Jankriti International Magazine vol1, issue 14, April 2016 | Page 7

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जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिक
( बाबा साहब डॉ. भीमराव
पैरों के आलावा जुड़ गया है तीसरा पैर डगमगा गया है तदमाग और वाणी का संतुलन लोग-बाग हँसी-ठट्ठा करने लगे हैं जैसे आदमी की शक्ल में अजूबा हो कोई... वे जीते है युद्ध-भूतम में ित-तवित शरीर के साथ अपनों को सुरतित करके तवजय के तलए... इतना आसान नही होता बूढ़ा होना और तफर होने के बाद डट के खड़ा रहना संथकार रीत जाने पर या उम्र बीत जाने पर भी बूढ़े होने से वंतचत रह जाते हैं बहुत से लोग साथ ही लड़ने के हुनर से अपररतचत भी.....।
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बेजियाूँ
................ घर खुशहाल नही था बधाइयाँ दुबकी बैठी थी अनाज के बोरों की छतललयों के पीछे खुतशयाँ पललुओं से मु ँह दबाये तपछवाड़े तनकल गयीं उदातशयाँ लाज-हया छोड़कर सबके चेहरे पर जम गयीं थी
और डर शहतीर से चूने लगा था उसके पैदा होने पर तमठाई जरूर चढ़ाई गयी काली माई को पर उस साल छठ पूजा पुरे खानदान में नही की गयी नोहबार तक ईश्वर भूखा ही रहा उस टोले का
शुक् है उस गाँव पर ईश्वर का कोप नही पड़ा... हाँ यह जरूर तक खेतों में सोने की बातलयां लहलहाने लगी
घर में अव्यक्त उजाला फै लने लगा एक खुशबू सी भर गयी आँगन में समय की नाव तहचकोलें खाते तैरती रही तजसमें सवार आम तकसान पार लग जाने की उम्मीद में रहा ख़ुशी तो नही
पर बेतटयाँ घर का बोझ भी नही बनी कभी.....
यह बात अलग है तक खेती और बेटी को बचाने में एक अदद उम्र कट गयी तकसानी में तचंता और बेतटयाँ ऐसे बढ़ती रहीं जैसे अरार का पानी डरी हड्तडयाँ और कमजोर हो चली मन का हुलास बर ढूढ़ते-ढूढ़ते थक के चूर होने लगा
यह समय का ही दोष था तक नर तपचासों का बवाया मु ँह
तशिा और सु ंदरता से भर पाना बेहद कतठन था नींद गायब थी आँखों से बेतटयाँ महसूस रही थी तपता का वह ददम तफर भी बढती उम्र को दरतकनार कर
मुथकराते हुए दौड़-दौड़ कर सबके तलए खड़ी रही एक पाँव पर और मुरझाने से पहले ऐसे ही एक तदन अपने सपनों के राजकु मार के साथ सबको तनढाल छोड़कर जैसे-तैसे चली गयी उसका जाना घर से एकदम से जाना नही था वह थोड़ी सी बची रही इसी घर में तजसने कतठन वक्त में भी घर को घर बनाये रखा...।
प्रतितिम्ि
अपनी रचना में कितना ही िोकिि िर लू महान हो नहीं पाता जो नहीं ह ूँ किख नहीं पाता! _____
वे अपने मुताकिि हर पररभाषा तय िर रहे हैं वे अंधे हैं और यह मानने से इंिार िरते हैं कि उन्होंने उजाले िो नही िेखा उनिे अनुसार अूँधेरा ही उजाला है वे चाहते हैं कि उनिो ही सही माना जाय क्योंकि उजाला उजाले िी तरह न िेख पाने ि वे कववि हैं अपने आपिो धोखा िेना उन्हें असली समझिारी मालूम होती है
इस तरह िे तमाम अंधे इिठ्ठा हो गए हैं और पंचायत िुरू हो गयी है उन्हें लग रहा है कि खुली आूँख वालों िी है इसमें िोई िड़ी साकिि वे अपने हकियार कनिालते हैं तैयारी हो रही है मोच ा कनिालने िी िु छ खुली आूँख वाले भी आिर उनसे कमल गए हैं
Vol. 2, issue 14, April 2016. वर्ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016.