Jankriti International Magazine vol1, issue 14, April 2016 | Page 80
जनकृति अंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine
ISSN 2454-2725
(बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
1. भानावत, डॉ.महेन्र और जगु नू, डॉ. श्ीकृ ष्ण. (2003) भारतीय लोक माध्यम, राजस्थान ष्टहन्दी ग्रंथ
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9. वही, पृ. 52.
10. वही, पृ. 52.
11. वही, पृ. 53.
12. वही, पृ. 53.
जनकृति ऄंिरराष्ट्रीय पतिका/Jankriti International Magazine
ISSN 2454-2725
(बाबा साहब डॉ. भीमराव ऄम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि ऄंक)
संतोर् अर्ष
मुंडाको रे दुकु सातिङ रऄः ओड़ो: दुतबला िसद् रे जेटे सातिङ रऄः पेड़े: से गऄ
(मुंडाओ ं में दुख सहने की, दूब में धूप सहने की एक ही जैसी क्षमिा होिी है।)_ गायब होिा देश
‘गायब होता देर्’ रणेन्द्र का दसू रा उपन्द्यास है। अपने पहले उपन्द्यास ‘ग्लोबल गााँव के देवता’ में उन्द्होंने असरु
जातत की अतममता और जीवन पर मँडराते हुए खतरों और उस जातत की लाचारगी को आख्यान का रूप तदया था।
‘गायब होता देश’ में झारखण्ड की आतदवासी मडुंु ा जातत को कें र में रखकर उसके सुंघषष और उसकी अनठू ी सुंमकृ तत
को इततहास, एथ्रुं ोपोलॉजी (मानव-तवज्ञान) और जादईु यथाथषवाद के सुंततु लत, कलात्मक तमश्रण से आख्यान का रूप
तदया गया है।
वैश्वीकरण को पहले-प हल तवश्व-एकता और तीसरी दतु नया के देशों के तवकास के रूप में जाना-माना गया था। तकन्द्तु
समय बीतने के साथ यह यरू ोप और अमेररका के सगुं तठत, कुतत्सत नव-साम्राज्यवाद का इनतवतज़बल (अदृश्य)
तवमतार सातबत हुआ। बीसवीं शताब्दी के अतुं तम दशक में भारत में उदारीकरण से अतनयतुं ित पँजू ी का जो प्रवाह हुआ
उससे मख्ु यधारा के लोगों ने जो भी लाभ उठाया हो वह और बात है, लेतकन नक
ु सान उठाने वाले आतदवासी और
हातशये के लोग ही हैं। यह नक
सान
अपने
आप
को
बबष
र
ता
से
नष्ट
कराने
के
रूप
में सामने आया। अपनी जातत,
ु
अतममता और जल, जगुं ल ज़मीन को लटु ते देखकर सुंघषष भी उपजा लेतकन आतदवातसयों के इस सुंघषष में मख्ु यधारा
के लोगों का कोई सहयोग नहीं होने, बहु-राष्ट्रीय कुंपतनयों की पँजू ी की ताकत, देशी-कापोरे ट, मीतडया, प्रशासन,
मातिया, राजनीतत और पँजू ीपततयों का इस लटू में एक साथ हो जाना, और सुंघषष को दबाने के तलए सेना के उपयोग ने
इन्द्हें अके ला और असहाय तमथतत में छोड़ तदया। इसका पररणाम यह हुआ तक आतदवातसयों का जीवन ही सुंकट में
पड़ गया। जल, जगुं ल और ज़मीन के तलए तो मडुंु ा जातत बहुत पहले से, कई शतातब्दयों से लड़ती आ रही है। पहले वे
तवदेशी आक्रमणकाररयों, मग़ु ल बादशाहों, तितटश उप-तनवेशवातदयों से लड़ रहे थे और अब वे बहुराष्ट्रीय कुंपतनयों,
अपने ही देश की सेना और पतु लस से लड़ रहे हैं। उत्तर-आधतु नक राष्ट्रवाद पर एक बहुत बड़ा प्रश्न तचह्न लगा हुआ है,
तवशेषकर भारत के सुंदभष में, तक राष्ट्रवाद क्या राष्ट्र के कुछ ही लोगों के तलए है। एक ऐसा राष्ट्रवाद तजसमें बबषर
प्रशासन, अधषसैतनक बलों की बुंदक
ू ों की नली और ‘नागररक सरु क्षा अतधतनयम’ अथवा ‘सशस्त्र बल तवशेष
अतधकार अतधतनयम’ (AFSPA) जैसे मानवातधकार तवरोधी क़ाननू ों के बल पर तकसी देश को राष्ट्र कहा जा रहा है।
डॉ. वीर भारत तलवार कहते हैं- “झारखण्ड में तो ऐसी कई छोटी-छोटी जाततयाँ हैं- असुर हैं, शबर हैं, खतड़या हैं,
तबरहोर हैं इनकी जनसुंख्या कुछ हज़ार बच गयी है। कुछ एक हज़ार। तकसी की ढाई हज़ार बची है, तकसी की सातआठ हज़ार बची है। ये कै सा राष्ट्र है जो अपने देश के आतदवातसयों को जीने नहीं देता! ये कै सा लोकतन्द्ि है तजसमें
आतदवासी भाषाएँ और आतदवासी जाततयाँ खत्म होती जा रही हैं? ये आतदवासी इस राष्ट्र का क्या छीन ले रहे हैं तक
Vol.2, issue 14, April 2016.
वर्ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016.
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