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बनाने के लिए जिन्ा ने दलितों को भी अपना मोहरा बनाया और दलितों को भ्रमित करते हुए बड़ी चालाकी से उनहें यह आशवासन दिया कि एक हिनदू देश में दलितों का कलयाण संभव नहीं है , इसलिए उनको पाकिसतान आकर मुकसलमों के साथ रहना चाहिए और इससे दलितों को तमाम समसयाओं से मुक्त मिल जाएगी । पर डलॉ आंबेडकर ने जिन्ा के इस चतुराई भरे राजनीतिक खेल को समझ लिए था । इसीलिए उनहोंने 1945 में अपनी पुसतक " थलॉट ऑन पाकिसतान " में लिखा था कि " मुसलमान सामाजिक सुधारों के विरोधी है । इसलाम जिस भाईचारे की बात करता है , वह संसार के सभी मनुषयों का भाईचारा नहीं है । वह केवल मुसलमानों का मुसलमानों से भाईचारा है । गैर मुसलमानों के लिए वहां केवल घृणा और शत्ुता है । साथ ही इसलाम किसी भी मुसलमान को यह इजाजत नहीं देता कि वह किसी गैर इसलामी देश के प्रति वफादार रहे । " डा . आंबेडकर ने लिखा कि " ऐसी कसथलत में बेहतर है कि पाकिसतान बनने दिया जाए परनतु जनसंखया के पूर्ण अदला-बदली पर योजना बना ली जाए ्योंकि मुकसलम बाहुलय क्ेत् में गैर मुसलमानों के लिए इज्जत और बराबरी से जीवन जीना संभव नहीं है । "
दलित-मुस्लिम गठजोड़ के शिकार बने दलित नेता जोगेंद्र नाथ मंडल
पाकिसतान बनाने की मांग के साथ ततकालीन समय में जिन्ा ने दलित वर्ग को अपना शिकार बनाया । ततकालीन दौर के एक वरिषठ दलित नेता जोगेंद्र नाथ मंडल का उपयोग करके जिन्ा ने दलितों को लुभाने एवं भ्रमित करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी । भारत के सवतंत्ता संग्राम के दौरान यदि मोहममद अली जिन्ा एक मजहबी नेता के रूप में उभरा तो वही जोगेंद्र नाथ मंडल दलित वर्ग में डा . आंबेडकर के समकक् एक नेता के रूप में राषट्रीय लक्लतज पर पहचाने जाते थे । सवतंत्ता के उपरांत जिस तरह भारत के प्रथम कानून मंत्ी डा . बी . आर .
आंबेडकर बने , उसी प्रकार जिन्ा ने पाकिसतान का पहला कानून मंत्ी जोगेंद्र नाथ मंडल को बनाया गया । जिस प्रकार भारत का संविधान एक दलित नेता डा . आंबेडकर के द्ािा बना , ठीक उसी प्रकार पाकिसतान का संविधान दलित नेता जोगेंद्र नाथ मंडल के द्ािा बनाया गया । किनतु डा . आंबेडकर आज भारत में पूजयनीय है , किनतु जोगेंद्र नाथ मंडल भारत-पाकिसतान बंटवारे के तीन वर््य बाद 1950 में वापस लौट आए और जिन्ा पर विशवास करने की ऐतिहासिक भूल के लिए पशचाताप करते हुए 5 अ्टूबर 1968 में पकशचम बंगाल के बनगांव नमक गांव में अज्ात वयक्त के रूप में मृतयु
को प्रापत हुए । दलित समाज ने भी उनकी इस ऐतिहासिक एवं गंभीर भूलों के लिए सामाजिक दणड सवरुप उनकी तरफ आंख उठाकर नहीं देखा । उनकी आसमान को छूने वाली सारी संभावनाएं दलित-मुकसलम राजनीतिक गठजोड़ की भेंट चढ़ गई , जबकि जिन्ा ने दलितों का उपयोग अपने सपने को पूरा करने के लिए किया । इसका कोई लाभ उन दलितों को कभी नहीं मिला जो पाकिसतान और बांगलादेश में जाकर बसे थे । दोनों ही देशों में मुकसलम उतपीड़न के कारण दलितों का या तो धर्मपरिवर्तन करना पड़ा या उनहें मार दिया या फिर भय-उतपीड़न के साथ जीवन जीने के लिए बाधय हुए । दोनों
20 tqykbZ 2024