July 2024_DA | Page 17

किया जा रहा है । दलित समाज के सनदभ्य में बड़ी प्रमुखता से यह प्रचार किया जा रहा है कि उनकी दीन और दयनीय दशा के लिए तथाकथित हिनदू समाज की कुछ जातियां ( ब्राह्मण और क्लत्य ) ही मुखय रूप से जिममेदार हैं । इतना ही नहीं , प्रायः तथाकथित वामपंथी और हिनदू विरोधी विद्ान यह विचार प्रकट करते हैं कि दलित जातियां हजारों वर्षों से हिनदू समाज में हैं और इसके पीछे वर्ण वयवसथा का हाथ है । जबकि वासतलवकता में भारतीय समाज में मुसलमान वर्ग और दलित जातियों का उदय एक साथ हुआ । अरब के विदेशी मुकसलम आक्रांता शासकों के छह सौ वर्षों के शासन काल से लेकर अंग्रेजों के 190 वर्षों के
शासनकाल तक , दमन एवं दालान के उपरांत दलित बनाए गए लोगों की कसथलत एक श्लमक , कामगार या नौकर से जयादा नहीं थी और सवतंत्ता के उपरांत भी दलित समाज को देश के अंदर सिर्फ सत्ा हासिल करने के माधयम के रूप में ही उपयोग किया गया ।
भारत में नहीं थी अस्पृश्यता
भारत में असपृशयता का उदय विदेशी मुकसलम आक्रांताओं के शासनकाल में हुआ । इसका एकमात् कारण था हिनदुओं का सब कुछ लूटकर , उन पर भारी अतयाचार , वयलभचार के उपरांत उनको मृतयुदंड से डराकर , इसलाम सवीकार कराना था । हिनदू धर्म ग्रंथों में प्रलक्पतता एवं
भारत में अस्पृश्यता का उदय विदेशी मुस्लिम आक्ांताओं के शासनकाल में हुआ । इसका एकमात् कारण था हिन्ुओं का सब कु छ लूर्कर , उन पर भारी अत्ाचार , व्यभिचार के उपरांत उनको मपृत्ुदंड से डराकर , इलिाम स्ीकार कराना था । हिन्ू धर्म ग्ंथों में प्रक्क्षप्तता एवं हिन्ू समाज के प्रति भयानक दुभयावना के सन्भ्य में तथ्ात्मक अध्ययन के लिए इतिहास के उन पपृष्ों को पलर्ा जाए जो यह प्रमाणित करते हैं कि एक समय ऐसा भी था जब देश के पश्चिमी तर् पर एक शरणाथथी के रूप में रोजी-रोर्ी प्राप्त करने के लिए अरब देशों की मुस्लिम जनसंख्या भारत के सन्ुख नतमस्तक थी ।
हिनदू समाज के प्रति भयानक दुर्भावना के सनदभ्य में तथ्यातमक अधययन के लिए इतिहास के उन पृषठों को पलटा जाए जो यह प्रमाणित करते हैं कि एक समय ऐसा भी था जब देश के पकशचमी तट पर एक शरणाथजी के रूप में रोजी-रोटी प्रापत करने के लिए अरब देशों की मुकसलम जनसंखया भारत के सनमुख नतमसतक थी । लेकिन ईमान पर कुर्बान होने का ढोंग करने वाले मुकसलम आक्रांता इसलामी जिहाद में इतने अंधे हो गए कि उनके चरणबद्ध आक्रमणों के कारण हिनदू समाज की कमजोर पड़ गया । विदेशी मुकसलम आक्रांता आक्रमणकारियों का सवालभमानी , धर्माभिमानी एवं राषट्रालभमानी हिनदू धर्म िक्कों से लगातार हुए संघर््य के बाद मुकसलम शासकों ने यह रणनीति बनाई कि हिनदुओं को गुलाम एवं हिनदुसथान पर अगर शासन करना है तो हिनदू धर्म एवं संसकृलत िक्क ब्राह्मणों एवं भौगोलिक सीमा के िक्क क्लत्यों के साथ हिनदू धर्म को नषट करना ही होगा । इसके बाद मुकसलम आक्रांता शासकों का जो अतयाचार शुरू हुआ , उसके तहत मंदिर और देवालयों के साथ ही हिनदू धर्म ग्रंथों को खोज-खोज कर नषट किया गया । हिनदुओं को इसलाम में परिवर्तित करने के लिए सवालभमानी एवं धर्म िक्क , देश िक्क योद्धा प्रजाति के युद्धबंदी क्लत्यों और ब्राह्मणों को अपमानित और अकसततवलवहीन करने के लिए असवचछ कायषों में बलपूर्वक लगाया , उनको अपमानजनक समबोधनों तथा जातिसूचक नामों से बहिषकृत बनाया । पलवत्ता के आलोक में अपलवत् कायषों में बलपूर्वक योजित किये गए दृढ़ निशचयी , धर्माभिमानी एवं सवालभमानी हिनदू युद्धबंदी कालांतर में अपने ही समाज में असपृशय होते चले गए ।
मधयकाल के दौरान विदेशी इसलालमक आक्रांताओं के उतपीड़न के परिणामसवरूप गौरवशाली , सवालभमानी हिनदुओं के समूह को कई जातिवगषों में बलपूर्वक परिवर्तित कराया गया । जिनहोंने किसी भी मूलय पर इसलाम को सवीकार नहीं किया , उनको असवचछ कायषों में लगाकर भारतीय समाज में कई ऐसी जातियों को जनम दिया गया , जो समय बीतने के साथ
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