविधाजनक राजनीति थी और इसके माधयम से कांग्रेस ने भारतीय दलित वर्ग को उसी अंधेरे में रखा , जिस अंधेरे काल में हिनदू समाज विदेशी मुकसलम आक्रांताओं के आक्रमणों के बाद से रह रहा था । कांग्रेस शासनकाल में दलित समाज को " गरीबी हटाओ " का नारा देकर भ्रम में रखा गया , वही धार्मिक आधार पर पक्पात करके उसी " बांटो और राज करो " की नीति अपनाई गई , जो नीति कांग्रेस को विरासत में अंग्रेजों से मिली थी । कांग्रेस ने जातिवाद , वंशवाद , पंथवाद , तुकषटकरण की जिस राजनीति का प्रचार-प्रसार किया । इसका परिणाम विकास की मुखय धारा से दूर देश के दलित समाज को उतपीड़न और अतयाचार के रूप में उठाने के लिए बाधय होने के रूप में मिला , वही तुकषटकरण और पंथवाद ने देश में उन कट्टर मुकसलमों को भी एक ऐसी नई राह दिखाई , जिस राह ने देश में सामप्रदायिकता को एवं मुकसलम समाज की दुर्दशा के अंधेरे में भटकने के लिए बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी । देश के दलित एवं मुकसलम समाज में फैला आक्रोश और असंतोर् , कांग्रेस और उसके नेताओं की अदूरदर्शिता एवं गलत नीतियों का परिणाम कहा जा सकता है ।
कांग्रेस की नीतियों की वजह से विकास से वंचित दलित समाज और विकास से अलग- थलग पड़े मुकसलमों के एकीकरण की नई राह तब खुली , जब पेरियार , कांशीराम और मायावती सरीखे नेताओं ने इसका लाभ उठाने के लिए दलित-मुकसलम गठजोड़ की राजनीति का सहारा लिया । उत्ि भारत में इसका लाभ जहां कांशीराम ने उठाया , वही दलक्ण भारत की राजनीति में भी दलित-मुकसलम सत्ा हासिल करने के औजार बन कर रह गए । पूरे देश के अंदर दलित और मुकसलम हितों की रक्ा के लिए कई ऐसे नेता पैदा हो गए या पैदा कर दिए गए , जिनहोंने अपने हितों के लिए दलितों के मसीहा के रूप में डा . भीम राव आंबेडकर के नाम का सहारा लिया ।
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