जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिका / Jankriti International Magazine( बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंिी पर समतपिि अंक)
ISSN 2454-2725
जनकृ ति अंिरराष्ट्रीय पतिक
( बाबा साहब डॉ. भीमराव
तक नहीं हुआ है । इस प्रकार के ष्टवश्लेिण के अभाव में के वल यही कहा जा सकता है ष्टक अपनी अन्तश्चेतना की कष्टतपय उलझनों और तनावों को दूर करने के ष्टलए ही कला की सृष्टि करता है । ‛ 3
सभ्यता और संस्कृ ष्टत के ष्टवकास से संचार की कई ष्टवधाएं ष्टवकष्टसत हुई हैं । इन ष्टवधाओं में अष्टधकांर् ष्टवधाएं मनोरंजनता का पुट ष्टलये हुए हैं । प्रारंष्टभक स्तर पर जहां मनोरंजन के साधन के तौर पर इन ष्टवधाओं का उपयोग ष्टकया जाता था वहीं बाद में यही ष्टवधाएं अपने ष्टवकष्टसत रूप में संचार के प्रबल साधन के रूप में सामने आयीं और जब ये संचार ष्टवधाएं अपने उत्किश पर पहुंचीं तो इन्हें बतौर जनमाध्यम स्वीकृ ष्टत ष्टमली । संभवत: लोकसंस्कृ ष्टत में लोककलाओं और लोक संचार के ष्टनमाशण का यही ष्टवकासक्रम रहा होगा । ष्टत्रभुवन नाथ र्ुक्ल ने अपनी पुस्तक‘ लोक संस्कृ ष्टत की अवधारणा’ में ष्टलखा है ष्टक ‚ लोक ग्रामीण अथवा संस्कृ ष्टत अथश में ना होकर अपने व्यापक अथश में प्रयुि है । लोक यहां जन समस्त का संके त है । जहां तक मानव समाज का प्रसार है वहां तक लोक की व्याष्टि है । इसी लोक की आचार-ष्टवचार संबंधी ष्टक्रयाएं ष्टजस समूह की चेतना में स्पष्टन्दत होती है उसे लोक-संस्कृ ष्टत कहा जायेगा ।”
बैगा जिजानि की परंपरागि संचार परंपराएं –
भारत की पच्चीस सौ विों की समृि पुरातन परंपराओं और परंपरागत संचार का उदय एवम् ष्टवकास उतना ही रोचक तथा सहज है ष्टजतना ष्टक उसकी क्षेत्रीय र्ैष्टलयों की ष्टवष्टवधता । क्षेत्रीय र्ैष्टलयों में ष्टवष्टभन्न कलाओं के ष्टवकास ने लोक-संस्कृ ष्टतयों को जन्म ष्टदया है । गायन, वादन, नृत्य और नाट्य के साथ ही अनेक ष्टवधाओं का ष्टवकास हुआ । लोक-संस्कृ ष्टत वास्तव में लोक जीवन का दपशण है । लोक र्ब्द में अत्यंत ष्टवराट भाव समाष्टहत है । मानव संस्कृ ष्टत के ष्टवकास ने कला और संस्कृ ष्टत को भी ष्टवकष्टसत ष्टकया है । इस संस्कृ ष्टत का आधार परंपरागत संचार है । परंपरागत संचार वह है जो हमारे घर – आंगन, गली-कू चों में सृष्टजत होता है और अन्तत: हमारे जीवन में रच-बस कर सम्पूणश समुदाय में व्याि होकर परंपरा बन जाता है ।
परंपरागत संचार की प्रकृ ष्टत सहज एवम् सरल होती है । परंपरागत संचार नैसष्टगशक तथा स्वस्फू तश होता है । परंपरागत संचार पारंपररक ष्टवरासत के रूप में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्वमेव स्थानातंररत हो जाता है । परंपरागत संचार जनजातीय समुदाय में लोकगीत, लोकनाट्य, लोक कथा, गोदना, मेंहदी, मूष्टतशकला, अकपना, ष्टभष्टि-ष्टचत्रण, ष्टचत्रकला के रूप में व्याि है और इन्हीं परंपरागत संचार ष्टवधाओं में बैगा जनजाष्टत की संस्कृ ष्टत के इन्रधनुिी रंग समाष्टहत हैं । ‚ गोदना की प्रथा हमारी परंपराओं की देन है । साथ ही लोक माध्यम भी । गोदना गीत भी प्रचष्टलत है । स्त्री के हाथ, नाक, ललाट, पैर या अन्य भागों में गोदे गये गोदना से उसके र्ादीर्ुदा होने का प्रमाण तो ष्टमलता ही है, साथ ही क्षेत्र ष्टवर्ेि और अन्य संस्कृ ष्टतयों व कलाओं का ज्ञान भी होता है । ‛ 4 वहीं बैगा समुदाय के परंपरागत
संचार ष्टवधाओं को उनके वास्तष्टवक स्वरूप में रखना भी प्रासंष्टगक है क्योंष्टक इन ष्टवधाओं का संरक्षण बैगा जनजाष्टत का संरक्षण है । बैगा जनजाष्टत दुष्टनया की आष्टदमतम जनजाष्टतयों में से है । अतएव इनकी परंपरागत संचार ष्टवधाओं का संरक्षण संचार की पांरपररक ष्टवकास यात्रा को संरष्टक्षत करना है ।
बैगा समुदाय की लोक-संस्कृ ष्टत अत्यंत ही प्राचीन है । लोक-परंपराओं तथा रीष्टत-ररवाज के अध्ययन से ज्ञात होता है ष्टक ये लोक-परंपराएं ष्टचरकाष्टलक तथा ष्टवज्ञान सम्मत हैं । बैगा जनजाष्टत के लोगों के दैष्टनक जीवन के
रीष्टत-ररवाज, तीज-त्यौहार, लोकाचार तथा द है ष्टक बैगा समुदाय के लोगों ने अपनी साम समाजोनुरूप बनाने का प्रयास ष्टकया था । सा इस तरह से ष्टकया गया था ष्टक ष्टजसमें सहजत युि जीवनर्ैली पीढ़ी दर पीढ़ी चलकर बैग गई ।
बैगा समुदाय के लोग कला – संस्कृ ष्ट बैगाओं की भी अपनी मौष्टलक लोक-परंप परंपराओं या बैगाओं के परंपरागत संचार म साथ इन परंपराओं का अष्टस्तत्व संकट में है । माध्यम है । व्यष्टिगत या सामूष्टहक हिश के ष्टव तो पैरों में ष्टथरकन स्वत: ही महसूस होन पारंपररक मान्यताओं से जुडकर उसे नृत्य का
बैगा जनजाष्टत समुदाय का लोक-जी में उभर कर सामने आता है । भारत में धमश औ से प्रभाष्टवत करते आए हैं । सांस्कृ ष्टतक रूप स समझना अत्यंत ही सरल हो जाता है । बैगाओ नृत्यकला, ष्टचत्रकला, वास्तुकला और ष्टचष्ट माध्यम में प्राि होते हैं और इनसे बैगा संस्कृ ष्ट
बैगा जनजाष्टत समुदाय की लोक-स होती है । लोक-संस्कृ ष्टत सही मायने में जन-स और इन्हें प्रेरणा लोक से ही प्राि होती है । समुदाय के संस्कार, प्रथाएं, लोकोत्सव, ल माध्यमों में ष्टवद्यमान हैं । लोक संचार पंरम्पर समुदायगत वैष्टर्ि्य के अनुसार जनजीवन क प्रस्तुत करते हैं । लोक परंपराओं की समस्त सकता है ।
गोदिा प्रेमी बैगा मनिलाएं –
बैगा जनजाष्टत की मौष्टखक-वाष्टचक में ष्टबखरे पडे हैं । गोदना जनजातीय समाज
Vol. 2, issue 14, April 2016. वर्ष 2, अंक 14, अप्रैल 2016.
Vol. 2, issue 14, April 2016.