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देश में दलित जातियों के रूप में सामने आईं । विदेशी मुकसलम आक्रांता के सुनियोजित र्ड्ंत् के कारण मधयकाल के उपरांत भारत में पांच नए वगषों का उदय हुआ , जिनमें मुकसलम , असपृशय , जनजाति , सिख और ईसाई वर्ग को रखा जाता है । 1931 की जनगणना में अंग्रेजों ने डिप्रेसड ्लास नामक एक नया वर्ग बनाया और जाति के आधार पर भारत की जनगणना कराई गई । विदेशी मुकसलम र्ड्ंत् के तहत भारतीय समाज में पैदा हुआ असपृशय वर्ग मुकसलम शासनकाल के बाद अंग्रेजी शासकों की सत्ा के लिए नया मोहरा बना । अंग्रेजों ने विदेशी मुकसलम आक्रांताओं द्ािा भारी संखया में में असपृशय बनाये गए लोगों के प्रति घड़ियाली आंसू बहाये और उनके हितों के नाम पर , उनको हिनदू समाज से अलग करके " दलित " श्ेणी प्रदान की । इस प्रकार हिनदू समाज को अपमानित और विखंडित करने के अभिप्राय से विदेशी मुकसलम आक्रांताओं और विदेशी शासक अंग्रेजों ने क्रमशः असपृसय और दलित नामक जाति संवगषों की रचना की और दलितों को अपने हितों के लिए सिर्फ एक उपकरण बना कर रख दिया ।
दलितों का उपयोग सिर्फ सत्ा प्ाप्ति के लिए
देश के अंदर अगर सत्ा समबनधी रणनीति पर राजनीतिक दलों , विशेर् रूप से कांग्रेस , वामपंथी और कुछ क्ेत्ीय दलों पर अगर दृकषट जाए तो कहना अनुचित नहीं लगता कि वर्षों से एक र्ड्ंत् के रूप में हिनदू समाज को बांटकर , उसका उपयोग सत्ा हथियाने के लिए किया जा रहा है । सवतंत्ता के उपरांत कांग्रेसी प्रधानमंत्ी जवाहर लाल नेहरू ने अंग्रेजों के सत्ा अनुभव से सबक लेते हुए जाति वयवसथा को इस तरह से भारत में पुषट किया कि जातिगत आधार पर देश के हर राजय में नए-नए संगठन खड़े होते चले गए । इन जाति आधारित संगठनों के कथित नेताओं का लक्य अपनी जाति का समपूण्य विकास और कलयाण कभी नहीं रहा और वह केवल कांग्रेस की कठपुतली बनकर सवलहत में ही लगे रहे । नेहरू ने जाति को सत्ा से जिस तरह जोड़
दिया था , उस रणनीति का अनुसरण श्ीमती इंदिरा गांधी ने भी किया । आखिर ्या कारण है कि वर्षों तक " गरीबी हटाओ " का नारा देने के बावजूद देश से गरीबी ्यों नहीं समापत हुई ? आखिर ्या वजह रही कि संवैधानिक रूप से आिक्ण की सुविधा मिलने के बावजूद आज भी देश का दलित समाज सवयं को अभावग्रसत महसूस करता है ? वह कौन से कारण हैं , जिनकी वजह से दलितों और जातिगत हितों के लिए जो नेता सामने आये , वह अपने समाज का समपूण्य विकास करने में असफल सिद्ध हुए ?
सवतंत्ता के बाद से कांग्रेस ने सवयं को सत्ा के केंद्र में रखने के लिए हिनदू समाज को जहां उच्-निम्न जातियों में बांट दिया , वहीं लवलभन्
पंथों एवं महजब की कट्टरता के आधार पर गैर हिनदू जनता को बांट कर कांग्रेस दलित , मुकसलमों और ईसाई समूह की मसीहा भी बन गई । कांग्रेस की हिनदू विरोधी रणनीति में सिर्फ धर्म एवं संसकृलत के कट्टर विरोधी वामदलों ने उनका भरपूर साथ दिया । परिणामसवरुप देश के हर राजय में यानी उत्ि से दलक्ण तक और पूरब से पकशचम राजयों तक जातिगत मसीहा बनकर सत्ा का सुख लेने वाले लवलभन् राजनेता , राजनीतिक दल एवं संगठन का एक ऐसा जमावड़ा लग गया , जिसने जाति-पांति , पंथ , तुकषटकरण , क्ेत्वाद एवं परिवारवाद के मुद्े से देश को बाहर निकलने नहीं दिया । दलितों के उतथान के नाम पर राजनीतिक दलों ने दलितों का इस कदर
18 tqykbZ 2024