Jankriti International Magazine vol1, issue 14, April 2016 | Page 8

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिक
( बाबा साहब डॉ. भीमराव
.................................... पावर गली-गली थी, छज्जे पे भी खडी थी, छत पे लगाके आला, घर-घर में झाांकती थी.
पावर का था‘ ववधाला’, पावर की थी पढाई टीचर भी वकया करते पावर की ही बड़ाई पावर के ही सबक विर मााँ-बाप ने रटाए, पावर का पेन लाये, पावर की रोशनाई.
पावर के चार पवहये, पावर के आठ बाजू, पावर के हाथ में था इन्साि का तराजू पावर ने वजसे चाहा, आकाश में उछाला पावर ने वजसे चाहा, मारा पटक के‘ ता-जू’
पावर ने गले वजसके जयमाल डाल दी हो दुवनया में घूमता है दामाद की तरह वो सुसराल हर शहर में, दुल्हन हरेक घर में हर द्वार पर ठहरकर कहता है,‘ जी, उठो तो.’
पावर के सर पे पावर, पावर के तले पावर, है और क्या जमाना, हयरैकी-ए-पावर. पावर की सीवढयों से कु छ हाांिते गए थे, आये हैं जब से वापस, विरते हैं वलये पावर.
पावर ने सबको बोला जाओ वदखा के पावर, सब दौड़ पड़े, घर से, लाये उठाके पावर, थी वजसके पास जैसी, नुक्कड़ पे लाके रख दी, विर शहर-भर ने देखी, मोटर में जाके पावर.
पावर वजसे न भाये, विरता वो सर झुकाए पूछो पता-वठकाना, ये जाने क्या बताए जी, मैंजी, हााँजी, ना-जी, ऐसे-जी, क्या-पता-जी ऐसे डिर को पावर खुद ही न मु ांह लगाए.
पावर में इक कमी थी, तन्हाई से डरती थी, चलती थी झुण्ड लेकर, जब घर से वनकलती थी, विर बोलती थी ऊां चा ज्यों सामने बहरे हों, और साथ में वछपाकर हवथयार भी रखती थी.
पावर को चावहए थी थोड़ी सी और पावर, रहती है अधूरी ही पावर बतौर पावर, हमको तो कनवखयों से खामोश कर देती है, पावर के वलए नचती, पर ठौर-ठौर पावर.......................................
................................ कबूतर को पता है न कोयल को आम को पता है न पीपल को उस बूढ़ी अम्मा को भी नहीं पता वजसका िोटो पहले वलया तुमने और विर वलखी कववता
कोई नहीं जानता वक वकतना झूठ बोला तुमने
और वकतने शब्द अपने माांस से बनाए वकतनों को औरों की हड्वडयों से नोचा
वकतने बस उठा वलए पड़े हुए रस्ते में औरखोंस वलये मुकु ट में
पर भाषा जानती है
एक वदन वह बैठी वदखेगी तुम्हें मांच के नीचे झुटपुटे में शाप उच्चारती हुई
जब तुम खड़े रह जाओगे अके ले भयभीत भागते श्रोताओां को पुकारते.......................................
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पहला वनयम तो ये था वक औरत रहे औरत, विर औरतों को जन्म देने से बचे औरत, जाने से पहले अक्ल-ए-मदद ने कहा ये भी, मदों की ऐशगाह में वखदमत करे औरत.
इतनी अदा के साथ जो आए जमीन पर, कै से भला वो पाांव भी रखे जमीन पर, वबस्तर पे हक़ उसी का था वबस्तर उसे वमला, खावदम ही जाके बाद में सोये जमीन पर.
इस तरहा खेल वसिद ताकतों का रह गया, अहसास का होना था, वहकमतों का रह गया, सबको जो चावहए था वो मदों ने ले वलया, जो छू ट गया सबसे, औरतों का रह गया.
यू ां मदद ने जाना वक है मदादनगी क्या शै, छाती की नाप जाांवघये का बाांकपन क्या है, बाहों की मछवलयों को जब हुल्कारता चला, पीछे से िू ल िें क के देवों ने कहा जै.
बाद इसके जो भी साांस ले सकता था, मदद था जो बीच सड़क मूतता हगता था, मदद था, घुटनों के बल जो रेंगता था, मदद था वो भी, पीछे खड़ा जो पाांव मसलता था, मदद था.
कच्छा पहन के छत पे टहलता था, मदद था जो बेवहसाब गावलयााँ बकता था, मदद था, बोतल वजसे वबठा के वखलाती थी रात को, पर औरतों को देख वकलकता था, मदद था.
जो रेप भी कर ले, वो मदद और वजयादा, विर कहके वबिर ले, वो मदद और वजयादा,
Vol. 2, issue 14, April 2016. वर्ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016. Vol. 2, issue 14, April 2016.