Jankriti International Magazine vol1, issue 14, April 2016 | Page 9

जनकृति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine ISSN 2454-2725 (बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक) ISSN 2454-2725 (बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक) जैसे जीभ से उके रा हो मैंने अपनी कठोर जीभ से कोई रे खावचत्र रात नींद में. अपने आक्रान्त एकाांत में तम्ु हारी पदचाप सेवटन और ववस्कॉस के स्पशद सी आ-आकर लौट जाती है कानों की लाल लवों तक. वसर की वपछली दीवार में एक रौशनदान जो खल ु ा है अभी-अभी वसयाह दरू उसके पार एक वदया जल रहा है छम्म की आवाज वहीं से आई? और जाजेट की सरसराहट? क्या तमु तैयार हो रही हो? .............................. Vol.2, issue 14, April 2016. जनकृति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine सारे मृतक जब साथ ममले तो उन्होंने मिक्र भी नहीं मकया मक मकस जामत, धमम, देश या मिचारधारा के थे उनके हत्यारे बस सबने एक दसु रे के जख्मों को देखा गले ममले और रोते रहे देर तक ……… वर्ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016. Vol.2, issue 14, April 2016. हमारी सभ्यता ने सीख मलया है क्लोन बनाना मनष्ु य बनाने की कला सीखने में अभी (शायद) थोडा िक्त और लगेगा। …………… वर्ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016.