जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिक
( बाबा साहब डॉ. भीमराव
अष्टभव्यष्टि के साथ ही बैगा समाज के अंतरतम से जुडी हुई है । गोदना को लेकर बैगा जनजाष्टत में यह मान्यता है ष्टक मृत्यु के बाद व्यष्टि के साथ गोदना ही रह जाता है । ‚ बैगा ष्टस्त्रयां गोदने को स्वष्टगशक अंलकरण मानती हैं ।.... इस जनजाष्टत में र्रीर अलंकरण के रूप में गोदने की एक दीघश परंपरा है । एक ऐसे अलंकरण के रूप में जो र्रीर का स्थायी अंग बन जाता है । ‛ 5 बैगा मष्टहलाएं अपने देह के तमाम ष्टहस्सों में गोदना करवाती हैं । बैगा जनजाष्टत के कई पुरुि भी गोदना करवाते हैं । बैगा जनजाष्टत दुष्टनया की इकलौती ऐसी जनजाष्टत है ष्टजसकी मष्टहलाएं अपने सम्पूणश र्रीर में गोदना करवाती हैं ।
गोदने को लेकर बैगा जनजाष्टत में एक लोक कथा भी सुनने को प्राय: ष्टमलती है । बैगाओं की इस कथा के अनुसार एक राजा था जो अत्यंत ही कामुक प्रवृष्टि का था । उसे हर राष्टत्र एक नई युवती चाष्टहए होती थी । एक बार वह ष्टजस युवती से संसगश कर लेता था, वह उसके र्रीर पर गोदने की सुई से ष्टनर्ान बना देता था । अंतत: उस राजा से अपने को बचाने के ष्टलए बैगा जनजाष्टत की मष्टहलाओं ने अपने र्रीर पर गोदना करवाना र्ुरू कर ष्टदया । बाद में यही देहकला ष्टवस्तृत होने के साथ ही बैगा समाज की पहचान बन गई । बैगा जनजाष्टत में गोदना पष्टवत्रता के साथ ही स्त्री सौन्दयश का भी प्रतीक है ।
बैगा जनजाष्टत की मष्टहलाएं धातु के आभूिणों को उपयोग अत्यंत ही सीष्टमत रूप में करती हैं, साथ ही बुष्टनयादी वस्तुओं के अभाव में गोदना ही बैगा जनजाष्टत की मष्टहलाओं का मुख्य़ आभूिण होते हैं । बैगा गोदना में इस्तेमाल होने वाले रंगों के ष्टलए पलार् के फू ल, वृक्षों की छाल तथा अन्य उत्कृ ि फू लों को सुखाकर रंग तैयार करते हैं । 6 आज भी गोदना बैगा जनजाष्टत में लोकष्टप्रय है लेष्टकन समय के साथ बैगा मष्टहलाओं में यह कम होता जा रहा है । बैगा जनजाष्टत की वृि मष्टहलाओं की तुलना में गोदना समाज की कम उम्र की मष्टहलाओं में अपेक्षाकृ त कम देखने को ष्टमल रहा है । बैगा समुदाय में यह परंपरा अब लगभग समाि होने की कगार पर है ।
बैगा जिजानि में प्रचनलि प्रमुख गोदिा कलाएं –
बैगा ष्टस्त्रयां अत्यंत ही कष्टिनतम भौगोष्टलक पररवेर् में रहती हैं, साथ ही बैगा ष्टस्त्रयां अपनी र्रीर पर कम वस्त्र पहनती हैं । ष्टलहाजा गोदना उन्हें प्रष्टतकू ल मौसमी पररष्टस्थष्टतयों में प्रष्टतरोधक क्षमता प्रदान करता है । बैगा ष्टस्त्रयों के गोदना एक उम्र ष्टवर्ेि में करवाना आवश्यक माना जाता है । इस जनजाष्टत में गोदना नहीं गोदवाना ष्टनधशनता का भी प्रतीक माना जाता है । बैगा ष्टस्त्रयों में कई गोदना कलाएं प्रचष्टलत हैं ष्टजनमें ष्टवर्ेि प्रकार की कला-कृ ष्टतयां तथा ष्टचन्ह ष्टवर्ेि रूप से उके रे जाते हैं । बैगा जनजाष्टत में प्रचष्टलत प्रमुख गोदना कलाएं ष्टनम्नवत् हैं ।
पुखडा गोदाय – बैगा जनजाष्टत में गोदना संस्कार की तरह है । सोलह साल की उम्र में बैगा ष्टस्त्रयां पुखडा( पीि)
गुदवाती है । पीि पर ष्टटपका, सांकल, चकमक, बांह के पीछे – आगे ष्टटपका, मछली कांटा, बेंडा झेला के गुदना गोदे जाते हैं । 7
जांघ गोदाय- इसमें जांघों के आगे वाले ष्टहस्से में गोदना गुदवाया जाता है । जांघ में गोदना करवाना बैगा ष्टस्त्रयों में ष्टववाह से पहले जरूरी माना जाता है । जांघ गोदाय में गोदना करने वाली बदष्टनन जाष्टत की औरतें पैर के उपर जांघ
तक गोदती हैं । जांघ पर लंबे झेला तथा टख आष्टद गोदाये जाते हैं । 8
पोरी गोदाय- इसमें हाथ की कोहनी से ल सामान्यत: ष्टटपका, चकमक, मछली कांटा,
पछाडी गोदाय- इस तरह के गोदने में जांघ ष्टपंडली तथा उसके ऊपर के भाग में होती ह जाते हैं । 10
छािी गोदाय- इसी तरह छाती के गोदने क ष्टववाह के बाद अपनी सुष्टवधा के ष्टहसाब से फू ल आष्टद के गोदने बनवाती हैं । 11
पोरी गोदाय- इसमें हाथ की कोहनी स सामान्यत: ष्टटपका, चकमक, मछली कांटा,
निष्ट्कर्ष-
गोदना अष्टमट परंपरागत संचार के रू जनजाष्टत की गोदना परंपराएं अष्टमट परंप जनमाध्यमों के प्रभाव के चलते बैगा जनजाष्ट अष्टधकाष्टधक प्रयोग के चलते इस अष्टमट प दरअसल बैगा समुदाय में प्रचष्टलत गोदना प संस्कार के साथ ही यह परम्परा बैगा समुदाय समुदाय के परंपरागत संचार की गोदना पर संस्कारों तथा सांस्कृ ष्टतक अष्टस्मता को सहेज
संदभष –
Vol. 2, issue 14, April 2016. वर्ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016.
Vol. 2, issue 14, April 2016.