जनकृ ति ऄंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव ऄम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि ऄंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति ऄंिरराष्ट्रीय पतिक
( बाबा साहब डॉ. भीमराव ऄ
हवलदार था तक सेना में कु क था, के जानता है । का खाके लड़ा होगा बाडषर पर कोल-कु कु र । झूठ बोलता है सब । अरे सर! सब मैनेज होला । वीरचक्र-िीरचक्र सब । साले! िायररुंग करेंगे पुतलस िोसष पर त हमनी के जवान चूड़ी पहनल हैं का । हरातमयन को मालूम रहे तक खुदे एसआई कु ँ वर वीरेंर प्रताप है गश्ती पर, ततभयों ऐसन गलती कर तदतहस । के नय जानेला के वीपी के । ये ही तज़ला काहे, आसपास सब तजलन के पुतलस महकमा, चोर-चुहाड़-नक्सतलयन सब । सब चीन्द्हता है ।” 12 बुंदूक उठा लेना अुंततम उपाय है । अतमतत्व बचाने के तलए तकसी को भी हक है तक वह हतथयार उठा ले । तवशेषकर जब सरकारी सुरक्षा और कानून कु छ खास लोगों के तलए ही बनाए गए हों । तनदोष आतदवातसयों को भी नक्सल बताकर उन्द्हें जेल में डाल तदया जाता है अथवा पुतलस के गुडवकष के नाम पर फ़ज़ी एनकाउुंटर में मार तदया जाता है । झारखण्ड में नक्सलवाद की तमथतत पर रमतणका गुप्ता तलखती हैं-“ आज झारखुंड के 24 में से 22 तजलों में नक्सलवाद है । आतदवातसयों का जुंगल ज़मीन पर अतधकार तो क्या, उनके प्रवेश तक पर रोक है । कारखानों का तवकास हो या कोयला, माइका, मैंगनीज़, यूरेतनयम खदानों अथवा बड़े-बड़े बाुंधों का, इनके चलते वहाँ के मथायी तनवासी, खासकर देशज व आतदवासी ही तवमथातपत हुए हैं । बाुंधों में आतदवातसयों की बसाहटें व खेत तो डूबते हैं, पर तसुंतचत नहीं होते । तसुंतचत होते हैं दूसरे राज्यों के गैर-आतदवातसयों के खेत । इनके तबजलीघरों से आतदवातसयों के घरों में तबजली तक मुहैया नहीं होती, तबजली चली जाती है शहरों या दूसरे राज्यों में, यानी आतदवासी का नुकसान दूसरों का लाभ बन जाता है ।” 13
‘ गायब होता देश’ में भी नक्सलवाद के कारणों पर प्रकाश डाला गया है । नक्सलवाद को अमूमन भारतीय मध्यवगष के बीच एक प्रकार के आतुंकवाद के रूप में प्रचाररत तकया जाता है । उसे राष्ट्रीयता के तलए खतरा और देश की एकता, अखुंडता और सुंप्रभुता के तलए नकारात्मक रूप में पेश तकया जाता है । जबतक आतदवातसयों की तमथतत देखते हुए ऐसा नहीं लगता है । नक्सलवाद जनसुंघषष की अुंततम अवमथा है । नक्सलवाद को उभार देने में भारतीय पुतलस और सेना का कम योगदान नहीं रहा है । उच्च जाततयों और जमींदारों की कतथत सेनाएँ भी इस आुंदोलन के तलए तजम्मेदार रहीं हैं । आतदवासी तो भोले-भाले होते हैं उनके पास हतथयारों के नाम पर वही तीर-धनुष और भाला-टुंतगया होते हैं । नक्सलवाद की तरि उन्द्हें मुख्यधारा के क्राुंततकारी लोग जो जनसुंघषों के तलए समतपषत होते हैं, ले जाते हैं ।“ नक्सली उन्द्हें कु छ देता नहीं है । बस वह उन्द्हें इन ज़ुल्मों के तखलाि लड़ने का हौसला देता है और देता है हतथयार, यानी बुंदूक और बुंदूक चलाने का प्रतशक्षण! इस बुंदूक से भले बड़ा बदलाव न आया हो, लेतकन क्या यह सच नहीं तक जहाँ बुंदूक पहुुंची है, वहाँ ग्रामीणों, सूदखोरों, दबुंगों, सरकारी अिसरों, पटवाररयों, थानेदारों का ज़ुल्म कम हुआ है, भले भय से ही हो! सरकारी अतधकारी भी शाुंतत बनाए रखने के तलए नक्सतलयों को लेवी देते हैं, पर जनता को राहत देने के तलए उन्द्हें घूस चातहए ।” 14
सलवा जुडुम जैसी सरकारी योजनाएँ भी क्या नक्सलवाद को रोक पायी हैं, सरकार तजतना खचष नक्सलवाद को रोकने के तलए सेना और पुतलस पर करती है उतना अगर नक्सल प्रभातवत क्षेिों के तवकास पर करे तो सुंभव है तक नक्सलवाद पर कु छ तनयुंिण पाया जा सके । लेतकन सरकार भी उन सोने के पुंखवाले लोगों के बताए रामते पर चलती
Vol. 2, issue 14, April 2016. वर्ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016.
है । रणेन्द्र तलखते हैं-“ अब देतखये, इस सूबे में चला रहा है, तकन्द्तु कोई समाचार बाहर नहीं आ हैं । ठीक है तक इन जातीय सेनाओुं के अतधक देकर तोड़ा गया था । लेतकन काम तो कर रहे थाना को क्या करना है? भर दम दाल-भात ख तो आ ही जाएगा तक कहाँ से कौन नक्सली प्रमोशन और बहदुरी का पदक बोनस में । भूमुंडलीकरण से उपजी उपभोिावादी सुंमकृ तत लालची लोगों के तलए इस धरती की, प्रकृ तत पाएगी । मुनािा कमाने के तलए आज का पड़ा इलाकों की कृ तष पर आधाररत अथषव्यवमथा‘ तवक्टर ततग्गा’ कह रहा है –“ देहाती इलाका तचकन और बोतल बुंद पानी । अब ई सब भी बहुत दूर-दूर वाले हाट-बाज़ार में भी रुंगीन चूड़ पाँच रुपया वाला बोतल बुंद पानी भी ।..... बूतझ कौनो काट है आपके पास? अब बाबा, इसक जूता-जींस के तलए ज़मीन का कागज़ पत्तर छ चक्कर में धीरे-धीरे आधा जुंगलवा तो इहे छौं है सबका ऑतिस धीरे-धीरे उतलहातु ही तशफ्ट
ये सारा बाजारी सुंक्रमण प्रकृ तत की गोद में रह अतममता खोकर इस मुनाफ़ाखोर सुंमकृ तत के ज तजनसे वे सतदयों से लड़ते और मरते आ रह मुंतज़ला पत्थर की इमारतें उग आयें तिर उनक कोई रामता नहीं बचेगा । रणेन्द्र तलखते हैं-“ जो के डेरॉइट में हो चुका है । होम लोन के तलए ड‘ डी’ में सारी अश्वेत बतमतयाँ आती थीं । वहाँ शतें ज़्यादा कतठन कर दी जातीं तातक उन्द्हें भयानक दुंगा भड़का । कई लोग मारे गए । तीन साथ हुए भेद-भाव और दोयम व्यवहार के प्रत के लोगों के साथ अमानवीय व्यवहार होता र
Vol. 2, issue 14, April 2016.