Jankriti International Magazine vol1, issue 14, April 2016 | Page 87

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine
( बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिक
( बाबा साहब डॉ. भीमराव
श्चहसाब जाना उसकी तालीम पूरी । दूसरे संदभों में कहे तो अब वह सचेत हो गई थी अपने प्रश्चत हो रहे आश्चथाक शोषण से । वह श्चवरोध करती है और श्चनकाल दी जाती है ।‘ मंगली टोकी कह देती है और हो जाती है बहस’।
इसी कारण लीडर बाबू ने काम से छटाई कर दी । 1990 तक जहााँ सरकार पररयोजनाओं के नाम पर आश्चदवाश्चसयों को दे रही थी वहीं 2009 तक आते-आते इन्हीं पररयोजनाओं के नाम पर इनके जल, जंगल, जमीन छीन चुकी थी । श्चफर वह उड़ीसा की आश्चदवासी भूश्चम पर स्थाश्चपत पोस्को( Pohang Iron and steel Company) पररयोजना
हो या झारखण्ड की बोक्साइट, अल्मुश्चनयम और वेदांग पररयोजना ।
आश्चदबारी, मंगला टोकी, सलोनी, रामरश्चत ये सभी मश्चहलाएं अपने ही समाज में बाहरी लोगों से शोश्चषत होती है । शोषण का आधार बनता हैं‘ पू ंजी’। आश्चदबारी अपने पररवार का पेट भरने के श्चलए साड़ी पहनती हैं और बोंडा समाज की पहली साडी पहनने वाली मश्चहला बनती है जो कु छ समय बाद यौनशोषण का श्चशकार हो शहर में छोड़ दी जाती है जहााँ हर समय वह यौन शोषण का श्चशकार होती है । मंगला टोकी अपने भाई को श्चशश्चक्षत करने के श्चलए नौकरी करती है ताश्चक उसका भाई ओर बोंडाओं की तरह मानुष मार न बने । सलोनी और रामरश्चत भी आश्चथाक रूप से असमथा होने के कारण यौनशोषण का श्चशकार होती है ।‘ सलोनी की भूतमका तय थी । पररवार पालने के तलए नौकरी जरूरी थी और नौकरी में बने रहे आसतलए बास की बात माननी थी’।( पृ-55) श्चवकास के नाम पर श्चजन पररयोजनाओं को मश्चहलाओं की सामाश्चजक, सांस्कृ श्चतक, शैक्षश्चणक श्चस्थश्चतयों में सुधार के श्चलए बनाया गया था दरसल वह यौनाचार का कें द्र बनी । आश्चदभूश्चम में सरकारी नेता, कमाचारी और पुश्चलस वही ग्लोबल गााँव के देवता उपन्यास में श्चशडाल्को कं पनी का मैनेजर कमाचारी और श्चशवदास बाबा जैसे लोग श्चजसके अगुवा थे ।
आश्चदभूश्चम में आश्चदबारी यौन शोषण का श्चशकार होती है वही ग्लोबल गााँव के देवता तक आते-आते यह यौन शोषण अपने चरम पर होता है । खदानों के सेठ-मुंिी सभी को डेरा में काम करने के तलए ऄसुर लडतकयााँ ही चातहए थी । क्यों चातहए ये बताने की जरुरत थोड़े है ।( पृ-23) आश्चथाक रूप से असहाय होने के कारण श्चकतनी ही मश्चहलाएं रामरश्चत बनने पर मजबूर होती है । श्चशवदास बाबा जैसे लोग बाश्चलका श्चवद्यालय के नाम पर छोटी बश्चचचयों का यौन शोषण करते है । श्चसंह जैसे ठेके दार गरीब लड़श्चकयों के पररवार की आश्चथाक असमथाता का फायदा उठा उन्हें शहरों में बेच रहे थे । असुर समाज भी भूख और ग़रीबी से इतना खोखला हो गया श्चक‘ बेतटयों को डेरा में काम के बहाने रखनी बनने से’( पृ-39) नहीं रोक सकता । सामाश्चजक व्यवस्था भरभरा कर समाि होने के कगार पर थी । यह मश्चहलाएं ही हैं जो कभी पररवार में तो कभी समाज में और कभी गैर आश्चदवासी समाज में शोश्चषत होती है । श्रम का शोषण, यौन शोषण, आश्चदवासी स्त्री होने के साथ यहााँ बढ़ता गया ।
आश्चदवासी मश्चहला जहााँ अपने समाज और गैर आश्चदवासी समाज के पुरुष से शोश्चषत होती हैं तो दूसरी ओर वह मश्चहलाओं से भी शोश्चषत होती हैं जो आज श्चसस्टरवुड की टूटती अवधारणा को सामने लाता हैं । ग्लोबल गााँव के देवता उपन्यास में बाश्चलका श्चवद्यालय की श्चशश्चक्षकाओं का आश्चदवासी बश्चचचयों के प्रश्चत व्यवहार तो रामरश्चत का अपने ही समुदाय की सलोनी जैसी मश्चहलाओं का यौन शोषण करना, उनकी पुरुष मानश्चसकता को चररिाथा करता हैं श्चजसे पू ंजी की सत्ता ने श्चवकश्चसत श्चकया ।
श्चशक्षा को लेकर आश्चदवासी समाज के प्रश्चत सरकार का कोई श्चवशेष लगाव न था जो रहा भी वह फाइलों तक सीश्चमत था । श्चफर वह चाहे बोंडा समुदाय हो या असुर । स्त्री श्चशक्षा को लेकर कोई श्चवशेष आग्रह दोनों ही उपन्यासों के राजनैश्चतक पािों में नहीं रहा । स्कू ल के वल फाआलों तक सीतमत थे और तििा‘ मास्टर जी के बैग में ईपतस्थत रतजस्टर तक’ जो ऄपटूडेट रहते’.......‘ तदन में स्कू ल फालतू का धंधा है ऄतः प्रोजेक्ट बाबू रात
में बोंडा बोंडनी को पढााँएगे । आस पर सरक दौर में जहााँ स्त्री के संदभों में यह धारणा का श्चवशेष पररवतान नहीं था । बाश्चलका श्चवद्यालय 16 सालों के बाद उतना न हो सका श्चजतना श्च श्चलखते हैं‘ भौरापाट स्कू ल अतदम जातत वाली ऄसुर तबररतजया बच्चों की संख्य 10 % लडश्चकयााँ ही श्चशक्षा के श्चलए आगे आ क्या नीश्चतयााँ रही अब तक । वास्तश्चवकता यह एक श्चशश्चक्षत मश्चहला पूरे समाज को श्चशश्चक्षत अपने अश्चधकारों की मांग करेगा ।
पू ंजी के आगे आज मानवीयता धराशायी हो सभी वस्तु आधाररत नीश्चतयों को खत्म कर प को बढ़ाया तो दूसरी और स्त्री श्रम को । पू ंजी लगे । आश्चदभूश्चम उपन्यास का पाि बाघश्चबंदु प्रोजेक्ट ऑश्चफस में काम पर भेज सके गा और बाघश्चबंदु को पत्नी से ज्यादा श्चचंता डब्बू क बहुपत्नी श्चववाह को बढ़ावा श्चदया । 1990 के साथ-साथ मजदूरी के श्चलए मजबूर की जा रह को ही बेच कर मुनाफ़ा कमाने की प्रवृश्चत रामचरन और रामरश्चत अपने ही समाज की आ
पुरुष चाहे आश्चदवासी हो या गैर आश्चदवासी कभी भी ख़ुद से अलग श्चकसी और के हाथों म मोह से दूर नहीं रहा हैं बश्चल्क कहा जाए श्रम नहीं हैं की आश्चदवासी मश्चहलाओं ने इसका श्चव जाती हैं क्योंश्चक अपने ही समाज में वह अस संस्कृ श्चत के श्चख़लाफ जाती है और समाज स आश्चथाक शोषण श्चकए जाने का श्चवरोध करती श्चजसके श्चलए उन्हें नक्सली करार देकर मार श्च करती है श्चजसके श्चलए वह प्रयासरत है । परंत आश्चदवासी मश्चहलाओं की समस्याओं और ए आवश्यकता नहीं है श्चक उन्हें भी उनके समा श्चमले? आश्चदवासी मश्चहलाएं जब तक अपन सुरक्षा कौन देगा? आज यह आवश्यक ह आश्चदवासी मश्चहलाओं पर भी श्चवचार श्चकया ज
Vol. 2, issue 14, April 2016. वर्ष 2, ऄंक 14, ऄप्रैल 2016.
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