Jankriti International Magazine vol1, issue 14, April 2016 | Page 90

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिक
( बाबा साहब डॉ. भीमराव
डॉ अल्पना स ंह सहन्दी सवभाग
बाबा ाहेब भीमराव अम्बेडकर( के न्रीय) सवश्वसवद्यालय, लखनऊ
सम्पूणण विश्व के सावहत्य में भारतीय लोक सावहत्य का विविष्ट स्थान है । भारतीय सावहत्य के ऄन्तगणत लोक सावहत्य का ऄपना ऄलग ऄवस्तत्ि है ।‘ लोकगीत मानि जीिन तथा लोकसावहत्य के प्राण होते है । लोकगीत में मानि मन की सूक्ष्मतम ऄनुभूवतयों एिं ऄवभव्यवियों के साथ-साथ सामावजक, सांस्कृ वतक, ऐवतहावसक राजनैवतक अवद तत्ि बडी मात्रा में स्पष्ट देखे जा सकते है ।’ 1 भारतीय लोक सावहत्य में लोक गाथा, लोक कथा, लोक नाट्य तथा प्रकीणण सावहत्य का वजतना महत्ि है ईतना ही लोकगीत का भी है ।
लोकगीत, लोक जीिन की जीती जागती सम्पवि है । भारतीय समाज में जन्म के पूिण से लेकर मृत्यु संस्कार तक के लोकगीतों की एक लम्बी श्रंखला विद्यमान है । लोकगीत की रचना वकसी एक व्यवि वििेष द्वारा नहीं होती है बवकक यह जन-समुदाय की सामूवहक रचना है । वकसी भी व्यवि द्वारा कहीं भी आनका प्रयोग वकया जाना लोकगीतों की प्रमुख वििेषता है । आसके साथ ही यह सावहत्यक गीतों की भााँवत प्रकावित नहीं रहते आसी कारण आनमें समयानुसार स्िेच्छा से पररितणन भी वकया जा सकता है, आनमें रसात्मकता के साथ ही गत्यात्मकता भी होती है, साथ ही आनमें आस प्रकार के लोक समाज में प्रचवलत िब्द प्रयुि होते है वजनका ऄथण ईस मानाि-समुदाय के सभी लोग असानी से समझ लेते है ।
आस सन्दभण में भारतीय जनजातीय समाज को देखा जाये तो यह कहा जा सकता है वक आस दृवष्ट से ईनमें स्िस्थ ि सुदीधण परम्परा वदखाइ देती है । जो अज भी िैसी ही है जैसी पहले थी । अवदिासी, अवदम जावत, जनजावत, िनिासी, ऄनुसूवचत जनजावत अवद वकसी भी नाम से हमारे समाज में पहचाना जाने िाला िगण है, जो प्रायः जंगलो पहाडो और दूरदराज के आलाकों में अधुवनक सभ्यता के लाभांेे से िंवचत, प्रगवत की दौड में वपछडा, विक्षा तथा जागरण के िरदान से प्रायः ऄछू ता और िोषण का विकार है ।’ यह लोग ऄवधकतर देि के घने जंगलों, पिणत श्रंखलाओं, दुगणम घावटयों ऄथाणत पूणणतः प्राकृ वतक पररिेि में वनिास करते है ।
अवदिासी हमारी प्राचीन भारतीय संस्कृ वत के धरोहर तथा संिाहक है । यद्यवप िह राष्ट्र तथा समाज की मुख्य धारा से कटे हुये है वकन्तु आसका कारण ईनका ऄन्ध विश्वास, जडता ि रूवढिादी ऺ परम्परा नहीं है जैसा वक समाज में माना जाता है । आसके विपरीत ईनका मुख्य धारा से न जुड पाने का कारण ईनका सरल, सीधा, ि संकोची स्िभाि, एकान्तवप्रयता तथा प्रकृ वत के प्रवत वििेष लगाि ही है । यह पूरे देि में फै ले हुये हैं । आनमें भी सबसे ज्यादा मध्य प्रदेि, झारखण्ड, छिीसगढ़, पविम बंगाल, ईडीसा अवद में आनकी संख्या सिाणवधक है । आनके ऄवतररि ये नगालैण्ड, वमजोरम, वत्रपुरा, के रल, ई0प्र0, ऄंडमान, महाराष्ट्र, वबहार, अवद राज्यो में भी आनका वनिास स्थान है ।
भारतीय अावदम जनजाेावतयों क ही जीिन-मरण से सम्बवन्धत संस्कार भी विव नहीं है, लेवकन वफर भी ये वनयम से ईन्हें मान त्योहार, लोक कथाएं, लोक नृत्य, लोकगी भारतीय जनजावतयों की ऄपनी संेास्कृ वत ऄलग मान्यताएं है । ईन्हीं मान्यताओं के ऄन प्रत्येक जनजावत में त्योहारों ि ईत्सिों पर ईनके यहााँ गीत गानंेे की भी परम्परा प्रचव हंेै वजनमें आनकी संस्कृ वत कू ट-कू ट कर रच वकतनी भूख है । ईनके प्राण नृत्य, गीत, संगी सांस्कृ वतक िैविष्ट्य को बचाये रखा है, पराध से बचाये रखा है । अवदिावसयों की सांस्कृ वत
वििेष बात यह है वक आन अवदम ज का माध्यम ही नहीं है बवकक जनजातीय पर जीिन के विविध अयामांेे, रहन-सहन क लोकगीत ही है ।’ ये गीत संस्कारपरक, ऋतुप है ।’ आन जनजावतयों में गोदना गुदिाने का भ कु छ यहीं रह जाता है वसफण गोदना ही साथ ज गोदना गोदिाकर अयी युिती और ईसकी स
’’ गोरी कहवााँ गो बहहयााँ गोदवली बाकी रहल दोनों गोरी कहवााँ गोदे
अगल न गोदे बग गोदे हबचवााँ ठइय
वजस प्रकार हास-पररहास ईनके ज जनजीिन में प्रमुखता से विद्यमान है । जनज लोकगीत प्रचवलत है । वजनमें भगिान के प्रवत
‘ गोंड’ जनजावत के लोग ईत्साह ि‘ लाडूकाज‘, आरपूपाण्डुम तथा कारापाण्डुम पूजा, पिुबवल अवद का प्रािधान है ।‘ संता मांघबोंगा, फागुन में बाहाबोंगा, चैत में रोवहन
Vol. 2, issue 14, April 2016. वर्ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016.
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