Jankriti International Magazine vol1, issue 14, April 2016 | Page 86

जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine
( बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिक
( बाबा साहब डॉ. भीमराव
श्चजसका अथा था नंगा’। दूसरी ओर ग्लोबल गााँव के देवता उपन्यास झारखण्ड के असुर समाज पर कें श्चद्रत है । असुर अथ ात‘ बश्चलष्ठ पुरुष’ परंतु आज यह अथा अपने अतीत में खो चुका है । आज यह समाज गैर आश्चदवासी समाज के
श्चलए पौराश्चणक आख्यानों में श्चचश्चित के वल असुर है ।
आज जब हम दश्चलत श्चवमशा की बात करते हैं तो उसमें भी दश्चलत स्त्री श्चवमशा को अलग से व्याख्याश्चयत श्चकया जाता है । उसी प्रकार आश्चदवासी श्चवमशा पर बात करने के साथ ही आज यह आवश्यक है की आश्चदवासी स्त्री पर अलग से बात की जाए । आश्चदवासी समाज के भीतर एक स्त्री श्चकन रूपों में सामने आती है, क्या मातृसत्ता होने पर भी स्त्री स्वतंि है या श्चफर उस समाज में मातृसत्ता की आढ़ में पुरुष सत्ता श्चवराज रही है? आश्चदवासी समुदायों के संदभा में अश्चधकतर कहा जाता रहा हैं श्चक यहााँ मातृसत्ता वचास्व में हैं जबश्चक उसके पीछे के सच को अनदेखा कर श्चदया जाता है जहााँ आज भी कहने को तो यह समाज मातृसत्तात्मक हैं परंतु अपनी मूल पृष्ठभूश्चम में यह पुरुषसत्तात्मक हैं । प्रागैश्चतहाश्चसक काल से ही जहााँ श्चस्त्रयााँ को कमजोर बता कर घर में रहने और कम मेहनत के काम श्चदए जाने की बात की जाती और पुरुषों को स्वयं को वीर श्चसद्ध करने के श्चलए घर से बाहर श्चशकार जैसे शश्चि प्रदशाक काम श्चदए जाने की । वास्तश्चवकता जबश्चक इससे उलट है आज भी हमारे समाज में पुरुष से अश्चधक शरीररक श्रम का काया स्त्री करती है । बावजूद इन सबके समुदाय से जुड़े सभी श्चनणाय आज भी पुरुष ही लेते हैं । श्रम में मश्चहलाओं की अश्चधक श्चहस्सेदारी भी समाज में उन्हें समानता का अश्चधकार नहीं देती हैं । आश्चदभूश्चम उपन्यास में प्रश्चतभा राय बोड़ा मश्चहलाओं के संदभा में श्चलखती भी हैं‘ बोंडा संस्कृ तत को जीतवत रखने वाली तियााँ यहााँ मदों से नीचे है । वे उाँ ची नहीं हो पाती । बस न्याय आंसाफ सुनेगी । समाज के नीतत तनयम मानेंगी’( पृ-195)। भले ही
आश्चदवासी जल, जंगल जमीन की समस्यां पर यह मश्चहलाएं पुरुषों से भी आगे बढ़ कर आक्रोश के रूप में हश्चथयार उठाई देखी जाती हैं ग्लोबल गााँव के देवता ईपन्यास की पात्र लतलता और बुधनी आसका ईदाहरण हैं जो ऄपने ऄसुर समुदाय के ऄन्य तितित ऄसुर पुरुर् रामकु मार, रूमझुम, लालचन दा, सोमा के साथ तमलकर वेदांग प्रोजेक्ट का तवरोध करती है और ऄंत में पुतलस के हाथों नक्सली करार देकर मार दी जाती हैं । परंतु इनके अपने समाज में इनका जीवन श्चकस तरह का है और उदारीकरण के बाद क्या बदलाव आया यह भी जानना आज आवश्यक है ।
बोंडा और असुर समाज की मश्चहलाओं का जीवन भी श्रम के लैंश्चगक श्चवभाजन से िस्त रहा है । दोनों ही समाजों में श्रम का एक श्चतहाई काम मश्चहलाओं के श्चहस्से है । घर, संतान, खेत, मजदूरी सब उन्हीं की श्चजम्मेदारी हैं वहीं आश्चदवासी पुरुष के वल श्चशकार और ताड़ी उतारने का काम करते हैं या श्चफर कभी – कभी मजदूरी । बोंडा समाज की
मश्चहलाएं भी पुरुष का भारवाही कं धा है इसी कारण बेटी होने पर बोंडा समाज खुश होता हैं और बेटा होने पर दुखी । प्रश्चतभा राय श्चलखती हैं‘... पुरुर् डोलता तफरता है । िी संभालती है घर-बार और कुं वा-कुं वा यानी बाल बच्चे ।.. हाट-बाट, काठ लकड़ी सब करे िी । तभी बोंडा आतना मानता है िी को । िी के कारण रेमो जातत टूटते-टूटते बढ़ती जाती । ऄतः िी पर सारा दातयत्व लादकर वह हो जाता है फाररग ।..’( पृ-27)
असुर समुदाय भी अपने मूल चररि में पुरुषसत्तात्मक है मश्चहलाओं को भले ही श्चववाह के सभी फै सलों का अश्चधकार यह समाज देता है ।‘ तलतवंग टुगेदर का फै िन यही से ईतरकर’( पृ-76) गैर आश्चदवासी समाजों में गया
है । बावजूद इन सबके असुर मश्चहलाएं ही अपना पररवार पालती है वह भी श्रम के श्चतहरे शोषण से शोश्चषत होती है । वह श्चफर लालचन भाई की गोमकाइन( मालश्चकन), रुमझुम की आयो, एतवारी, बुधनी हो या अन्य असुर मश्चहलाएं...। इसी कारण रणेन्द्र श्चलखते है-‘ मतहलाएं आस समाज में तसयानी कहलाती थी, जनानी नहीं’।( पृ-23) उसी तरह से आश्चदभूश्चम में प्रकृ तत कहलाती हैं । प्रकृ श्चत श्चजस तरह श्चबना श्चकसी मूल्य के मनुष्य का पोषण करती है ठीक
वैसे ही आश्चदवासी मश्चहलाएं पुरूष का पोष श्चहस्सेदारी को अनदेखा नहीं श्चकया जा सकता
आश्चदवासी समाज में अथा अथाात जमीन औ करने तक सीश्चमत है । श्चववाह संबंधी श्चनणायों श्चववाह करना उसकी मज़बूरी क्योंश्चक आश्चदव‘ सेलानी ऄपने समाज का चलन मानती
की मश्चहलाएं भी अपने से बड़े पुरुष के साथ श्च मार न हो, बुढ़ापे में उनके साथ हो । आश्चद सपना देखती हैं ।‘.. ति: ति: यहााँ पहाड़ का जीवन । पत्नी के साथ-साथ यतद घ नहीं! मगर लुक-तिपकर जीना बहुत रूं ध ज्यादा मस्त, ज्यादा ठोस मरद के संग घर देगा..’( पृ-266) क्योंश्चक उनका पूरा जीवन उसकी वंश परम्परा को आगे बढ़ाने और उस उसके प्रश्चत न बोड़ा समाज की कोई नैश्चतक उससे तलाक ले सकता है और कह सकता ह
जैसा श्चक आश्चदभूश्चम उपन्यास में बाघश्चबंदु अ क्योंश्चक‘ बोंडनी ऄके ली जी लेगी । पर
आश्चदवासी समाज में भी पुरुष की आवश्यक स्त्री-पुरुष संबंधों में खालीपन को श्चदखाता है । है जो उसे अपने पश्चत गन्दुर से नही श्चमलता । के इन प्रश्नों से जूझती है श्चजन्हें समाज के नीश्चत
1990 के बाद की उदारीकरण की नीश्चतयों क गया । पू ंजी और सत्ता जानती थी श्चक आश्चदव सभ्यता की पोषक होती है श्चजनके जररए ही संदभो में खोला गया उसके पीछे की राजनी के शब्दों में जाना जा सकता हैं –‘ वह कोइ स दिा और ईनकी बोडनी में अधुतनक.... बोड़नी को कोइ कपड़ा पहनाए; ऄब चातहए । साड़ी के नीचे चातहए साया, सामान । अदमी एक बार लेना सीख ले, जाएाँगे ।( पृ-247) आश्चथाक सबलीकरण के न व्यवस्था, इंश्चदरा आवास, आगनबाडी, पश्चतता के सामश्चजक कल्याण के संदभों में लाया गय से आ रहा था । इसमें भी जो मश्चहलाएं श्चहसा
Vol. 2, issue 14, April 2016. वर्ष 2, ऄंक 14, ऄप्रैल 2016.
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