Jankriti International Magazine vol1, issue 14, April 2016 | Page 82

जनकृ ति ऄंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव ऄम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि ऄंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति ऄंिरराष्ट्रीय पतिक
( बाबा साहब डॉ. भीमराव ऄ
और वनों के नीचे अमूल्य खतनज सम्पदा को आतदवासी बचाते आए हैं तजसके खनन के तलए बहु-राष्ट्रीय कुं पतनयाँ बेताब हैं और तजससे असीम मुनािे के साथ-साथ तवकतसत देशों के साम्राज्यवादी तहत भी सुंबुंध रखते हैं ।
झारखण्ड खतनज सम्पदा से अततसुंपन्द्न राज्य है । मटील से लेकर बॉक्साइट और कोयला-ग्रेनाइट-हीरे से लेकर यूरेतनयम तक सब कु छ झारखण्ड की धरती के नीचे छु पा हुआ है । इसी सुंपदा और ज़मीन की लूट के पररणाममवरूप उत्पन्द्न मु ुंडा आतदवातसयों के जीवन-सुंघषष का तचिण‘ गायब होता देश’ में रणेन्द्र करते हैं । आतदवातसयों की सभ्यता पर रमतणका गुप्ता की तटप्पणी है-“ आतदवासी सभ्यता समानता की सभ्यता है । यह वचषमववादी सभ्यता कभी नहीं रही । आतदवासी जीवन शैली में मनुष्ट्य और प्रकृ तत तथा उसके जीव-जन्द्तु साथ-साथ जीते हैं, साथ-साथ कष्ट झेलते हैं, हँसते-गाते हैं रोते तबसूरते हैं । इनके पहाड़, इनकी नतदयाँ, हवा या आग इनके देवता हैं । अपने देवता को ये बोंगा कहते हैं । ये बोंगा से डरते नहीं, बतल्क उससे तहल-तमलकर रहते हैं । इनके बोंगा( देवता) इन्द्हें एक दोमत की तरह, सलाहकार की तरह तनयुंतित करते हैं । वे कोई इतर शति नहीं हैं, बतल्क वे इनके और ये उनके अुंश हैं । इसतलए इन्द्हें अपने देवता के तलए कभी तकसी मुंतदर और मतमजद की दरकार नहीं होती । पूरी धरती, पूरी वनमपतत या प्रकृ तत उनकी है, तजसकी रक्षा करना ये अपना कतषव्य मानते हैं और इनका दृढ़ तवश्वास है तक प्रकृ तत इन्द्हें पालती-पोसती है ।” 6
‘ गायब होता देश’ में मु ुंडा आतदवातसयों की ऐततहातसक तवशेषताओुं के साथ मानव-वैज्ञातनक तथ्यों के आधार पर उनकी सुंमकृ तत का वणषन तकया गया है । यह वणषन प्राग्ऐततहातसक काल से लेकर तितटश औपतनवेतशक दौर तक और उसके बाद अब इक्कीसवीं सदी की मुनाफ़ाखोर ररयल एमटेट कुं पतनयों के दौर तक है । रणेन्द्र तलखते हैं-“..... बाबा- आजा बतलाते थे तक बारह नमलों के लेमुररयन, सबके सब ज्ञानवान और आध्यातत्मक जन । पाहन-पुजार पर भरोसा करने वाले, तसुंगबोंगा का तनहोरा करने वाले जन । लेमुररया के हमारे पूवषज कोंपाट मु ुंडाओुं को, पाहन-पुजारों को, देवड़ाओुं और दुंतरी को तसुंगबोंगा ने सुंके त तदया था तक तमट्टी-पानी की लड़ाई में पानी की जीत होने वाली है । पानी सब डुबोने वाला है ।..... लेमुररयन को अपनी धरती माँ से बहुत लगाव था । वे पेड़ों की तब भी पूजा करते थे । सरजोम- साखू तब भी सरना में पूजे जाते थे । क्योंतक उनका पूवषजों से, लाखों वषों से अतजषत ज्ञान यह बतलाता था तक अगर वनमपततयाँ नहीं होती, यतद एक कोतशका की काई-कवक से लेकर अरबों कोतशकाओुं के सरजोम नहीं होते, तो यह धरती जीवों के तलए नहीं होती ।” 7
रणेन्द्र‘ सोमेश्वर मुंडा’ नाम के पाि के माध्यम से, जो उपन्द्यास में मानव-तवज्ञान के तवद्वान हैं, मु ुंडाओुं की उत्पतत्त, उनके इततहास और उनकी नमलों के तवश्व भर में िै ले होने के बारे में बताते हैं-“ तजन बारह नमल के लोगों की वह मूल भूतम थी उसमें मु ुंडाओुं के प्रोटो-आमरेलायड नमल के अलावे, रतवड़, तकरात, नेतग्रटो के साथ-साथ अमेररका के रेड इुंतडयुंस, ऑमरेतलया की आतदम जाततयाँ, इुंग्लैंड के मूलवासी ड्रू ड्स, जापान के एइनू शातमल थीं । ये सारी जाततयाँ लेमुररया से ही तनकल कर दुतनया भर में िै ली ।...... मु ुंडाओुं की भाषा ऑमरो-एतशयातटक पररवार से है । इस भाषा पररवार ने भी लेमुररया को बार-बार याद तकया है । यह भाषा पररवार मलय प्रायद्वीप से प्रशाुंत महासागर के ईमटर द्वीप तक िै ला है । यह िै लाव भी लेमुररया के होने को ही प्रूव करता है ।” 8 रणेन्द्र मु ुंडाओुं के इततहास भूगोल के बारे में भी
Vol. 2, issue 14, April 2016. वर्ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016.
बताते हैं । तबरसा मु ुंडा की शहादत भारतीय इत तबरसा मु ुंडा को‘ भगवान तबरसा मु ुंडा’ कहते प्रो. तवतपन चुंर ने भारत के मवाधीनता सुंग्राम उनके अथक साहस और बतलदान तथा सरका है । एक तरि आधुतनक अस्त्र-शस्त्रों से युि ति टाुंतगयों जैसे आतदकालीन हतथयारों वाले आ लड़ाइयों में लाखों की सुंख्या में मारे गए । उन सुंथालों का, 1879 का रुंपाओुं का और 1 शाुंततप्रेमी, वीर और मवतन्द्िता प्रेमी होते हैं । व धूतष और लालची नहीं होते । कृ तष उन्द्हें तप्रय ह । जानते हैं तक तजन लोगों को ज़्यादा से ज़्यादा लोग धरती प्रकृ तत-वनमपतत की इज़्ज़त नहीं क अलग तरह के लोग हैं । न वे हमारी तरह होना सकती । उन्द्होंने अपनी जरूरतों को इतना बढ़ा की सारी हररयाली, धरती के भीतर के सारे खत
इन्द्हीं मु ुंडाओुं की खेती की ज़मीन पर कब्ज़ा नेताओुं, मातियाओुं से तमलकर इन्द्हें तदक क तदकु ओुं से लड़ने के कारण इन्द्हें नक्सली बता जाततयों, और कापोरेटी मीतडया का प्रमुख ह वणषन रणेन्द्र ने इस प्रकार तकया है-“ आतदव उलगुलान तक जो ख़ून बहाया था उस पतवि कानून’। इससे आतदवातसयों की ज़मीनों को स तज़ला कलेक्टर को सुंरक्षण की तज़म्मेवारी सौंप थे । अगर... यह शतष पूरी हो जाये तो ज़मीन रा तलए...। अगर ज़मीन का नेचर बदल गया हो ।‘ छप्परबुंदी’ की शतष पर पूरी ज़मीन राुंसिर हो
‘ गायब होता देश’ के कथानक में अपनी ज़म पाहन’ को नक्सली बताकर मार तदया जाता परमेश्वर पाहन के मरने के बाद बक्सर तज़ल
Vol. 2, issue 14, April 2016.