Jankriti International Magazine vol1, issue 14, April 2016 | Page 6

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिक
( बाबा साहब डॉ. भीमराव अ
अंगारा …………… मैं राख नही जो कृ ततम हवाओं से उड़ा तदया जाऊँ गा पररदृश्य से बाहर वो अंगारा भी नही जो बुझा तदया जाऊँ गा फू ँ क मारकर या शाततर हवाओं के बीच रह कर बुझ जाऊँ गा.... जड़ें इतनी मजबूत हैं तक आबादी के बीच ही रह ँगा भूख से ऐंठते पेट में मु ँह से तनकलते शब्दों में उनकी आँखों में सुलगता रह ँगा लगातार, धीमे-धीमे अंदर ही अंदर राख के नीचे दबकर.... सालों बाद तवपरीत हवाओं में भी झूठ और अन्याय को देख धधक जाऊँ गा कतवता या क्ांतत की शक्ल में.......।
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अभी जिन्दा ह ूँ ……………. मैं जाना चाहता ह ँ मनुष्यता के लम्बे सफ़र में जर, जमीन और जंगलों से जुड़े रह कर
रीढ़ की हड्डी को तबना झुकाये इस उड़नबाज़ समय में मेरी गतत थोड़ी धीमी है तुम बार-बार शरीर को तनजीव समझ मुझे न ठोको फू ँ क के न बजाओ ऐ साथी! मैं अभी तजन्दा ह...। ँ
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रािनीजि-1 ………………. राजनीतत वह छु रा है तजसे गोद में तबठा नेताओं द्वारा मारा जाता है पीठ में सहलाते हुए जो बड़ी चालाकी से जब्त कर लेती है हमारे शब्द हमारी आवाज और हमारा समय तफर चमचों और छु टभैयों द्वारा सराही जाती है.... वह रैतलयों और नारों से बांटती है जातत, धमम और वैचाररकता का जहर फै लाकर हमारे सुखों पर नोट के खेल से छल और सांठ-गांठ से तबठा देती है अव्यक्त पहरा तफर जहर को अमृत बता समरसता का झंडा फहराते हुए खूब तपलाती है पुचकार-पुचकार कर.... वह लगाती है दांव-पेंच हत्यारों और भ्रष्टाचाररओं के तलए दारू, कम्बल, साड़ी-चूतड़यों से सेंध लगा कर उसकी मुठ्ठी में होते हैं
कानून, प्रशासन और अदालतें तो भी बजती हैं तातलयाँ नेपथ्य में इसीतलए समय पाकर घोंट देती है गला हमारे लोगों, समाज और देश का.... ।
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रािनीजि-2 *********** संघबली वामबली बाहुबली सूयमबली चन्रबली.... सब रहते हैं इस देश में पॉतलतटक्स से सम्पृक्त सारे अतभजात्य सीना ठोक कर.... डरा, आरोतपत, बदहाल भीड़ से उपेतित मैं बंजर जमीन का जोतदार रोटी और कु छ बू ँद के संघषम में राजनीतत के छल-छदम् से दूर लांतछत अदना सा आदमी कहाँ जाऊँ... क्या करूँ...?
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आम आदमी का युद्ध..................................... उनका मानना है तथथतत बुरी नही जबतक ये कहते हैं तक इससे बुरा दौर ही नही पर तदखता यह है तक
Vol. 2, issue 14, April 2016. वर्ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016. Vol. 2, issue 14, April 2016.